शेयर बाजार में पिछले कुछ दिनों के कारोबार के दौरान 3,300 एक्टिव कंपनियों के स्टॉक की कीमतों ने अपने 52 हफ्तों के न्यूनतम स्तर को छुआ।
बड़े वित्तीय संस्थानों द्वारा फंड को कमोडिटी जैसे कच्चा तेल और सोने में बदलने की वजह से इन मजबूत कहे जाने वाले परंपरागत स्टॉक की कीमतों में पिछले दिनों के दौरान 52 हफ्तों की सबसे ज्यादा गिरावट देखी गई।
इस सूची में कुछ फ्रंटलाइन कंपनियां जैसे आईसीआईसीआई बैंक,टाटा मोटर्स, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, एचडीएफसी बैंक, रिलायंस कैपिटल,रिलायंस कम्युनिकेशंस, डीएलएफ और मारुति सुजुकी जैसी कंपनियां शामिल हैं। बीएसई द्वारा अधिसूचित की गई 55 से ज्यादा बड़ी कंपनियों के स्टॉक जिन्हें ए ग्रेड दिया गया है,अपने 52 हफ्तों के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गयी। अन्य 200 से भी अधिक मझोली एवं छोटी कंपनियों और 100 से भी अधिक पेनी स्टॉक कंपनियों के शेयरों के मूल्यों में भी गिरावट आई।
बीएसई में अधिसूचित 5,000 से भी अधिक कंपनियों में से 1,500 की सदस्यता नॉन-कम्प्लायंस इश्यू की वजह से रद्द की जा रही है। जबकि स्टॉक में 34 फीसदी से भी ज्यादा की गिरावट आई है या सूचकांक में जनवरी के उच्चतम स्तर से 7,400 से भी अधिक अंकों की गिरावट आई है तो इन कंपनियों के शेयरों की कीमतों में भी 40 से 70 फीसदी की गिरावट आई है। जियोजीत फाइनेंसियल सविर्सेज के उपाध्यक्ष गौरांग शाह का कहना है कि यह निवेश करने का बेहतर समय है।
निवेशकों को ऐसी कंपनियों की ओर रुख करना चाहिए जो सिंगल वर्टिकल पर निर्भर न हो और उन शेयरों को खरीदना चाहिए जिन्हे ये कंपनियां शिखर पर बेचना चाहती थी। शाह का कहना है कि लोगों को बाजार के इतने नीचे गिरने के बारे में अफसोस नहीं करना चाहिए क्योंकि इस बारे में किसी ने भी नहीं सोचा था। यदि मोतीलाल ओसवाल के प्रबंध निदेशक रामदेव अग्रवाल की बात मानी जाए तो ये फ्रंटलाइन स्टॉक अभी मंदी के साये से बाहर नहीं है।
कॉरपोरेट आय अभी भी 20 फीसदी की रफ्तार से बढ़ रही है और अर्थव्यवस्था के भी सात से आठ फीसदी के बीच बढ़ने के आसार हैं तो चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है। महंगाई भी साल के अंत तक कम होनी शुरु हो जाएगी क्योंकि भारतीय रिजर्व बैंक ने इसके लिए कुछ कदम उठाए हैं।