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भारतीय बाजार -समर्पण

Last Updated- December 07, 2022 | 8:45 AM IST

किसी बाजार के लिए इससे बुरी हालत नहीं हो सकती है कि उसके फंडामेंटल्स दबाव में हो और वह तरलता की कमजोरी का भी सामना कर रहा हो।


कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने से भारत जैसे देशों में महंगाई तेजी से बढ़ी है। महंगाई बढ़ने से विनियामकों को भी कुछ कदम उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा है। इमर्जिंग मार्केट फंड और एशिया फंड में भी कमी देखी जा रही है।

फंड मैनेजरों के पास कुछ ही विकल्प हैं जैसे वे बड़े जोखिम वाले और महंगे बाजार से अपनी पूंजी निकाले। जबकि बाजार में बहुत तेज गिरावट नहीं देखी जा रही है लेकिन इसकी पूरी संभावना है कि बाजार और नीचे जाए। 12,904 अंकों के स्तर पर बाम्बे स्टॉक एक्सचेंज अपने 15 महीने के न्यूनतम स्तर पर है और इसमें आगे भी गिरावट आ सकती है क्योंकि रुपया अपने 14 महीने केन्यूनतम स्तर पर पहुंच गया है।

हालांकि इस स्तर पर सेसेंक्स के शेयरों के कारोबार में वित्त्तीय वर्ष 2009 में अनुमानित आय से 13 गुना के स्तर से भी नीचे हो रहा है और यह अभी भी आकर्षक बना हुआ है। चूंकि मैक्रोइकोनोमिक हालात लगातार बुरे होते जा रहे हैं। इसके अलावा बढ़ती महंगाई और ऊंची ब्याज दरों की वजह से उपभोक्ताओं की मांग पर प्रभाव पड़ा है और इससे कारपोरेट लाभ पर भी असर पड़ा है। फंड की ऊंची कीमतों की वजह से कंपनियों पर दबाव पड़ा है कि वे अपने खर्चों में कटौती करें क्योंकि बढ़ती महंगाई के बीच उनकी सेवाओं और उत्पादों को ग्राहक नहीं मिलने जा रहे हैं।

चूंकि अर्थव्यवस्था उपभोक्ताओं की मांग और निवेश से संचालित होती है इसलिए अगर भारतीय अर्थव्यवस्था में भी मांग और निवेश में कमी आती है तो इससे भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी बुरा असर पडेग़ा। सबसे बुरा असर तो यह पडेग़ा कि इससे कारपोरेट आय दबाव में आ जाएगी। कंपनियां पहले से ही जिंस की बढ़ती कीमतों से जूझ रही हैं।

और ऐसे माहौल में जब लोगों की प्राइसिंग पॉवर में कमी आई है तो उपभोक्ताओं की मांग प्रभावित हो सकती है और जिसका सीधा असर कंपनियों की ऑपरेटिंग प्रॉफिट पर पडेग़ा। मार्च 2008 की तिमाही में कंपनियों की ऑपरेटिंग प्रॉफिट में कमी देखी गई है क्योंकि इसकी वजह उत्पादों की ज्यादा बिक्री का न होना और कच्चे माल की कीमतों में वृध्दि होने से कंपनियों की लागत का ज्यादा होना था। इस मंदी का सबसे ज्यादा असर रिटेल,ऑटोमोबाइल और रियल एस्टेट सेक्टरों पर पड़ेगा।

जीएमआर इंफ्रा- ज्यादा क्षमता

इंटरजेन में 50 फीसदी की हिस्सेदारी को खरीदने के लिए 4,700 करोड़ रुपये का भुगतान जीएमआर के ज्यादा है लेकिन कंपनी ने एक टिकाऊ राजस्व को खरीदने का निर्णय लिया है। यह कंपनी के लिए लंबी अवधि के लिए फायदेमेंद होगा। इस भुगतान के लिए इंटरप्राइस वैल्यू 2007 में कंपनी के कारोबारी मूल्य से 10.7 गुना ज्यादा है।

एक विश्लेषक का मानना है कि यह इस कंपनी के वर्तमान कारोबार का 20 फीसदी है। कंपनी के लिए परेशानी की जो वजह है कि इंटरजेन के ऊपर 4.3 अरब डॉलर का कर्ज है। इसके अलावा 2709 करोड़ की अधिसंरचना निर्माण कंपनी ने कुछ अच्छी परिसंपत्तियों की खरीदारी की है जिसने कंपनी को देश की सबसे बड़ी बिजली उत्पादक कंपनी बना दिया है। नीदरलैंड की इंटरजेन के फिलीपींस, आस्ट्रेलिया,मैक्सिको देशों के 12 संयंत्रों में इंट्रेस्ट है जो कि 8033 मेगावॉट की क्षमता के बराबर है।

इंटरजेन के ज्यादातर प्रोजेक्ट लंबी अवधि के समझौतों के तहत संचालित हो रहे हैं जिनमें की जोखिम की संभावना कम है। इसके अलावा उत्पादन में आने वाली लागत भी कम है और कंपनी के प्लांट तेल और मांग केंद्रों के पास स्थित हैं। जीएमआर के वर्तमान क्षमता 808 मेगावॉट है और कंपनी के राजस्व के वित्त्तीय वर्ष 2009 में 5,000 करोड़ तक पहुंचने के आसार हैं और कंपनी के ऑपरेटिंग प्रॉफिट के 1900 करोड़ केकरीब रहने के आसार हैं। मौजूदा बाजार मूल्य 81 रुपये पर कंपनी केस्टॉक का कारोबार वित्त्तीय वर्ष 2009 में अनुमानित आय से 22 गुना के स्तर पर हो रहा है। 

First Published - July 2, 2008 | 10:00 PM IST

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