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विदेश में फिल्मों से अर्जित मुद्रा पर कर छूट

Last Updated- December 10, 2022 | 8:14 PM IST

सर्वोच्च न्यायालय ने आय कर विभाग की अपील को खारिज करते हुए फैसला दिया कि भारत से बाहर लीज पर फिल्मों के इस्तेमाल के अधिकार के स्थानांतरण से प्राप्त विदेशी मुद्रा आय कर अधिनियम 1961 की धारा 80एचएचसी के तहत कर कटौती के दायरे में आती है।
उधर विभाग का कहना था कि मूवी यानी फिल्म सामान नहीं हैं। इसलिए धारा 80एचएचसी उन मामलों में नहीं लगाई जा सकती जिनमें लाभ सिर्फ अनुदान के लिए हो। विभाग ने तर्क पेश किया कि कैसेट तो स्थानांतरण का सिर्फ एक माध्यम है, इसलिए यह बीटा-कैम फॉर्मेट में फिल्म की ‘बिक्री’ नहीं है।
फिल्म कंपनियों ने पांच साल की अवधि के लिए सिर्फ इस्तेमाल के अधिकार का स्थानांतरण किया है और यह हक निर्यातकों को मिला हुआ है। करदाताओं (बी सुरेश और अन्य) ने तर्क पेश किया कि कर कटौती या छूट में उन मामलों को शामिल किया जाता है जिनमें निर्यात से मुनाफा हासिल होता है और विदेशी मुद्रा अर्जित की जाती है।
न्यायालय ने इनके प्रति सहमति जताई और कहा कि इस्तेमाल अधिकार का स्थानांतरण व्यापार एवं वाणिज्य के अनुच्छेदों की श्रेणी में पड़ता है, इसलिए यह व्यापारिक माल है।
उपकरणों पर प्रवेश शुल्क
सर्वोच्च न्यायालय ने एडीसन ऐंड कंपनीज की उस अपील को खारिज कर दिया है जिसमें कर्नाटक सरकार द्वारा लेथ मशीन यानी खराद मशीन और खुदाई मशीनों के लिए जरूरी उपकरणों पर थोपे गए प्रवेश शुल्क को चुनौती दी गई थी। कंपनी ने दलील दी कि ये उपकरण उपभोग्य वस्तु हैं और वे किसी मशीन का हिस्सा नहीं हैं और न ही इन्हें ‘एक्सेसरीज’ के तौर पर परिभाषित किया जा सकता है।
कंपनी ने अनुरोध किया है कि खराद मशीन और खुदाई मशीनों की तरह ये मशीनें उपकरणों के बिना कोई भी कार्य करने में सक्षम नहीं हैं। ये उपकरण कुछ समय के बाद इस्तेमाल लायक नहीं रह जाते हैं और इन्हें हटा दिया जाता है। लेकिन कर अधिकारियों का मानना है कि ये उपकरण मशीनरी का हिस्सा हैं और एक्सेसरीज से जुड़ा कोई भी मामला कर के दायरे में आता है।
न्यायाधिकरण और उच्च न्यायालय ने सरकार के तर्क को स्वीकार कर लिया है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस नजरिये को बरकरार रखा है।
कंपनियों पर मुकदमे का मामला
अपराध में लिप्त पाई जाने वाली कंपनियों पर मुकदमा चलाया जा सकता है और उन पर जुर्माना लगाया जा सकता है। हालांकि उन्हें जेल नहीं भेजा जा सकता, क्योंकि वे ज्यूरिस्टिक पर्संस हैं। यह सिद्धांत बल्लारपुर इंडस्ट्रीज लिमिटेड बनाम स्टेट ऑफ तमिलनाडु मामले द्वारा दोहराया गया है।
‘स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक बनाम प्रवर्तन निदेशालय’ मामले के अपने 2005 के फैसले की चर्चा करते हुए न्यायालय ने कहा, ‘कंपनियों को अभियोजन से मुक्त नहीं रखा गया है, क्योंकि अभियोजन अपराध के संबंध में है जिसके लिए नियत सजा कारावास और जुर्माना अनिवार्य है। हालांकि कंपनी को जेल नहीं भेजा जा सकता, फिर भी उस पर मुकदमा चलाया जाएगा और न्यायालय इसके बदले उस पर जुर्माना लगा सकता है।’
जुर्माना नहीं चुकाए जाने का मामला
सर्वोच्च न्यायालय ने कस्टम्स ट्रिब्यूनल के आदेश के खिलाफ की गई अलेक्स एंटरप्राइजेज की अपील को खारिज कर दिया है। कस्टम्स ट्रिब्यूनल ने पूर्व जमा किए जाने वाले 42,90,226 रुपये सीमा शुल्क और 20,00,00 के जुर्माने को माफ किए जाने संबंधी कंपनी की याचिका को ठुकरा दिया था।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी इसकी अपील ठुकरा दी थी। कंपनी ने तर्क पेश किया था कि वह कस्टम्स और सेंट्रल एक्साइज डयूटीज ड्राबैक रूल्स के नियम 16(ए) के लाभ पाने की हकदार है और इसलिए ट्रिब्यूनल द्वारा दिया गया आदेश गलत है।
ट्रिब्यूनल ने कहा है कि कंपनी ने विलंब करने वाले तौर-तरीके अपनाए हैं और इस पूरे मामले को आठ साल तक खींच कर ले गई है। सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि इस मामले में कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग किया गया है।

First Published - March 15, 2009 | 10:15 PM IST

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