विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों की बिकवाली की रफ्तार इस समय देसी बाजार में दिखी सबसे खराब बिकवाली के दौर में से एक है। देसी ब्रोकरेज आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज के विश्लेषण से पता चलता है कि एफपीआई की पिछले 12 महीने की 36 अरब डॉलर की बिकवाली का आंकड़ा इस समय साल 2008 के वैश्विक आर्थिक संकट के दौरान हुई 28 अरब डॉलर की बिकवाली के मुकाबले ज्यादा है।
बढ़ती महंगाई की पृष्ठभूमि में फेडरल रिजर्व के कदम से पहले अक्टूबर से ही विदेशी निवेशकोंं ने अपनी बिकवाली में इजाफा किया है। यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद वैश्विक जिंस कीमतों में बढ़ोतरी (खास तौर से तेल) के कारण पिछले एक महीने में बिकवाली तेज हुई है। अक्टूबर से एफपीआई ने देसी शेयरों की करीब 20 अरब डॉलर की बिकवाली की है, वहीं पिछले एक महीने में शुद्ध बिकवाली करीब 9 अरब डॉलर रही है।
हालांकि तीव्र बिकवाली के बावजूद देसी बाजार अपेक्षाकृत सुदृढ़ रहे हैं। अक्टूबर के उच्चस्तर से बेंचमार्क सेंसेक्स 15 फीसदी नीचे आया है। अभी यह अक्टूबर के उच्चस्तर 61,766 से करीब 10 फीसदी नीचे ट्रेड कर रहा है।
साल 2008 के वैश्विक आर्थिक संकट के दौरान एफपीआई की बिकवाली का असर और गहरा था क्योंकि तब बेंचमार्क सेंसेक्स जनवरी 2008 के उच्च स्तर 20,800 से करीब 70 फीसदी टूटकर अक्टूबर 2008 में 8,500 रह गया था।
अपेक्षाकृत कम गिरावट की वजह देसी संस्थागत निवेशकों की तरफ से हुआ तगड़ा निवेश है, जिन्होंंने पिछले 12 महीने में 28 अरब डॉलर का निवेश किया है।
इसके परिणामस्वरूप 12 महीने में शुद्ध संस्थागत निकासी 8.2 अरब डॉलर रहा (एफपीआई की बिकवाली और देसी संस्थागत निवेशकों की खरीदारी), जो वैश्विक आर्थिक संकट के दौरान हुई 8.6 अरब डॉलर की निकासी से कम है। यह कहना है आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज का। अगर हम प्राथमिक बाजार (मुख्य रूप से आईपीओ) में एफपीआई निवेश को जोड़ें तो 12 महीने मेंं कुल निकासी घटकर 18.3 अरब डॉलर रह जाएगी।
देसी संस्थागत निवेशकों की तरफ से तीव्र निवेश की वजह म्युचुअल फंडों में लगातार हुआ निवेश है, खास तौर से सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान यानी एसआईपी के जरिये। मासिक आधार पर एसआईपी में 10,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का निवेश दिखा है।
आईसीआईसीआई सिक्यो. के इक्विटी रणनीतिकार विनोद कार्की ने कहा, एफपीआई की अप्रत्याशित बिकवाली के दौरान हमने देसी निवेशकों की तरफ से लगातार खरीदारी देखी है और वह भी पिछले कुछ वर्षों में भर भरे घटनाक्रम के बीच। यह सकारात्मक आश्चर्य है और देसी बचत के भारत की इक्विटी में निवेश की गहराई बताता है। शेयर कीमतों में गिरावट के दौरान देसी निवेशकों की तरफ से आक्रामक खरीदारी का व्यवहार उनके पोर्टफोलियो में सुधार के लंबी अवधि के नतीजे के तौर पर नजर आएंगे।