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Delhi AQI: वायु गुणवत्ता पर SC की सख्त नजर, दिल्ली सरकार से दो दिन में जवाब तलब

उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली में वायु गुणवत्ता आंकड़ों की सच्चाई पर सवाल उठाते हुए सरकार को दो दिन में जवाब देने का आदेश दिया।

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भाविनी मिश्रा   
Last Updated- November 18, 2025 | 8:39 AM IST

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) मापने में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों की प्रकृति एवं उनकी कार्यक्षमता पर दिल्ली सरकार से विस्तृत स्पष्टीकरण मांगा है। न्यायालय का यह आदेश इन आरोपों के बीच आया है कि प्रदूषण से संबंधित आंकड़ों के साथ छेड़-छाड़ के लिए वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों के इर्द-गिर्द पानी का छिड़काव किया जा रहा है।

भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति विनोद चंद्रन और एन वी अंजारिया की अध्यक्षता वाले एक पीठ ने प्रशासन से उपयोग किए जा रहे निगरानी उपकरणों के प्रकार और उनकी कार्य दक्षता पर पर स्पष्टीकरण मांगा। दिल्ली सरकार को दो दिनों के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया गया है। पीठ ने कहा, ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी) एक हलफनामा दाखिल करे जिसमें एक्यूआई मॉनिटर मापने के लिए उपयोग किए जा रहे उपकरणों की प्रकृति और उनकी दक्षता बताई जाए। इस बारे में दो दिनों के भीतर स्थिति स्पष्ट की जाए।’

यह मुद्दा तब सामने आया जब न्याय मित्र अपराजिता सिंह ने न्यायालय का ध्यान उन खबरों की ओर खींचा जिनमें सुझाव दिया गया था कि राजधानी में कई निगरानी स्थानों के आस-पास पानी का छिड़काव किया जा रहा है। केंद्र सरकार का पक्ष रखने वाली अतिरिक्त सोलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने इस आरोप को बेबुनियाद बताया और कहा कि ऐसे कथित वीडियो राजनीतिक कारणों से प्रसारित किए जा रहे हैं और पानी का छिड़काव नियमित धूल-नियंत्रण उपायों के हिस्से के रूप में पूरे शहर में हो रहा है। इस पर मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा ‘मैंने उच्चतम न्यायालय के आस-पास भी पानी का छिड़काव होते देखा है।

सिंह ने न्यायालय को यह भी बताया कि पराली जलाने की घटनाओं को आधिकारिक रिकॉर्ड में सटीक रूप से नहीं दर्शाया जा रहा है। हालांकि,  बेंच ने इस पर गौर किया  कि नवीनतम स्थिति रिपोर्ट में ऐसे मामलों में गिरावट आई है जो लगभग 28,000 से कम होकर 4,000 रह गए हैं।  सिंह ने कहा कि विशेषज्ञों के अनुसार ये आंकड़े सही तस्वीर पेश नहीं कर रहे हैं।

उन्होंने यह भी बताया कि वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग और स्वतंत्र विशेषज्ञों दोनों ने आंकड़े कम दर्शाए जाने पर चिंता जताई है। किसानों को अक्सर कटाई के सीमित समय के कारण फसल अवशेष जलाने का सहारा लेना पड़ता था और कहा कि पंजाब ने संकेत दिया है कि केंद्र से 100 रुपये प्रति क्विंटल का मुआवजा यह चलन रोकने में मददगार साबित हो सकता है।

सिंह ने यह भी कहा कि पराली निपटान के लिए मशीनरी 2018 से वितरित की गई है लेकिन समर्थन का पैमाना अपर्याप्त रहा है।

एम सी मेहता मामले में हस्तक्षेप करने वाले कुछ अधिवक्ताओं की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि समय-समय पर हस्तक्षेप के बावजूद इस साल दिल्ली में प्रदूषण का स्तर और बिगड़ गया है। उन्होंने फेफड़ों के कैंसर के बढ़ते मामलों का उल्लेख किया और तर्क दिया कि हालात में सुधार के लिए मजबूत उपायों की जरूरत है। उन्होंने कहा कि मौजूदा नियामक निकायों में संकट से निपटने की क्षमता नहीं है और उन पर सख्त नजर रखने की जरूरत है।

इसके बाद पीठ ने पूछा कि क्या स्टोन क्रशर और कुछ निर्माण उपकरण एक साल के लिए निलंबित रखना संभव है। इस पर भाटी ने कहा कि व्यापक प्रतिबंध आर्थिक गतिविधि को बाधित करेंगे और सभी विकासशील देशों को विकास और पर्यावरणीय बाधाओं के बीच इसी तरह के तनाव का सामना करना पड़ता है।

न्यायालय ने स्थिति पर प्रभावी ढंग से विचार करने के लिए केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय और पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान सरकार से समन्वित प्रयासों का आह्वान किया। इस मामले पर 19 नवंबर को फिर सुनवाई होगी।

First Published : November 18, 2025 | 8:39 AM IST