इस समय डाबर की एंटरप्राइजेज वैल्यू और बिक्री (ईवीबिक्री) का अनुपात तीन गुना से थोड़ा ही कम है।
कंपनी को स्किन केयर के क्षेत्र की प्रमुख कंपनी फेम केयर सस्ते में नहीं मिली है। यह भी सच है कि 15 फीसदी के ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन के साथ उसका कारोबार अच्छी स्थिति में है लेकिन उसकी प्राइस अर्निंग्स 2008-09 की अनुमानित कमाई के 18 गुने के स्तर काफी महंगी है।
इस सौदे की सबसे अच्छी बात यह है कि डाबर को इस अधिग्रहण के लिए उधार के फंड पर निर्भर नहीं रहना पड़ा। हालांकि कहा जा रहा है कि अच्छा होता की कंपनी यह 200 करोड़ रुपये अपनी बचा कर रखती। क्योंकि नुकसान में जा रहे रिटेल रोलआउट के लिए संसाधनों की आवश्यकता थी।
फेम केयर के अधिग्रहण से डाबर के प्रॉडक्ट पोर्टफोलियो में इजाफा होगा। इसमें ब्लीच, हेयर रिमूविंग क्रीम और लिक्विड सोप शामिल हैं। यह प्रॉडक्ट डाबर गुलाबरी के स्किन केयर रेंज के ही समान हैं। हालांकि गुलाबरी के प्रॉडक्ट हर्बल और आयुर्वेदिक सेगमेंट के हैं।
फेम केयर की रेंज कुछ विदेशी बाजार में भी उपलब्ध है। डाबर की कुछ विदेशी बाजारों में घुसपैठ है। हालांकि ये कंपनियां एक साथ काम कर सकती हैं। घरेलू बाजार की बात करें तो फेम केयर की रेंज के विज्ञापनों में किया जा रहा व्यय काफी अधिक है।
इस पर डाबर या फिर वाटिका द्वारा किए जा रहे विज्ञापनों में व्यय का फेम केयर के ब्रांडों पर कोई असर नहीं पड़ने वाला। बशर्ते कंपनी अपने किसी ब्रांड के नाम में कोई परिवर्तन न करे। इस समय फेम केयर के 3,500 वितरक हैं।
डाबर को शायद ही इतने वितरकों की आवश्यकता हो। उसका वितरण चैनल पहले ही काफी मजबूत है। वह ब्यूटी पार्लर चैन का किस सीमा तक उपयोग करेगा यह देखना होगा।
कुल फेम केयर से डाबर के पोर्टफोलियो में विस्तार हुआ है क्योंकि स्कीन केयर के क्षेत्र में उसकी उपस्थिति नहीं है। शायद डाबर के लिए भी यह अच्छा होगा कि नए ब्रांड बाजार में उतारने के बजाय पहले से ही स्थापित ब्रांडों की बिकवाली करे।
फर्स्टसोर्स: धीमी चाल
फर्स्टसोर्स के राजस्व में बैंकिंग और वित्तीय सेवा (बीएफएसआई) क्षेत्र एक चौंथाई योगदान रहता है।
यह देखते हुए अगर कंपनी अपने वायदे के अनुसार प्रदर्शन न कर पाए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। इसी के चलते 2008-09 में डॉलर के आधार पर किया गया राजस्व में 36 फीसदी वृध्दि का अनुमान अब 21 फीसदी के आसपास आ गया है।
हालांकि रुपये के आधार पर यह वृध्दि अधिक रहेगी। सितंबर की तिमाही में रुपये की कीमत में हुए भारी अवमुल्यन के बाद भी राजस्व वृध्दि महज चार फीसदी ही रही।
2007-08 में कंपनी का राजस्व 1,240 करोड़ रुपये का था। इस स्तर पर 2008-09 में पहुंचना उसके लिए मुश्किल होगा। इसकी वजह कंपनी द्वारा 2007-08 में अमेरिकी कंपनी मेडअसिस्ट का अधिग्रहण है।
कंपनी का आपरेटिंग मार्जिन भी दबाव में है। इसके 2007-08 के 15 फीसदी के स्तर को हासिल करने की संभावना कम ही है। इसकी वजह नए कारोबार को स्थापित करने में आया व्यय है।
इसके यह मायने हैं कि इस बीपीओ कंपनी राजस्व के मोर्चे में धीमी गति से आगे बढ़ेगी। 2007-08 में हासिल 35 फीसदी का स्तर इसके लिए मुश्किल होगा। उस दौरान कंपनी का मुनाफा 131.5 करोड़ रुपये था।
2008-09 के शुध्द लाभ में कंपनी को विदेशी मुद्रा विनिमय में हुए कागजी नुकसान का असर दिखाई नहीं देगा। क्योंकि उसने अपनी एकाउंट पॉलिसी में बदलाव किया था। इसके तहत सितंबर 2008 की तिमाही से कंपनी को विदेशी मुद्रा विनिमय में हुए कागजी नुकसान को ट्रांसलेटेड रिजर्व एकाउंट में ट्रांसफर कर दिया गया है।
अब इसका फायदा और नुकसान एकाउंट से कोई वास्ता नहीं है। इसी के चलते सितंबर की तिमाही में कंपनी को 28.28 करोड़ रुपये का शुध्द लाभ हुआ जबकि जून तिमाही में उसे 50 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था। सितंबर की तिमाही में कंपनी का विदेशी मुद्रा विनिमय में हुए कागजी नुकसान 108.33 करोड़ रुपये था।
कंपनी को मिलने वाले राजस्व में अब 40 फीसदी हेल्थकेयर सेगमेंट से आता है जिसमें तुलनात्मक दृष्टि से कम चरण हैं।