इक्विटी योजनाओं से अगस्त में लगातार दूसरे महीने शुद्ध निकासी हुई क्योंकि बाजार में उछाल व कोविड-19 महामारी के बीच नकदी की जरूरत से निवेशक रकम निकासी के लिए प्रोत्साहित हुए।
इक्विटी योजनाओं से अगस्त में 4,000-4,200 करोड़ रुपये की निकासी हुई और सूत्रों ने कहा कि निकासी लार्जकैप व मल्टीकैप फंडों से भी निकासी हुई है। उनका आकलन उद्योग की तरफ से संग्रहित 88 फीसदी आंकड़ों पर आधारित है। इनमें ओपन व क्लोज एंडेड योजनाएं शामिल हैं।
ओपन एंडेड योजनाओं से निकासी जुलाई के 2,480 करोड़ रुपये के पार निकल गई, जो चार साल में पहला ऐसा मामला है। अंतिम आंकड़ों में थोड़ा बदलाव आ सकता है जब एसोसिएशन ऑफ म्युचुअल फंड्स इन इंडिया (एम्फी) आंकड़े मुहैया कराएगा।
यूनियन ऐसेट मैनेजमेंट के मुख्य कार्याधिकारी जी. प्रदीपकुमार ने कहा, अगस्त में उसी तरह की मुनाफावसूली हुई, जैसी जुलाई में नजर आई थी। इनमें से कुछ नकदी किल्लत का सामना कर रहे प्रवर्तक समेत धनाढ्य निवेशक हो सकते हैं। उनके मुताबिक, उद्योग को नए निवेशकों से आवेदन मिल रहे हैं, रीडम्पशन यानी निवेश निकासी के मुकाबले आने वाला निवेश कम रह सकता है, लिहाजा नतीजा शुद्ध रूप से निवेश निकासी के तौर पर नजर आएगा।
प्रमुख इक्विटी योजनाओं (इंटरनैशनल, थीमेटिक व सेक्टोरल फंडोंं को छोड़कर) में एक साल का औसत रिटर्न 3.3 फीसदी से 14.9 फीसदी तक रहा है जबकि निफ्टी-50 इंडेक्स ने 3.1 फीसदी का रिटर्न दिया है। पांच साल का औसत रिटर्न 7.2 फीसदी से लेकर 8.6 फीसदी तक रहा है, जो निफ्टी-50 के 45.7 फीसदी के मुकाबले काफी कम है। यह जानकारी वैल्यू रिसर्च से मिली। ऐसे रिटर्न ने कुछ निवेशकों को डायरेक्ट इक्विटी की ओर बढऩे के लिए शायद प्रोत्साहित किया होगा।
उद्योग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, कुछ निवेशकों ने शायद मुनाफावसूली की होगी जबकि इक्विटी बाजार की अनिश्चितता को देखते हुए अन्य निवेशक डेट की ओर बढ़े होंगे।
हाइब्रिड श्रेणी में शामिल आर्बिट्रेज फंड (लेकिन कराधान के मामले में उसके साथ इक्विटी जैसा व्यवहार होता है) से अगस्त में 2,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की निकासी का अनुमान है। उद्योग के अनुमान में यह जाहिर हुआ है। जुलाई में इन फंडों से 3,732 करोड़ रुपये की निकासी हुई, जिसकी मुख्य वजह पिछले कई महीनों में रहा ढलमुल रिटर्न है। आर्बिट्रेज फंडों की कुछ रकम अल्ट्रा शॉर्ट फंडों में इस उम्मीद में लगी है कि उसे पूंजीगत लाभ होगा। यह कहना है प्रदीपकुमार का। अल्ट्रा शॉर्ट फंडों में अगस्त में 15,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का निवेश हुआ है।
यह देखना बाकी है कि क्या निवेस निकासी उद्योग के चक्र में बदलाव का संकेत देगा, जहां 2014 से लगातार मजबूत निवेश देखा गया है या फिर क्या एसआईपी में योगदान भी घटना शुरू हो जाएगा, जो म्युचुअल फंडों में निवेश के लिए खुदरा निवेशकों का पसंदीदा जरिया बन गया है। एसआईपी में निवेश जुलाई में लगातार चौथे महीने घटकर 7,830 करोड़ रुपये रह गया था, जो एक महीने पहले के मुकाबले एक फीसदी कम है।
म्युचुअल फंड उद्योग ने कुछ महीने पहले निवेशकोंं को एसआईपी पर विराम लगाने की पेशकश शुरू की थी, जिसका एसआईपी निवेश पर शायद असर पड़ा होगा। इक्विटी योजनाओं में निवेश का मामला ऐसा ही रहा तो शुल्क के तौर पर उद्योग को मिलने वाले लाभ पर असर पड़ सकता है। इक्विटी योजनाओं के प्रबंधन में मिलने वाला शुल्क आम तौर पर डेट फंडों से ज्यादा होता है। यह देसी संस्थागत निवेश को भी प्रभावित कर सकता है, जिसका अधिकांश हिस्सा म्युचुअल फंड में आता है।