मॉर्गन स्टैनले द्वारा जारी रिपोर्ट पर गौर फरमाया जाए तो बीएसई सेंसेक्स में अधिसूचित इन कंपनियों की आय में महज 6 फीसदी की बढ़ोतरी होने की आशंका है जबकि पिछली तिमाहियों में यह क्रमश: 19 फीसदी,16 फीसदी और 33 फीसदी रही थी।
यह आंकड़े अनुमान किए गए आकड़ों से भी कम हैं। कंपनियों केराजस्व में भी महज 24 फीसदी की वृध्दि दर्ज की गई जिसकी वजह ऑपरेटिंग प्रॉफिट के सिर्फ 1.84 फीसदी बढ़ने से रहा। अगर इस रिपोर्ट में 104 कंपनियों को शामिल किया जाए तो और स्याह तस्वीर समाने आती है।
कंपनी की शुध्द आय के नौ फीसदी की दर से बढ़ने का अनुमान है जो कि कंपनियों द्वारा मार्च 2008 में अर्जित किए गए लाभ 10 फीसदी से कम है। कंपनियों के ऑपरेटिंग प्रॉफिट में भी एक फीसदी की कमी आ सकती है। अगर बिजली सेक्टर को निकाल दिया जाए तो कंपनियों के वृध्दि के आंकड़े 11 फीसदी के साथ उत्साहजनक हैं। यह मार्च में अर्जित की गई बढ़त 25 फीसदी से काफी कम है। दुर्घटनावश इस तिमाही के राजस्व के भी 21 फीसदी की गति से बढ़ने के आसार हैं जो मार्च 2008 में अर्जित की गई बढ़त 25 फीसदी से काफी कम है।
रिपोर्ट कहती है कि ऑपरेटिंग मार्जिन के 0.5 फीसदी तक गिरने का अनुमान है। यह इंजीनियरिंग, सीमेंट, धातु, बुनियादी संरचना ,उपभोक्ता वस्तुओं का निर्माण करने वाली कंपनियों और स्टील जैसे सेक्टर को ज्यादा प्रभावित करेगा। सीमेंट और स्टील कंपनियां को पहले ही कोयले और कोक की कीमतों के बढ़ने की वजह से लागत में ऊंची कीमतों का सामना करना पड़ रहा है। बैंकों का लाभ धीमे वॉल्यूम ग्रोथ की वजह से कम रहने के आसार है।
बैंकों को अपनी इनवेस्टमेंट बुक में कमजोर नेट इंट्रेस्ट मार्जिन, गिरती क्रेडिट क्वालिटी और मार्क-टू-मार्केट घाटे का सामना करना पड़ सकता है। लेकिन वे कंपनियां जो हेल्थकेयर के कारोबार में हैं,उनके बेहतर प्रदर्शन करने की संभावना है क्योंकि उनके कारोबार में आयात की हिस्सेदारी काफी मात्रा में होती है और रुपये के डॉलर की तुलना में गिरने का लाभ उन्हे मिल सकता है।
यह भी संकेत मिल रहे हैं कि बढ़ती महंगाई से लोगों की खर्च करने की क्षमता भी प्रभावित हो रही है। उपभोक्ता आधारित कंपनियों को भी लाभ में कमी का सामना करना पड़ सकता है और उनका ऑपरेटिंग प्रॉफिट दबाव में हो सकता है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि आय में कमी होने की वजह से कंपनियों को ऑपरेटिंग मार्जिन में कमी केसाथ अन्य आय में कमी का भी सामना करना पड़ सकता है।
ऑटो- बेहतर चाल की तलाश
देश की सबसे ज्यादा कार बनाने वाली कंपनी मारुति सुजुकी की घरेलू बिक्री जून के महीनें में महज एक फीसदी ज्यादा रही। इसकी वजह रही कि छोटी कारों को खरीदार नहीं मिल रहे हैं।
मझोले दर्जे की कारों को भी बिक्री में दबाव का सामना करना पड़ा हालांकि उनकी बिक्री में 48 फीसदी की बढ़त देखी गई। यह संभव है कि ऊंची ब्याज दरें की वजह से लोग कार लोन लेने से कन्नी काटें क्योंकि ऊंची ब्याज दरों से कार लोन लेना अब महंगा हो गया है। इसके अलावा बढ़ती महंगाई ने लोगों की मांग को प्रभावित किया है।
इसके अलावा कुछ खरीददार दामों में बढ़ोतरी होने के बावजूद कार खरीदना जारी रख सकते हैं। मई की तीसरी सप्ताह में मारुति का डीलर इंवेंटरी लेवल 30 रहा जो औसत 20 से 22 से ज्यादा है। टाटा मोटर्स के लिए कारों की बिक्री भी कम रही जबकि कंपनी की कार इंडिका कार की बिक्री में इस महीने 27 फीसदी की गिरावट आई। यहां तक कि महिंद्रा एंड महिंद्रा जिनके बहुउपयोगी वाहनों की बिक्री अप्रैल और मई में 29 फीसदी की बढ़त के साथ बेहतर रही थी,जून के महीनें में यह महज सात फीसदी रही। टाटा मोटर्स के मझोले और भारी वाहनों की बिक्री 9 फीसदी के साथ बेहतर स्तर पर रही।
जबकि हल्के वाहनों की बिक्री 45 फीसदी ज्यादा रही। हालांकि इस रुख के बरकरार रखने के कम ही आसार हैं क्योंकि जून में डीजल और प्रेटोल की कीमतों की गई बढ़त का प्रभाव ट्रक परिचालकों की ऑपरेटिंग क्षमता पर पड़ेगा। इस सबके बावजूद हीरो हांडा ने बेहतर बिक्री जारी रखी और कंपनी की बिक्री में अनुमान से भी ज्यादा 16 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। दूसरी तरफ बजाज ऑटो की बिक्री में आयात को मिलाकर आठ फीसदी की बढ़त दर्ज की गई।