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क्या है शेयर हस्तांतरण के दांव पेच?

Last Updated- December 07, 2022 | 4:40 AM IST

विनिमय नियंत्रण नियमितताओं के प्रमुख विनियंत्रण के तहत वर्ष 2004 में सीमा-पार लेन-देन, जिसमें भारतीय कंपनियों का शेयर हस्तानांतरण भी शामिल है, के लिए बैंकों को अधिकृत डीलरों के रूप में चुना गया।


यह कुछ खास क्षेत्रों और विशेष मामलों को छोड़ कर एफआईपीबी और आरबीआई स्वीकृति के बगैर ऑटोमेटिक रूट के तहत हुआ। लेन-देन मूल्यांकन के लिए दिशा-निर्देशों में कोई बदलाव नहीं किया गया। किसी तरह के भटकाव की स्थिति में पार्टियां आरबीआई की अनुमति तलाशेंगी।

निस्संदेह रूप से नियामक जिम्मेदारियों और प्रक्रियाओं के सरलीकरण में बदलाव से एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश), नए मुद्दों या स्थानांतरण के लिए समय-सीमा घटी है। लेकिन गैर-सूचीबद्ध कंपनियों के लिए मूल्य संबंधी दिशा-निर्देश पूर्ववत बने हुए हैं। इसके बावजूद कैपिटल इनफ्लो ट्रेंडस, संरचना एवं निवेश विकल्प और वैश्विक मूल्यांकन मानकों में बदलाव आया है। क्या यह वास्तव में हास्यास्पद है ?

हम में से कुछ को याद होगा कि कंट्रोलर ऑफ कैपिटल इश्यूज (सीसीआई) अंकित मूल्य की तुलना में उच्च या निम्न कीमत वाले सभी शेयरों का नियामक है। मूल्य निर्धारण के उद्देश्य के लिए सीसीआई ने नेट एसेट वैल्यू (एनएवी) और प्रोफिट कैपेसिटी वैल्यू (पीईसीवी) प्रणालियों के औसत के आधार पर दिशा-निर्देश बनाए हैं। एनएवी नए सालाना लेखा के बुक वैल्यू पर आधारित है और पीईसीवी कर लाभ बाद के औसत पर आधारित है।

यहां तक कि एक अवरुद्ध अर्थव्यवस्था के सीमित दायरे में ये दिशा-निर्देश कई आलोचनाओं के घेरे में भी रहे हैं। ये दिशा-निर्देश अवास्तविक और असमान हैं। कॉमर्स का कोई भी छात्र यह जानता है कि एनएवी को अचल संपत्तियों के पुनर्मूल्यांकन की मान्यता नहीं हैं जब तक कि वे कई वर्ष पुरानी नहीं हों। इनके द्वारा उचित बाजार मूल्य को नहीं दर्शाया जाता जो उल्लेखनीय रूप से शेयर मूल्य से काफी कम होती है।

पीसीसीवी प्रणाली मैन्यूफेक्चरिंग एवं ट्रेडिंग कंपनियों के लिए विभिन्न दरों पर कर लाभ के बाद पूंजीकरण के लिए गलत आधार पर आगे बढ़ती है। वहीं इससे अलग दूसरी कंपनियां वित्तीय सेवाओं और लीजिंग गतिविधियों से जुड़ी हुई हैं। इसलिए निवासियों के शेयर अवमूल्यन के लिए बाध्य होंगे और यदि मूल्य संबंधी दिशा-निर्देशों को लेकर विचार की पेशकश की जाती है तो भारतीय विक्रेता इसके पक्ष में नहीं हैं।

गैर-निवासियों द्वारा निवासियों के लिए हस्तानांतरण के लिए मूल्य संबंधी दिशा-निर्देश मुहैया कराए जाते हैं जिसमें शेयरों के मामले में कीमत दो स्वतंत्र मूल्यांकनों (एक मूल्यांकन कंपनी के संविधिक लेखा परीक्षकों द्वारा और दूसरा चार्टर्ड अकाउंटेंट या कैटैगरी आई मर्चेंट बैंक द्वारा) से कम होनी चाहिए। मूल्यांकन प्रणालियों में प्रतिबंधों को नहीं रखा जाता है।

मेरा मकसद विभिन्न मूल्यांकन प्रणालियों या तौर-तरीकों की तुलना करना नहीं है, लेकिन सीसीआई दिशा-निर्देशों को बनाए रखने के निहितार्थ को समझना चाहिए जब डिरेग्युलेट मार्केट फोर्सेज की सुधार प्रक्रिया के तहत 1992 में  सीसीआई को समाप्त कर दिया गया था।

सीसीआई दिशा-निर्देशों की प्रासंगिकता समाप्त हो जाने के बाद उस वक्त इस पर विचार किया गया था। उस वक्त इन दिशा-निर्देशों में ऐतिहासिक आंकड़ों पर आधारित होने और  कंपनियों की क्षमता की अनदेखी करने जैसी खामियां पाई गई थीं। सेबी ने सीसीआई को बदला ताकि बाजार आधारित नियमन दृष्टिकोण को सूचीबद्ध कंपनियों के लिए प्रबल बनाया जा सके। ताजा मुद्दा या सूचीबद्ध शेयरों का हस्तानांतरण गैर-निवासियों द्वारा बिक्री के लिए पांच प्रतिशत के अंतर के साथ साप्ताहिक औसत दर के आधार पर निर्धारित है।

लेकिन हस्तानांतरण की यह प्रक्रिया उस स्थिति में बिल्कुल विपरीत है जब एक भारतीय कंपनी का विदेशी भागीदार या प्रवर्तक अपने भारतीय समकक्ष को यह बिक्री करता है। निवेशकों और जारीकर्ताओं के परिप्रेक्ष्य में मूल्य निर्धारण में मर्चेंट बैंकरों और चार्टर्ड अकाउंटेंटों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी।

आरबीआई ने निवासियों द्वारा गैर-निवासियों को हस्तानांतरण के लिए मूल्य अभिकलन में प्रणाली में लचीलापन लाए जाने को मान्यता दी है। लेकिन इसके लिए दो मूल्यांकन प्रणालियों की अनिवार्यता हो और ऐसे मूल्यांकन की लगभग 10 फीसदी तक अंतर की अनुमति दी गई है अन्यथा एडी या पार्टियों को इस अंतर को लेकर आरबीआई की अनुमति जरूरी है।

यदि अवमूल्यन से घरेलू विक्रेताओं को संरक्षण प्रदान करने का लक्ष्य हो तो एनएवी या पीईसीवी प्रणालियां ‘निष्पक्ष’ मूल्यांकन से परे हैं। दूसरा मामला एडी यानी अधिकृत डीलरों से जुड़ा है। एडी डेविएशन यानी विचलन की अनुमति के मामले में काफी उदार हैं। एडी निष्पक्ष मूल्यांकन से डेविएशंस को मंजूरी दे सकते हैं, भले ही नेगोशिएटेड प्राइस चार या पांच गुना अधिक हो।

नीति निर्माता प्रतिभूति बाजार से बाहर लेन-देन, पार्शल कैपिटल अकाउंट की परिवर्तनीय जटिलताओं का आकलन करने में विफल रहे हैं। केवाईसी यानी अपने ग्राहक को जानिए जैसी एंटी-मनी लाउंडरिंग पहले की गई हैं और बेसे कमेटी की मांगों में कहा गया है कि बैंकों को जोखिम आकलन को लेकन अपनी तैयारी करनी चाहिए। सिर्फ गैर-मानक एफडीआई पर ध्यान केंद्रित किया जाना इस समस्या का हल नहीं है और सीसीआई दिशा-निर्देशों को लेकर भारत गंभीरता से अमल नहीं कर रहा है।

First Published - June 9, 2008 | 12:05 AM IST

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