इसमें तो कोई दो राय नहीं है कि भारतीय बाजार के निकट भविष्य में जबरदस्त ऊंचाईयों की कहानी लिखेगा लेकिन भारतीय बाजार की कहानी में इस समय नाटकीय परिवर्तन देखा जा रहा है।
भारतीय बाजार के नईं ऊंचाईयों की छूने की कहानी में महंगाई के चरित्र का प्रवेश हुआ है। यहीं नहीं महंगाई की जबरदस्त इंट्री हुई है वो भी 11.5 फीसदी के साथ। इस हैरानी के साथ की यह पिछले 13 सालों का सबसे उच्चतम स्तर है।
डर यहीं खत्म नहीं होता है क्योंकि यह बढ़ी हुई महंगाई आगे ब्याज दरों को भी प्रभावित करेगी जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था की तेल चाल में ब्रेक लग सकते हैं। आश्चर्यजनक बात तो यह कि महंगाई की इस मार से सेसेंक्स और निफ्टी भी अछूते नहीं रहे। दोनों सूचकांक वर्ष 2008 के अपने न्यूनतम स्तर 14,571 अंकों और 4348 अंकों पर पहुंच गए। विदेशी संस्थागत निवेशकों के आंखों का तारा रहे भारतीय बाजार से अब उनका मन उकताने लगा है।
वह भी कुछ खास है तेल की कीमतें आसमान छूने लगीं है जिनका दबाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी दिख रहा है। विदेशी संस्थागत निवेशकों ने जनवरी से अब तक भारतीय बाजार से पांच अरब डॉलर के करीब पूंजी निकाली है। मंदी का असर कुछ यूं है कि विदेशी संस्थागत निवेशक तेजी से एशियाई बाजारों से अपना पैसा निकाल रहे हैं। भारतीय बाजार के दिन अभी सुधरते हुए दिखाई नहीं देते है क्योंकि अगले तीन महीनों तक तेल के दामों में कमी आती नजर नहीं आ रही है।
इसके अलावा भारतीय सरकार के ढुलमुल रवैये से भी इस समस्या के बरकरार रहने के आसार हैं क्योंकि भारतीय सरकार इससे ठीक से निपटने केलिए पर्याप्त कदम नहीं उठा रही है। तेल की आसमान छूती कीमतें इसलिए भी भारतीय अर्थव्यवस्था को ज्यादा प्रभावित करेगी क्योंकि भारत अपनी जरुरत के अधिकांश तेल का आयात करता है। लेकिन क्या तेज गिरावट से भारतीय बाजार सस्ता हो जाएगा तो नहीं।
भारतीय बाजार तेज गिरावट के बावजूद महंगा बना रहेगा। ब्लूमबर्ग के आंकड़ों के मुताबिक भारतीय बाजार में कारोबार 16 गुना के स्तर पर हो रहा है जबकि कोरिया और ताइवान के बाजार का कारोबार अनुमानित आय से 13.5 फीसदी के स्तर पर हो रहा है। अगर बाजार में आगे सुधार की संभावना भी बनती है तो बाजार के महंगे रहने के आसार हैं क्योंकि लाभ की बढ़त में लगातार कमी देखी जा रही है। इसके अलावा आय के आकड़ें भी अनुमान से नीचे पहुंच गए हैं।
हालांकि भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ती अर्थवयवस्थाओं में अपना स्थान बरकरार रखेगी क्योंकि निवेशक इस आकर्षक बाजार से ज्यादा दिन दूरी बनाए नहीं रख सकते हैं। हालांकि वित्तीय वर्ष 2009 में अनुमानित सकल घरेलू उत्पाद अब पहले के अनुमान 8.5 फीसदी से नौ फीसदी से कम हो सकता है। इस अनुमान में आगे भी कमी आने की संभावना दिखती है। कार और दुपहिया वाहनों की मांग में लगातार कमी आ रही है।
कर्ज दरों की लगातार बढ़ते रहने से छोटे कर्ज लेने वालों ने बैंक से किनारा कर रहे हैं। यह आश्चर्यजनक ही होगा यदि वित्त्तीय वर्ष 2008 में रिटेल क्रेडिट ग्रोथ दोहरे अंकों के स्तर को छूती है। यदि ऋण दरें इसप्रकार बढ़ना जारी रखती हैं तो छोटे कर्ज लेने वाले बैंकों से दूरी बनाए ही रखेंगे। ये बढ़ती ऋण दरें छोटी कंपनियों के और पीड़ादायक होंगी क्योंकि वे पहले से ही अपने लाभ को बरकरार रखने के लिए कमोडिटी के बढ़ती कीमतों से जूझ रही है।
हालांकि बडी क़ंपनियों में अभी अपने खर्चो में कटौती करने की संभावना नहीं दिख रही है लेकिन यदि इसीप्रकार मांग में मंदी बरकरार रहती है तो इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। हालांकि भले ही भारत की विकास दर 7 फीसदी के स्तर तक पहुंच जाने की संभावना व्यक्त की जा रही हो लेकिन यह भी काबिलेगौर है कि यह एक चक्रीय प्रक्रिया है। ये हालात एक साल से ज्यादा नहीं टिकने वाले हैं। भारत दूसरी तेज बढ़ती अर्थवयव्स्था के अपने पाएदान को बरकरार रखेगा। ऋण दरों में बढ़ोतरी की वजह से भारतीय कारपोरेट की कमाई में कमी आ सकती है।