भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के नए नियमों से पैदा हुई ऊहापोह के कारण एक्सचेंज में ट्रेड होने वाले करेंसी डेरिवेटिव सौदों की मात्रा घटना तय है। नए कायदों के कारण करेंसी डेरिवेटिव में खुदरा निवेशकों और वित्तीय संस्थानों (प्रॉपराइटरी ट्रेडरों) की भागीदारी बरकरार रहने पर भी संशय खड़ा हो गया है। यह डर भी जताया जा रहा है कि मुद्रा खरीदे या उसके लिए अनुबंध किए बगैर ही ली गईं पोजिशन शुक्रवार से पहले निपटानी पड़ेंगी।
आरबीआई ने इस बारे में 5 जनवरी को एक सर्कुलर जारी किया था, जो 5 अप्रैल से लागू हो जाएगा। इसमें कहा गया है कि नैशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) और बंबई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) पर रुपये में होने वाले करेंसी अनुबंधों के लिए मुद्रा यानी एक्सपोजर होना जरूरी है। 10 करोड़ डॉलर तक की पोजिशन के लिए ट्रेडरों को ऐसे एक्सपोजर का सबूत नहीं देना होता मगर एक्सपोजर होने की पुष्टि करना जरूरी है।
मुद्रा वायदा में ज्यादातर लेनदेन खुदरा श्रेणी में होते हैं, जो ओवर-द-काउंटर (ओटीसी) बाजारों में लेनदेन नहीं कर सकते थे। इन बाजारों में बैंक आम तौर पर मुद्रा होने यानी एक्सपोजर होने का सबूत मांगते थे। मुद्रा वायदा में 60 फीसदी ज्यादा लेनदेन खुदरा ट्रेड से ही आते हैं और करेंसी डेरिवेटिव्स एक्सचेंज पर तरलता बनाए रखने में इनकी अहम भूमिका है।
अगस्त 2008 में जब मुद्रा वायदा कारोबार शुरू हुआ था तब आरबीआई ने विदेशी विनिमय दर से जुड़े जोखिमों से बचाव के लिए डॉलर/रुपया मुद्रा वायदा में लेनदेन की अनुमति दी थी। उद्योग सूत्रों के अनुसार चार से ज्यादा बड़े ब्रोकरों ने अपने ग्राहकों को इस संबंध में खुलासे करने के लिए कहा है। कम निवेश वाले ट्रेडरों को बताना पड़ता है कि वे अनुबंध में अपने निवेश को सुरक्षित रखने के लिए करेंसी ट्रेडिंग कर रहे हैं।
येस सिक्योरिटीज में स्ट्रैटजिस्ट (संस्थागत इक्विटी रिसर्च) हितेश जैन ने कहा, ‘सौदों की संख्या घटेगी क्योंकि हमारे बाजार में सटोरिये नहीं केवल हेजर हैं। अगर जोखिम लेने वाले सटोरिये ही नहीं होंगे तो बाजार में आने का फायदा ही नहीं होगा। किसी भी परिपक्व बाजार में ये दोनों नहीं हो तो कीमत तय करना मुश्किल हो जाता है।’
नए नियम के तहत 10 करोड़ डॉलर से अधिक के निवेश वाले ट्रेडरों को कस्टोडियन पार्टिसिपेंट या अधिकृत डीलर नियुक्त करना होगा।
मुद्रा डेरिवेटिव का कारोबार करने वाले तीनों एक्सचेंजों पर औसत दैनिक कारोबार में इस महीने तेजी से गिरावट आई है। एनएसई पर मार्च में औसत दैनिक कारोबार 1.56 लाख करोड़ रुपये था, जो अप्रैल में करीब 44 फीसदी घटकर 87,045 करोड़ रुपये रह गया है। इसी तरह बीएसई पर औसत दैनिक कारोबार 21 फीसदी घटकर 4,878 करोड़ रुपये और एमएसई पर 97 फीसदी कम होकर 46 करोड़ रुपये रह गया है।
एक्सचेंज पर मुद्रा डेरिवेटिव्स में विकल्प कारोबार में भारी गिरावट दर्ज गई। वित्त वर्ष 2024 के पहले नौ महीनों के दौरान इस श्रेणी में महज 7,968 अनुबंधों का कारोबार हुआ, जबकि एक साल पहले की अवधि में 88,193 अनुबंधों का कारोबार हुआ था। वायदा अनुबंधों की संख्या में भी गिरावट दर्ज की गई।
स्टॉक ब्रोकर जीरोधा ने अपने ग्राहकों से कहा है कि अगर वे मुद्रा डेरिवेटिव में नई पोजिशन लेना चाहते हैं या पहले से ली गई पोजिशन बेचना चाहते हैं तो 4 अप्रैल 2024 को दोपहर 2 बजे तक बता दें।
सूत्रों ने कहा कि आरबीआई सर्कुलर लागू होने के बाद एक्सचेंज स्टॉक ब्रोकरों पर नजर रखने की योजना बना रहे हैं ताकि पता चल सके कि सभी ग्राहक एक्सपोजर के साथ ट्रेडिंग कर रहे हैं या नहीं।
जीरोधा के संस्थापक एवं सीईओ नितिन कामत ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में कहा, ‘मैंने पहले भी कहा है कि स्टॉक ब्रोकरों के लिए नियामकीय जोखिम सबसे बड़ा जोखिम है। आरबीआई के पास बिना हेजिंग वाले मुद्रा डेरिवेटिव पर रोक लगाने के अपने कारण हैं मगर इसका साफ मतलब है कि स्टॉक एक्सचेंज पर मुद्रा डेरिवेटिव में खुदरा व्यापारियों का कारोबार खत्म हो जाएगा।’
सीआर फॉरेक्स के प्रबंध निदेशक अमित पाबरी ने कहा, ‘कल कुछ ब्रोकरों ने कायदे मानने या कारोबार बंद करने की सलाह दी थी, जिसके बाद आज तमाम ब्रोकर दिशानिर्देशों का पालन कर रहे हैं।