सर्वोच्च न्यायालय ने नई दिल्ली स्थित केंद्रीय उत्पाद बोर्ड के आयुक्त की एक अपील को खारिज कर दिया और सीमाशुल्क उत्पाद एवं स्वर्ण अपील न्यायाधिकरण(सीगैट) के फैसले को कायम रखा है।
न्यायाधिकरण ने अपने फैसले में कहा था कि ईशान रिसर्च लैब लिमिटेड द्वारा तैयार किए गए 16 उत्पाद आयुर्वेदिक दवाओं की श्रेणी में आते हैं जिन पर 10 फीसदी की दर से शुल्क वसूला जाना चाहिए।
राजस्व विभाग की यह दलील थी कि ये उत्पाद सौंदर्य प्रसाधन की श्रेणी में आते हैं जिनमें स्किन क्रीम, लोशन, मॉश्चराइजर्स और शैम्पू शामिल हैं। इस वजह से इन पर 40 फीसदी की दर से शुल्क वसूला जाना चाहिए। इन उत्पादों में बायो-एलोवीरा, बायो-सैफरॉन, बायो-सोया, बायो-वीट और बायो-वॉलनट शामिल है।
अधिकारियों का मानना था कि न्यायाधिकरण को इस मसले पर फैसला सुनाते वक्त सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व आदेशों को ध्यान में रखना चाहिए था और यह समझना चाहिए था कि ये उत्पाद आयुर्वेदिक दवाएं न होकर सौंदर्य प्रसाधन सामग्री हैं।
वहीं दूसरी ओर कंपनी की दलील थी कि इन उत्पादों को तैयार करते वक्त ड्रग्स और कॉस्टमेटिक्स ऐक्ट के प्रावधानों का पालन किया गया है और इस वजह से इन उत्पादों के उत्पादक को ड्रग्स लाइसेंस दिया जाना उचित है। सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले पर फैसला देते हुए राजस्व विभाग की याचिका को खारिज कर दिया।
मध्यस्थ की नियुक्ति
उच्चतम न्यायालय ने पिछले हफ्ते इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक फैसले को निरस्त कर दिया। उच्च न्यायालय के इस फैसले में केंद्र सरकार और टालसन बिल्डर्स के बीच एक मामले में विवाद को सुलझाने के लिए मध्यस्थ को नियुक्त करने का आदेश दिया गया था।
टालसन बिल्डर्स ने सैन्य अभियांत्रिकी सेवा(एमईएस) के लिए एक अनुबंध पूरा किया था। सरकार का कहना था कि उसने टालसन बिल्डर्स को आखिरी बिल में जितनी रकम बकाया थी सबका भुगतान कर दिया और कॉन्ट्रैक्टर ने भी भुगतान को बिना किसी आपत्ति के स्वीकार कर लिया।
पर बाद में कॉन्ट्रैक्टर ने विवादित रकम के निपटारे के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और आर्बिट्रेशन ऐंड कंसीलियेशन कानून के तहत एक मध्यस्थ को नियुक्त करने का अनुरोध किया। उच्च न्यायालय ने यह आग्रह मान लिया और उसकी नियुक्ति भी कर दी गई।
सरकार ने उच्चतम न्यायालय में अपील की और कहा कि उच्च न्यायालय का यह फैसला न्यायसंगत नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय से दोबारा से इस मसले पर विचार करने को कहा और पूछा कि जब पहले से ही बकाया को लेकर आखिरी निपटारा किया जा चुका है तो मध्यस्थ को नियुक्त करना कितना सही है।
तालमेल जरूरी
एलिजाबेथ जैकब बनाम जिला कलेक्टर के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार के विभिन्न विभागों के बीच आपसी तालमेल नहीं होने की आलोचना की है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि विभिन्न विभागों में आपसी प्रतिद्वंद्विता है और वे एक दूसरे का खयाल नहीं रखते हैं। इनमें आपसी मतभेद भी देखने को मिलता है।
राजस्व विभाग और वन विभाग, राजस्व विभाग और खनिज और खनन विभाग के बीच मतभेदों से सभी वाकिफ हैं। जब तक सरकार के विभिन्न विभागों के बीच आपसी तालमेल को बढ़ावा देने के लिए कदम नहीं उठाए जाते हैं तब तक उनके बीच साझेदारी बन पाना मुश्किल है।
अगर कोई कदम नहीं उठाया जाता है तो कानून का उल्लंघन करने वाले हमेशा ही बचते रहेंगे और इससे आखिरकार राष्ट्रीय संसाधनों का नुकसान ही होगा तथा सार्वजनिक हितों को चोट पहुंचेगी। इस मामले में जमीन के खरीदार को जमीन का कब्जा नहीं सौंपा गया था क्योंकि इस बात को लेकर विवाद था कि जमीन वन भूमि का हिस्सा है या नहीं।
हालांकि इस जमीन की बिक्री के लिए सरकार ने ही नीलामी करवाई थी। जमीन खरीदने वाले ने जमीन की कीमत पहले ही अदा कर दी थी पर बावजूद इसके कई सालों तक इस मसले पर विवाद जारी रहा। सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के उस फैसले को बनाए रखने को आदेश दिया जिसमें कहा गया था कि जब जमीन के मालिक पहले ही जमीन की रकम का भुगतान कर चुका है तो उसे उस जमीन का कब्जा सौंप दिया जाए।