शेयर पुनर्खरीद के लिए कर नियमों में हुए हालिया बदलाव से इन्फोसिस के छोटे और संस्थागत निवेशकों को फायदा हो सकता है। बेंगलूरु की इस आईटी दिग्गज ने 18,000 करोड़ रुपये के शेयर पुनर्खरीद कार्यक्रम की घोषणा की है।
बाजार विशेषज्ञों का अनुमान है कि पुनर्खरीद में स्वीकार्यता अनुपात 20 फीसदी से अधिक हो सकता है क्योंकि उच्च कर देनदारी अमीर शेयरधारकों को अपने शेयर बेचने से हतोत्साहित कर सकती है। नारायण मूर्ति और चेयरमैन नंदन नीलेकणि समेत इन्फोसिस के प्रवर्तकों ने पहले ही साफ कर दिया है कि वे पुनर्खरीद में शामिल नहीं होंगे। अन्य अमीर शेयरधारक भी ऐसा ही कर सकते हैं।
20 फीसदी स्वीकार्यता अनुपात का मतलब है कि पुनर्खरीद में 100 शेयर सौंपने वालों के 20 शेयर इसके तहत स्वीकार किए जा सकते हैं। आर्बिट्रेज के स फायदे पर नजर रखते हुए कई चतुर निवेशक इन्फोसिस के शेयरों की जमकर खरीदारी करते देखे गए जिससे उसके शेयर की कीमत 4 फीसदी बढ़कर 1,529 रुपये पर पहुंच गई।
क्वांट विश्लेषकों ने कहा कि डेरिवेटिव बाजार का उपयोग करते हुए न्यूट्रल पोजीशनें बनाकर म्युचुअल फंडों की (एमएफ) आर्बिट्रेज योजनाएं मौजूदा कीमतों की चाल पर 2-3 फीसदी का लाभ कमा सकती हैं। ताजा पुनर्खरीद के तहत इन्फोसिस 10 करोड़ शेयर (अपने बकाया शेयरों का 2.41 फीसदी) 1,800 रुपये प्रति शेयर पर वापस खरीदेगी, जो मौजूदा बाजार भाव से 18 फीसदी ज्यादा है।
अक्टूबर 2024 में सरकार ने पुनर्खरीद कर का बोझ कंपनियों से हटाकर शेयरधारकों पर डाल दिया। इसका मकसद पुनर्खरीद और लाभांश के बीच कुछ निवेशकों द्वारा पहले उठाए जा रहे कर आर्बिट्रेज को खत्म करना था। लाभांस और आर्बिट्रेज फायदे, दोनों पर अब प्राप्तकर्ता को आय के तौर पर कर देना होगा।
इस बदलाव से पहले कंपनियां 20 फीसदी बायबैक वितरण कर का भुगतान करती थीं। मौजूदा व्यवस्था के तहत बायबैक में शेयरों को सौंपने से होने वाली आय को लाभांश माना जाता है और उस पर निवेशक के आयकर स्लैब के अनुसार कर लगाया जाता है। वहीं, उन शेयरों को खरीदने की लागत को पूंजीगत हानि माना जा सकता है, जिसकी भरपाई वर्तमान या आगे के अधिकतम आठ वर्षों तक पूंजीगत लाभ से हो सकती है।
छोटे शेयरधारकों के लिए बायबैक आय पर कर की दर 5 से 20 फीसदी तक है। लेकिन एचएनआई पर करीब 40 फीसदी की दर लागू हो सकती है। इक्विटी म्युचुअल फंड आमतौर पर कर के उद्देश्य के लिए बायबैक आय को व्यावसायिक आय या पूंजीगत लाभ के रूप में मानते हैं।
प्राइस वाटरहाउस ऐंड कंपनी में पार्टनर हितेश साहनी ने बताया, नई व्यवस्था के तहत बायबैक में शेयर बेचना एचएनआई निवेशकों के लिए कर के लिहाज से सही नहीं हो सकता है क्योंकि इससे मिलने वाली पूरी राशि को लाभांश आय माना जाता है और उसी के अनुसार कर लगाया जाता है। खुले बाजार में शेयर बेचने पर आमतौर पर केवल मुनाफे पर ही पूंजीगत लाभ कर लगता है, जिससे अक्सर कर का बोझ कम होता है।
उन्होंने कहा, लेकिन निम्न कर श्रेणी वाले निवेशकों को अभी भी शेयरों को सौंपना लाभदायक लग सकता है, खासकर तब जबकि पुनर्खरीद बाजार मूल्य से काफी अधिक प्रीमियम पर की जा रही है।
उदाहरण के लिए, आम शेयरधारक इन्फोसिस बायबैक में 1,800 रुपये में 10 शेयर देता है। 18,000 रुपये की पूरी रकम लाभांश आय मानी जाएगी। अगर निवेशक उच्चतम 36 फीसदी (उपकर को छोड़कर) आयकर स्लैब में आता है, तो उसे अन्य आय के रूप में वर्गीकृत इस राशि पर 6,500 रुपये से अधिक का कर भुगतान करना होगा। मान लीजिए ये 10 शेयर 10,000 रुपये में खरीदे गए थे, जिसे पूंजीगत हानि के रूप में दर्ज किया जाएगा, जिनका समायोजन पूंजीगत लाभ से किया जा सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि सबसे ऊंची कर श्रेणी वालों के लिए अच्छा यही है कि वे इन शेयरों को खुले बाजार में बेचें। तब उनको लाभ पर 12.5 फीसदी से 20 फीसदी तक पूंजीगत लाभ कर देना होगा। इन्फोसिस ने अभी तक रिकॉर्ड और बायबैक की तारीखों की घोषणा नहीं की है। इस बायबैक की जानकारी सितंबर में दी गई थी।