facebookmetapixel
राशन कार्ड के लिए सरकारी दफ्तर जाने की जरूरत नहीं, बस ये ऐप डाउनलोड करेंQ2 results today: ONGC से लेकर Vodafone Idea और Reliance Power तक, आज इन कंपनियों के आएंगे नतीजेBihar Elections 2025: हर 3 में 1 उम्मीदवार पर है आपराधिक मामला, जानें कितने हैं करोड़पति!₹70 तक का डिविडेंड पाने का आखिरी मौका! 11 नवंबर से 10 कंपनियों के शेयर होंगे एक्स-डिविडेंडGroww IPO Allotment Today: ग्रो आईपीओ अलॉटमेंट आज फाइनल, ऐसे चेक करें ऑनलाइन स्टेटस1 अक्टूबर से लागू Tata Motors डिमर्जर, जानिए कब मिलेंगे नए शेयर और कब शुरू होगी ट्रेडिंगStock Market Update: शेयर बाजार की पॉजिटिव शुरूआत, सेंसेक्स 200 से ज्यादा अंक चढ़ा; निफ्टी 25550 के करीबअगर अमेरिका ने Google-Meta बंद किए तो क्या होगा? Zoho के फाउंडर ने बताया भारत का ‘Plan B’Stocks To Watch Today: Swiggy, HAL, Patanjali Foods समेत इन 10 दिग्गज कंपनियों से तय होगा आज ट्रेडिंग का मूडजियो, एयरटेल और वोडाफोन आइडिया ने सरकार से पूरे 6G स्पेक्ट्रम की नीलामी की मांग की

महामंदी : बचाव में आगे आएं डब्ल्यूटीओ

Last Updated- December 08, 2022 | 12:45 AM IST

वित्तीय बाजारों में मची उथल पुथल ने भारतीय शेयर बाजारों को चोट पहुंचाई है और रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले कमजोर भी हुआ है।


ऐसे में वाणिज्य मंत्री कमलनाथ भी अब यह उम्मीद कर रहे हैं कि इस वर्ष 200 अरब डॉलर के आयात लक्ष्य को पा लिया जाएगा। वहीं वित्त मंत्री को यह भरोसा है कि इस साल अर्थव्यवस्था 8 फीसदी की दर से विकास करेगी।

हालांकि दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की राय इस बारे में बिल्कुल साफ है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में तेजी से गिरावट देखी जा रही है जिसमें जोरदार वित्तीय झटकों का खासा योगदान रहा है। इस माहौल में भी ऊर्जा और जिंसों की कीमतें ऊंचाई पर बनी हुई हैं।

साथ ही आईएमएफ का यह मानना भी है कि कई विकसित अर्थव्यवस्थाएं या तो मंदी के काफी करीब हैं या फिर मंदी की ओर कदम बढ़ा रही हैं। ज्यादातार अर्थशास्त्रियों का मानना है कि मौजूदा वित्तीय संकट 1929 के ग्रेट डिप्रेशन यानी महामंदी के बाद सबसे बड़ा है जिसने चार सालों तक वित्तीय अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ रख दी थी।

कम ही लोग होंगे जो पक्के तौर पर यह बता सकें कि यह वित्तीय संकट कब तक चलने वाला है, हालांकि आईएमएफ को यह उम्मीद है कि अगले साल की दूसरी छमाही में स्थिति में बदलाव आना शुरू हो जाएगा। आईएमएफ के वर्ल्ड इकनॉमिक आउटलुक में निर्यातकों को सुझाव दिया गया है कि वर्तमान परिदृश्य में वे किन देशों का रुख कर सकते हैं।

इस रिपोर्ट के मुताबिक 2009 में वैश्विक विकास 3 फीसदी के करीब रहने का अनुमान है। पर उत्तरी अमेरिका, यूरोप और जापान जैसी विकसित अर्थव्यवस्थाओं में विकास दर शून्य या फिर ऋणात्मक भी हो सकती है, ऐसा अनुमान व्यक्त किया गया है।

पश्चिमी गोलार्ध्द में विकास दर 3.2 फीसदी, ब्राजील में 3.5 फीसदी, मेक्सिको में 1.8 फीसदी, पेरू में 7 फीसदी, उरुग्वे में 5.5 फीसदी और मध्य अमेरिका में 4.2 फीसदी रहने का अनुमान व्यक्त किया गया है। आईएमएफ का अनुमान है कि दक्षिण पूर्वी यूरोप के देशों में विकास दर 3.5 फीसदी के करीब रह सकती है और कम आय वाले मध्य एशियाई गणराज्य 10.5 फीसदी की दर से विकास कर सकते हैं। वहीं अफ्रीकी देशों के 6 फीसदी और पश्चिमी एशियाई देशों के 5.9 फीसदी की दर से विकास का अनुमान व्यक्त किया गया है।

वाणिज्य मंत्रालय पहले ही एक फोकस मार्केट योजना की शुरुआत कर चुका है जिसके तहत अफ्रीकी, लैटिन अमेरिकी और सीआईएस देशों को निर्यात में 2.5 फीसदी की सब्सिडी देने की व्यवस्था है। ब्राजील और अर्जेंटीना जैसे कुछ देशों को इस योजना में शामिल नहीं किया गया है।

हालांकि विकसित अर्थव्यवस्थाओं में घटती मांग को ध्यान में रखते हुए इन देशों को भी इस योजना में शामिल करना जरूरी है ताकि निर्यात को बढ़ावा दिया जा सके।हालांकि भारतीय वित्त मंत्री वैश्विक मंदी के बावजूद देश में विकास दर को लेकर आश्वस्त हैं।

इधर आईएमएफ ने भारत की अर्थव्यवस्था के इस साल 7.9 फीसदी और अगले साल 6.9 फीसदी की दर से विकास करने का अनुमान व्यक्त किया है। उभरते एशिया के लिए यह अनुमान 7.1 फीसदी का है जिसमें 9.3 फीसदी विकास दर के साथ चीन को सबसे आगे रखा गया है। इसका मतलब यह है कि इन देशों में निर्यात की संभावनाएं बेहतर हैं।

हालांकि जब विकास की रफ्तार धीमी होती है तो उस दौरान घरेलू उत्पादों की सुरक्षा के लिए निर्यात पर थोड़ा बहुत नियंत्रण रखने की कोशिश की जाती है। ऐसा ही कुछ ग्रेट डिप्रेशन के बाद देखने को मिला था। 1930 में स्मूट-हॉली टैरिफ ऐक्ट की वजह से 20,000 उत्पादों पर अमेरिकी टैरिफ बढ़ गया था और इस वजह से विभिन्न देशों के बीच कारोबारी युद्ध पैदा हो गया था।

हालांकि 1930 में जो हुआ वैसा इस बार होने की संभावना नहीं है क्योंकि विश्व व्यापार संगठन के 153 सदस्य देशों ने टैरिफ नहीं बढ़ाने को लेकर समझौता किया है। पर कई देशों में टैरिफ दर उस तय सीमा से भी काफी कम है जिस पर इन देशों ने समझौता किया है। इन देशों पर टैरिफ बढ़ाने का दबाव हो सकता है।

वहीं डब्लूटीओ के समझौतों में एंटी डंपिंग और सुरक्षा गतिविधियों को मंजूरी दी गई है। कुछ देशों में उत्पादों पर लगने वाली डयूटी से घरेलू उत्पादकों को 5 सालों के लिए छूट दी गई है। डब्लूटीओ के सदस्य देशों को मिलकर ऐसे कदम उठाने चाहिए ताकि 1930 के दौरान जो गलतियां हुई वे दोहराई न जा सकें।

First Published - October 20, 2008 | 12:36 AM IST

संबंधित पोस्ट