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सितंबर में लगातार दूसरी तिमाही में प्रवर्तकों के अपनी हिस्सेदारी कम करने की रफ्तार ने जोर पकड़ा। सितंबर में समाप्त तिमाही में करीब 4.6 फीसदी कंपनियों में प्रवर्तकों ने 1 फीसदी या उससे ज्यादा हिस्सेदारी बेची। हिस्सेदारी में कमी स्टॉक ऑप्शन जैसी मामूली बिकवाली के जरिये भी हो सकती है। 1 फीसदी की सीमा से उन कंपनियों को अलग करने में मदद मिलती है, जिनमें ज्यादा बड़े बदलाव होते हैं।
यह विश्लेषण 932 कंपनियों के शेयरधारिता आंकड़ों पर आधारित है। इन कंपनियों का का एक दशक से भी अधिक का रिकॉर्ड है। विश्लेषण में बीएसई 500, बीएसई मिडकैप और बीएसई स्मॉलकैप सूचकांकों में शामिल कंपनियों को शामिल किया गया है। सितंबर में हिस्सेदारी में बड़ी कटौती का अनुपात अप्रैल-जून तिमाही की तुलना में अधिक था और मार्च तिमाही में देखे गए स्तर से दोगुना से भी ज्यादा था।
मल्टीफैमिली ऑफिस ब्लूओशन कैपिटल एडवाइजर्स के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी निपुण मेहता ने कहा कि प्रवर्तक हिस्सेदारी में कमी का मतलब यह नहीं है कि मूल्यांकन चरम पर पहुंच गया है। उन्होंने कहा कि कई प्रवर्तकों की अभी भी अधिकांश संपत्ति अपनी खुद की कंपनियों में हैं, जिससे उनकी संपत्ति कारोबार से जुड़ी रहती है।
मेहता ने कहा कि नए ज़माने की कंपनियों और स्टार्टअप्स में भी प्रवर्तकों की हिस्सेदारी कम करने वाला वैश्विक बदलाव दिखाई दे रहा है, जहां संस्थापकों के पास पारंपरिक भारतीय विनिर्माण उद्यमों की तुलना में अक्सर बहुत कम हिस्सेदारी होती है। यह प्रवृत्ति धीरे-धीरे भारत में भी पनप रही है।
महामारी के बाद के आई तेजी के दौरान ऊंचे मूल्यांकन के बीच प्रवर्तक हिस्सेदारी की बिकवाली में इजाफा हुआ था और यह सितंबर 2024 में चरम पर पहुंच गई थी। बीएसई सेंसेक्स 27 सितंबर, 2024 को 85,978.25 के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया था। अप्रैल 2025 में यह 71,425.01 तक गिर गया। फिर सितंबर के अंत तक 80,267.62 पर वापस आ गया। अक्टूबर के अंत में यह 83,938.71 पर बंद हुआ।
प्रमोटर हिस्सेदारी में सबसे बड़ी कमी साधना नाइट्रो केम (26.76 फीसदी), इमको एलेकॉन (24.68 फीसदी), मैराथन नेक्स्टजेन रियल्टी (17.71 फीसदी), लॉयड्स एंटरप्राइजेज (11.19 फीसदी) और रामा स्टील ट्यूब्स (10.08 फीसदी) में हुई। इस कटौती का कारण हिस्सेदारी बिक्री या पूंजी जुटाने की गतिविधियां भी हो सकती हैं। इस बारे में जानकारी के लिए इन 5 सूचीबद्ध कंपनियों को भेजे गए ईमेल का जवाब नहीं मिला।जिन प्रमुख क्षेत्रों में कंपनियां अपनी प्रवर्तक हिस्सेदारी कम कर रही हैं उनमें रसायन, पूंजीगत सामान, इस्पात, वित्त, रियल एस्टेट, सीमेंट और स्वास्थ्य सेवा शामिल हैं।
प्रवर्तकों के साथ मिलकर काम करने वाले एक व्यक्ति के अनुसार, प्रवर्तकों के व्यवहार में बदलाव भी हाल के वर्षों में हिस्सेदारी बिक्री में वृद्धि का कारण हो सकता है। पहले, प्रवर्तक अक्सर अपनी कंपनियों से पैसा ऐसे तरीकों से निकालते देखे जाते थे, जो अल्पांश शेयरधारकों की कीमत पर होते थे। तब से कई लोगों ने महसूस किया है कि लाभप्रदता और पारदर्शिता मूल्यांकन को बढ़ा सकती है। इस कारण पुराने तरीकों की तुलना में ज्यादा संपत्ति का सृजन होता है। इससे उनके औपचारिक पारिश्रमिक से इतर नकदी की जरूरतों को पूरा करने की उनकी क्षमता भी कम हो गई है।
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी), ज्यादा औपचारिकता, ऑडिट ट्रेल्स के साथ डिजिटल भुगतान और सेवा क्षेत्र की कंपनियों की बढ़ती हिस्सेदारी जैसे संरचनात्मक बदलावों ने इसमें अहम भूमिका निभाई है, जिसमें अक्सर वैकल्पिक अकाउंटिंग के कम अवसर होते हैं। व्यक्ति ने कहा, पहले जो गड़बड़ी होती थी, वह अब कम हो गई है।