पिछले छह महीने में डॉलर के मुकाबले 0.16 फीसदी चढ़ने वाला रुपया जुलाई में फिर गिर सकता है। विश्लेषकों को लगता है कि चालू कैलेंडर वर्ष में प्रमुख केंद्रीय बैंकों ने दरें और भी बढ़ाने के जो संकेत दिए हैं, उनसे डॉलर मजबूत हो सकता है।
रुपये की चाल पर बिज़नेस स्टैंडर्ड द्वारा 10 प्रतिभागियों के बीच कराए गए सर्वेक्षण के नतीजों का औसत कहता है कि जुलाई अंत तक डॉलर के मुकाबले रुपया लुढ़ककर 82.05 तक जा सकता है। मगर अधिकतर प्रतिभागियों ने रुपया 82.25 तक गिरने की बात कही।
रुपया आज 82.02 प्रति डॉलर पर बंद हुआ। सोमवार को यह 81.96 पर बंद हुआ था, जो पिछले दो हफ्ते में इसका सबसे ऊंचा स्तर था।विश्लेषक मान रहे हैं कि आगे डॉलर सूचकांक मजबूत हो सकता है, जिसका असर रुपये पर पड़ेगा।
मेकलाई फाइनैंशियल सर्विसेज के उपाध्यक्ष रितेश भंसाली ने कहा, ‘हम देख सकते हैं कि ज्यादातर केंद्रीय बैंक उम्मीद के उलट सतर्क रुख पर कायम हैं और ब्याज दरों में वृद्धि का सिलसिला भी अभी पूरा होता नहीं दिखता। इसलिए अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोप में दरों में एक या दो बार इजाफा हो सकता है।’
विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के लगातार निवेश से साल के पहले 6 महीनों में रुपया करीब 70 पैसे मजबूत हुआ है। मगर कुछ विश्लेषक मान रहे हैं कि देश में वृद्धि के सकारात्मक अनुमान से विदेशी निवेशक शेयरों में बने रहेंगे और रुपये को दम मिल सकता है।
शिनहान बैंक में उपाध्यक्ष कुणाल सोढाणी ने कहा, ‘विदेशी निवेश का प्रवाह वाकई मजबूत बना हुआ है जिससे रुपये को भी सहारा मिल रहा है। साथ ही मुद्रास्फीति 2 से 6 फीसदी के संतोषजनक दायरे में रहने, वृद्धि की संभावना अच्छी होने और ब्रेंट क्रूड 70 से 80 डॉलर प्रति बैरल के दायरे में रहने का मतलब यह है कि भारत का वृहद आर्थिक परिदृश्य मजबूत है।’
भारतीय रिजर्व बैंक रुपये में उतार-चढ़ाव रोकने और डॉलर खरीदकर अपना विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाने की कोशिश कर रहा है, जिस कारण रुपये में अचानक तेजी आने के आसार नहीं हैं।
सीआर फॉरेक्स में प्रबंध निदेशक अमित पबरी ने कहा, ‘रिजर्व बैंक ने पहले भी ऐसा किया है। आगे भी रिजर्व बैंक डॉलर की ज्यादा आवक को अपने पास खींचने की कोशिश कर सकता है, जिसके कारण विदेशी मुद्रा भंडार मार्च के 560 अरब डॉलर से बढ़कर 593 अरब डॉलर हो चुका है। ऐसे में उसका रुख हाजिर बाजार से डॉलर की खरीद कर विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाने का हो सकता है।’
इस बीच ब्याज दर में अंतर कम होने से फारवर्ड प्रीमियम पर असर पड़ने के आसार हैं, जो अंत में भारतीय मुद्रा को प्रभावित करेगा। एक साल का फारवर्ड प्रीमियम घटकर 1.68 फीसदी रह गया है जो दिसंबर 2022 के बाद सबसे कम है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि अमेरिका में ब्याज दरें भारत की तुलना में ज्यादा बढ़ाई गई हैं।