जनवरी 2008 से अब तक विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा भारतीय शेयर बाजार से 6 अरब डॉलर से भी ज्यादा भी पूंजी निकालने से शेयर बाजार अपने 15 महीनों के न्यूनतम स्तर पर आ गया।
एशियाई पूंजी बाजारों से पूंजी के तेजी से निकलने की वजह रही कि वैश्विक इक्विटी फंड जो अभी तक विदेशी संस्थागत निवेशकों की आंखो का तारा बना हुए थे, के निवेश में तेजी से कमी आई है। जून महीनें की शुरुआत में जहां निवेशकों ने जहां पूंजी लगाई लेकिन तेल की बढ़ती अंतरराष्ट्रीय कीमतों की वजह से निवेशकों ने एशियाई बाजारों से अपने हाथ खीचने प्रारंभ कर दिया।
शायद वैश्विक इक्विटी फंड ही ऐसे फंड रहे हैं जिन्होंने एशियाई बाजारों को सर्पोट दिया है। जबकि ग्लोबल इमर्जिंग मार्केट फंड ने एशियाई को अंडरवेट किया है। वैश्विक इक्विटी फंड द्वारा छ: महीने से लगातार जारी सर्पोट के बावजूद तेल की कीमतों में लगातार होती वृध्दि की वजह से एशियाई बाजार दबाव में चल रहे हैं। बढ़ती महंगाई ने इन बाजारों के दाद में खाज का काम किया है। वैश्विक बाजारों से आ रहे कमजोर रुझानों का मतलब है कि आगे भी निवेशकों द्वारा वैश्विक फंडों से पूंजी निकालने के पूरे आसार हैं।
भारतीय बाजार का कारोबार अभी वित्त्तीय वर्ष 2009 में अनुमानित आय से 13.5 गुना के स्तर पर हो रहा है जोकि 18 सालों के औसत 15.6 गुना से भी कम है। हालांकि कंपनियों का लाभ जोखिम पर है क्योंकि भारत तेल की बढ़ती कीमतों का सामना कर रहा है। इसलिए भारत अन्य क्षेत्रीय बाजारों की अपेक्षा ज्यादा बिकवाली का सामना कर रहा है। बाजार में जनवरी से अब तक 33.6 फीसदी की गिरावट आने की वजह से भारतीय बाजार का प्रदर्शन एशिया में चीन के बाद खराब प्रदर्शन करने वाले एशियाई देशों में दूसरे स्थान पर है।
सिटी ग्रुप द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक इक्विटी फंडों में एशियाई बाजारों के प्रति रुझान आठ फीसदी के स्तर पर रहा है। एशियाई देशों में हांगकांग,चीन,सिंगापुर, और भारत ने इस तरह के फंड की पूंजी को आकर्षित किया। जबकि कोरिया के बाजार के प्रति यह फंड अपना एक्सपोजर घटा रहा है। वैश्विक इक्विटी फंड,एशियाई फंडों की तुलना में ज्यादा तैयार हैं। इसकी वजह है कि वैश्विक इक्विटी फंडों के पास एशियाई फंडों से ज्यादा नगदी है।
ईपीएफआर के अनुसार एशियाई फंडों को आगे भी पूंजी के निष्कासन का सामना करना पड़ सकता है और एशियाई फंडों से करीब 1.5 अरब डॉलर की पूंजी बाहर जा सकती है जबकि वैश्विक इक्विटी फंडों को दबाव का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि फंड मैनेजर भारत और ताइवान के लिए अपना वेटेज घटा रहे हैं।
इंडियन होटल्स- दबाव में
होटल के रुम के लगातार गिरते किराए की वजह से देश की सबसे बड़ी होटल कंपनी का राजस्व दिसंबर 2002 के बाद अपने न्यूनतम स्तर पर आ गया है। इंडियन होटल्स के मार्च 2008 का राजस्व पिछले साल के इसी महीने के राजस्व से मात्र 10 फीसदी ज्यादा रहा है जबकि लाइसेंस फीस और अन्य खर्चों के कम रहने की वजह से कंपनी का ऑपरेटिग प्रॉफिट मार्जिन 2.7 फीसदी बढ़कर 44.7 फीसदी के स्तर पर रहा।
हालांकि ब्याज पर किए गए ज्यादा खर्च की वजह से वित्तीय वर्ष 2007-08 केलिए कंपनी का संचित राजस्व चार फीसदी गिरकर 355 करोड़ पर रहा। हालांकि कंपनी के राजस्व में बेहतर बढ़त देखी गई और यह 16 फीसदी बढ़कर 2,920 करोड़ रुपये रहा और ऑपरेटिंग मार्जिन भी 1.8 फीसदी बढ़कर 30.5 फीसदी पर रहा।
पिछले साल भारतीय होटल के कमरों के औसत मूल्य में 15.6 फीसदी की वृध्दि हुई थी और यह 10,674 करोड़ रुपये रहा था। बैंगलोर और हैदराबाद में होटल केकमरों की कीमतों में कमी आई है जबकि अन्य शहरों में होटल के कमरों के दामों में बढ़ोतरी देखी गई। हालांकि सबसे बड़े आठ शहरों में से किसी के होटलों के किरायों में इजाफा नहीं देखा गया है। इंडियन होटल्स के होटलों के कमरों का किराया 73 फीसदी गिरकर सपाट स्तर पर रहा।
अगले तीन से चार सालों में इंडियन होटल्स ने अपनी क्षमता में 6,000 और नए कमरों को शामिल करने का विचार बनाया है। कंपनी बैंगलोर,चेन्नई और तिवेंद्रम में नए होटल भी बनाने जा रही है। हालांकि कंपनी के कुछ प्रोजेक्ट अभी भी देरी से चल रहे है। कंपनी के ब्रांड होटल जिंजर के भी 11 होटल खुलेगें। हालांकि कंपनी के ये प्रोजेक्ट अपने समयावधि से देरी से चल रहे हैं। कंपनी ने विदेशों में भी मैनेजमेंट कांट्रेक्ट करने का मन बनाया है विशेषकर कंपनी का मध्यपूर्व और अमेरिका में अपनी पहुंच बनाने का विचार है।
कंपनी का अपने प्रसार में किया जाने वाला निवेश उच्च ब्याज दर की वजह से दबाव में रह सकता है और कंपनी के लाभ पर भी दबाव पड़ सकता है। कंपनी का 1400 करोड़ का राइट इश्यू लाने का विचार है। वर्तमान बाजार मूल्य पर कंपनी के स्टॉक का कारोबार वित्त्तीय वर्ष 2009 में अनुमानित आय से 11 गुना के स्तर पर हो रहा है।