बीएसई में कारोबार कर रहे 59 फीसदी शेयर और एनएसई के 22 फीसदी शेयर इल्लिक्विड हैं यानी इनमें कारोबार बहुत कम होता है।
एक्सचेंज ने इन शेयरों में जून में हुए कारोबार के आधार पर यह कहा है। बीएसई और एनएसई में पिछले माह इन शेयरों के टर्नओवर में भारी गिरावट रही है। जनवरी 2008 में इन शेयरों में कुल 6000 करोड से ज्यादा का टर्नओवर था जो मार्च में घटकर 2950 करोड़ हुआ और जून में यह केवल 562 करोड रुपए का रह गया।
ऐसे इल्लिक्विड शेयरों की सूची सेबी के निर्देशों पर बीएसई, एनएसई और सेबी के बीच एक करार के तहत दी गई है। एक्सचेंज ऐसे शेयरों की सूची कारोबारी सदस्यों के लिए मासिक आधार पर जारी करता है ताकि इन शेयरों में कारोबार करते समय सावधानी बरती जाए। बीएसई ने ऐसे कुल 1585 शेयरों की सूची जारी की है जबकि एनएसई ने 304 शेयरों की सूची दी है। इनमें से कुछ शेयर दोनों ही एक्सचेंज में लिस्टेड हैं। बीएसई के यह 1585 शेयर एक्सचेंज के कुल शेयरों का 59 फीसदी बैठते हैं लेकिन मार्केट कैप और कारोबार की दृष्टि से इनकी हिस्सेदारी मात्र तीन फीसदी की है।
आमतौर पर जिन शेयरों में प्रमोटर होल्डिंग मजबूत होती है वे इल्लिक्विड होते हैं क्योंकि प्रमोटर इन में कारोबार नहीं करते हैं। इन 1585 में से 75 फीसदी यानी 1186 शेयर ऐसे हैं जिनमें प्रमोटर होल्डिंग 50 फीसदी से ज्यादा है जबकि 525 ऐसे हैं जिनमें यह 25 से 50 फीसदी के बीच है और केवल 174 शेयर ऐसे हैं जिनमें यह होल्डिंग 25 फीसदी से भी नीचे है। इस सूची के मुताबिक कुछ शेयर जैसे कुटॉन्स रिटेल, बीएल कश्यप, मधुकॉन प्रोजेक्ट्स, शॉपर्स स्टॉप और एसडी अल्यूमीनियम में कुछ समय पहले अच्छा वॉल्यूम थ। तब ये शेयर खबरों में थे।
इसी तरह स्टेट बैंक के सहयोगी बैंक में भी ठीकठाक कारोबार हो रहा था जब इनके विलय की बात चल रही थी। इस सूची में कुछ बहुराष्ट्रीय कंपनियां भी हैं जो इस समय बायबैक लिस्ट में हैं। जिलेट इंडिया, ब्लू डार्ट एक्सप्रेस और गोकलदास एक्सपोट्र्स अपनी कंपनियों को डीलिस्ट करने की प्रक्रिया में हैं। इसके अलावा इस सूची में गॉडफ्रे फिलिप्स इंडिया, क्रिसिल, ग्लैक्सो स्मिथक्लाइन जैसी कंपनियां हैं। किसी भी शेयर की लिक्विडिटी यानी तरलता से अर्थ होता है कि कितनी आसानी से कोई उसे बाजार में मौजूदा भाव पर खरीद या बेच सकता है।
लेकिन इल्लिक्विड शेयर यानी जिनमें वैसी तरलता नहीं है, उनके लिए बाजार भाव का ज्यादा अर्थ नहीं रहता। लिहाजा इन शेयरों में कारोबार ज्यादा जोखिम भरा होता है। खरीदार को ज्यादा कीमत देनी होती है जबकि बिकवाल को कम दाम मिल पाता है। तुरत-फुरत कारोबार करने के लिहाज से यह शेयर ठीक नहीं रहते, लिहाजा ऐसे शेयर ही खरीदने चाहिए जिन्हें लंबे समय तक रखा जा सके।