देश के सरकारी अस्पतालों में मंगलवार का दिन बेहद अलहदा रहा। कोविड-19 मरीजों के लिए कुछ हिस्सों की घेराबंदी की जा रही थी, वहीं दूसरी ओर अस्पताल के बेड, ऑक्सीजन संयंत्र में हलचल बढ़ती दिख रही थी। अतिरिक्त चिकित्सा कर्मचारियों को आपातकालीन स्थिति के लिए रखा जा रहा है क्योंकि देश में कोविड-19 के फिर से उभरने की स्थिति में जरूरी बुनियादी ढांचे का परीक्षण करने के लिए ‘मॉक ड्रिल’ की शुरुआत कर दी गई है। देश में फिलहाल कोविड-19 के केवल 3,421 सक्रिय मामले हैं और पिछले 24 घंटों में संक्रमण के 157 नए मामले सामने आए हैं।
कम जोखिम की स्थिति के बावजूद भारत ने ओमीक्रोन के उप-स्वरूप बीएफ.7 का संक्रमण तेजी से बढ़ने की स्थिति में सतर्कता बरतने का फैसला किया है। जब बिज़नेस स्टैंडर्ड के संवाददाताओं ने देश भर के सरकारी अस्पतालों का जायजा लिया तो इन अस्पतालों में तस्वीर मिली-जुली थी। कुछ अस्पतालों ने तैयारी का परीक्षण करने के लिए ‘वास्तविक स्थिति’ तैयार की गईं जबकि कई अन्य अस्पताल मरीजों के आने का इंतजार कर रहे थे।
गुजरात के सबसे बड़े सार्वजनिक अस्पतालों में से एक, अहमदाबाद में सरदार वल्लभभाई पटेल (एसवीपी) अस्पताल की पूरी एक मंजिल पर ही कोविड-19 मॉक-ड्रिल की तैयारी की गई थी। एसवीपी अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक संजय त्रिपाठी ने कहा, ‘हमने आईसीयू और वेंटिलेटर सुविधा वाले 20 बेड, ऑक्सीजन की सुविधा वाले 60 वॉर्ड बेड और आइसोलेशन के लिए अन्य 40 बेड तैयार किए हैं। लगभग 400 प्रशिक्षित कर्मचारियों को कोविड से जुड़ी सेवाएं के लिए अलग कर दिया गया है।’
इसी तरह की तैयारी के तहत, छह प्रेशर स्विंग एबजॉर्ब्पशन (पीएसए) ऑक्सीजन संयंत्रों में से चार को सक्रिय किया गया जबकि दो को आपात स्थिति के लिए रखा गया है और इसके अलावा अस्पताल परिसर में 20,000 लीटर तरल ऑक्सीजन टैंक चलाया जा रहा है। इसकी तुलना में, दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया के अस्पताल की तैयारी का जायजा लेने के कुछ घंटों बाद मॉक ड्रिल साइट पर कोई नजर नहीं आ रहा था।
सफदरजंग में 30 वेंटिलेटर काम कर रहे हैं और 44 बेड उपलब्ध हैं। मॉक ड्रिल की नर्स प्रभारी उर्मिला वर्मा ने कहा कि अधिक बेड की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि कोविड-19 के लक्षणों के साथ कम ही मरीज आ रहे थे। मंगलवार को उर्मिला वर्मा अपनी सात सदस्यीय टीम के साथ मरीजों के आने का इंतजार कर रही थीं। मांडविया ने सुबह अस्पताल का दौरा किया और कहा, ‘यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है कि चिकित्सा उपकरणों, इलाज की प्रक्रियाओं और मानव संसाधनों के संदर्भ में कोविड का बुनियादी ढांचा किसी भी आपात स्थिति में परिचालन के लिए कारगर है।’
मुंबई में कुछ अस्पतालों ने वास्तविक स्थिति जैसे हालात बनाने की कोशिश की। सेंट जॉर्ज अस्पताल के चिकित्सा अधिकारी विनायक सावडेकर ने कहा, ‘हमने कोविड-19 के लक्षणों वाले एक ‘मरीज’ को इस मॉक ड्रिल में शामिल करते हुए वास्तविक स्थिति बनाने की कोशिश की। उस मरीज की वर्चुअल आरटी पीसीआर जांच की गई और मॉक ड्रिल के तहत ही उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया। इस मॉक ड्रिल का मुख्य मकसद इस बात की जांच करना करना था कि क्या सभी सुविधाएं ठीक हैं। हमारे पास यह देखने के लिए अपनी चेकलिस्ट थी कि सभी प्रक्रियाओं का पालन किया जा रहा है।‘
भारत की वाणिज्यिक राजधानी मुंबई के सेवन हिल्स अस्पताल (1700 बेड) के सबसे बड़े कोविड-19 केंद्र ने नियमित आईसीयू प्रक्रियाओं, अस्पताल की ऑक्सीजन पाइपलाइन, आईसीयू उपकरणों के साथ-साथ मानव संसाधन के इंतजाम का जायजा लेते हुए मरीजों को भर्ती करने की प्रक्रिया से लेकर उन्हें आईसीयू बेड पर स्थानांतरित करने तक, सब तरह से परीक्षण किया। जेजे हॉस्पिटल ने भी अपनी एक्स-रे मशीनों और ऑक्सीजन आपूर्ति इकाइयों की जांच की कि वे काम करने की स्थिति में हैं या नहीं।
बीएमसी ने कहा कि उसने 10 नागरिक अस्पतालों, तीन सरकारी अस्पतालों और 21 निजी अस्पतालों की पहचान की है, जिनमें 2,124 आइसोलेशन बेड हैं और इनमें से 1,523 काम कर रहे हैं। अस्पतालों में 1,613 ऑक्सीजन वाले बेड हैं जिनमें से 1,021 काम कर रहे हैं। दिल्ली सरकार ने भी लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल में 2000 में से 450 बेड कोविड लक्षण वाले मरीजों के लिए आरक्षित किए हैं।
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि वर्तमान में राज्य सरकार के अस्पतालों में 8,200 कोविड बेड आरक्षित हैं और अगर जरूरत पड़ी तो बेड की क्षमता 25,000 से बढ़ाकर 36,000 कर दी जाएगी। सिसोदिया ने कहा कि इसके अलावा, राजधानी शहर में 6,000 से अधिक ऑक्सीजन सिलिंडर, ऑक्सीजन परिवहन के लिए ऑक्सीजन टैंकर और 928 टन मेडिकल ऑक्सीजन भंडारण क्षमता है।
भारतीय मेडिकल एसोसिएशन चाहता है कि सरकार डॉक्टरों और अग्रिम श्रेणी के स्वास्थ्य श्रमिकों को कोरोनारोधी टीके की चौथी (बूस्टर) खुराक देने पर विचार करे। इससे देश में कोविड के मामले बढ़ने की स्थिति में उन्हें सुरक्षा मिलेगी। आईएमए के अध्यक्ष जेए जयलाल ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि डॉक्टरों का बीती कोरोना लहर के दौरान कटु अनुभव रहा है। एहतियाती खुराक ले चुके इन लोगों को चौथी खुराक देना समझदारी भरा फैसला होगा। जयलाल ने कहा,’रक्षात्मक खुराक का असर करीब नौ महीने से लेकर साल भर तक रहता है। स्वास्थ्य कर्मियों के लिए यह अवधि पहले ही खत्म हो चुकी है। लिहाजा यह उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का उचित समय है।’
इस मामले पर सरकार ने अभी तक कोई योजना पेश नहीं की है। इस मामले पर लोगों की अलग-अलग राय है। आईएमए अध्यक्ष के अनुसार आम लोगों को बूस्टर खुराक मुहैया कराने के लिए कोई जल्दबाजी नहीं है। सरकार कई रोगों से पीड़ित लोगों के लिए इस बारे में सोच सकती है। टीकाकरण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह (एनटीएजीआई) में भारत के कोविड -19 कार्यकारी समूह के अध्यक्ष एन के अरोड़ा ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि चौथे टीके को एक एहतियाती खुराक के रूप में देने की जरूरत नहीं है।
जिन लोगों की उम्र 60 से अधिक है और दो खुराक लगवा चुके हैं, उन्हें एहतियातन तीसरी खुराक लेनी चाहिए। उन्होंने कहा,’दूसरे बूस्टर की कोई जरूरत नहीं है। यदि पिछली खुराक को लिए एक साल से अधिक हो चुका है तो ऐसी स्थिति में ठीक है। आम लोगों में हाइब्रिड रोग प्रतिरोधक क्षमता है , 97 फीसदी आबादी का प्राथमिक टीकाकरण हो चुका है और करीब 90-95 फीसदी को संक्रमण हो चुका है।’