भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने कंपनियों की सूचीबद्धता समाप्त करने से जुड़े नियम-कायदे आसान बना दिए हैं। बाजार नियामक के इस कदम से देश में विलय एवं अधिग्रहण प्रक्रिया पहले की तुलना में अब अधिक आसान हो सकती है। सेबी के निदेशक मंडल ने आज देश में सामाजिक क्षेत्र से जुड़ी कंपनियों के लिए सोशल स्टॉक एक्सचेंज बनाने की अनुमति भी दे दी। इसके अलावा गोल्ड स्टॉक एक्सचेंज की स्थापना का रास्ता भी साफ हो गया है। एक अन्य अहम निर्णय में सेबी ने संबंधित पक्ष लेनदेन से जुड़े नियम भी कड़े कर दिए हैं। इससे इस प्रकार के लेनदेन के बेजा इस्तेमाल पर अंकुश लग जाएगा। इसके अलावा सेबी ने अधिक मताधिकारों के साथ शेयर जारी करने संबंधी नियमों में भी ढील दी है। इस निर्णय से गैर-सूचीबद्ध तकनीकी कंपनियों के संस्थापक पूंजी जुटाकर अपनी कंपनियों में हिस्सेदारी बरकरार रख पाएंगे।
सेबी ने उद्योग जगत की एक पुरानी मांग भी मान ली है। बाजार नियामक ने किसी कंपनी का अधिग्रहण करने वाली इकाई को सूचीबद्धता समाप्त करने और खुली पेशकश एक साथ जारी करने की अनुमति दे दी है। विशेषज्ञों का कहना है कि सूचीबद्धता समाप्त करने से जुड़े नियमों में बदलाव के बाद मौजूदा व्यवस्था से खामियां दूर हो गई हैं। इस समय किसी सूचीबद्ध कंपनी में नियंत्रण हासिल करने वाली कंपनी को सार्वजनिक शेयरधारकों से 26 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने के लिए अनिवार्य रूप से खुली पेशकश लानी पड़ती है। खुली पेशकश के बाद अगर प्रवर्तकों की हिस्सेदारी 75 प्रतिशत से अधिक हो जाती है तो अधिग्रहणकर्ता को कंपनी की सूचीबद्धता समाप्त करने से पहले अपनी हिस्सेदारी 75 प्रतिशत से कम करनी पड़ती है। सूचीबद्धता समाप्त करने की पहल के समय अधिग्रहणकर्ता को अपनी हिस्सेदारी फिर 90 प्रतिशत तक करनी पड़ती है।
सूचीबद्धता समाप्त करने से जुड़े सेबी के निए नियमों पर जे सागर ऐसोसिएट्स में पार्टनर विक्रम राघानी ने कहा, ‘सूचीबद्धता समाप्त करने से जुड़े नियमों में ढील देकर सेबी ने विलय एवं अधिग्रहण की दिशा में आने वाली एक बड़ी बाधा दूर कर दी है। अधिग्रहण करने वाली कोई कंपनी अब व्यावसायिक रूप से तार्किक कीमत देकर सूचीबद्धता समाप्त करने की पहल कर सकती है। इस बड़े सुधार के बाद उन्हें बेवजह अधिक कीमत नहीं चुकानी होगी।’ एक साथ खुली पेशकश करने और सूचीबद्धता समाप्त करने की अनुमति देने के साथ ही सेबी ने पर्याप्त संतुलन भी स्थापित किया है। इससे सार्वजनिक शेयरधारकों के अधिकारों पर भी किसी तरह की आंच नहीं आएगी। उदाहरण के लिए अधिग्रहणकर्ता को खुली पेशकश करते वक्त ही सूचीबद्धता समाप्त करने के प्रयास से पहले इसकी वजह बतानी होगी। इसके साथ ही अधिग्रहण करने वाली कंपनी को दो अलग-अलग कीमतों का भी खुलासा करना होगा। इनमें एक कीमत खुली पेशकश के लिए और दूसरी सूचीबद्धता समाप्त कराने के लिए होगी।
सेबी ने कहा है, ‘अगर खुली पेशकश में निवेशकों की दिलचस्पी होने से सूचीबद्धता समाप्त करने के लिए 90 प्रतिशत की शर्त पूरी हो जाती है तो अपने शेयर बेचने वाले सभी शेयरधारकों को सूचीबद्धता समाप्त करने से जुड़ी एक समान कीमत दी जाएगी।’
