facebookmetapixel
अगर इंश्योरेंस क्लेम हो गया रिजेक्ट तो घबराएं नहीं! अब IRDAI का ‘बीमा भरोसा पोर्टल’ दिलाएगा समाधानइन 11 IPOs में Mutual Funds ने झोंके ₹8,752 करोड़; स्मॉल-कैप की ग्रोथ पोटेंशियल पर भरोसा बरकरारPM Kisan Yojana: e-KYC अपडेट न कराने पर रुक सकती है 21वीं किस्त, जानें कैसे करें चेक और सुधारDelhi Pollution: दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण ने पकड़ा जोर, अस्पतालों में सांस की बीमारियों के मरीजों की बाढ़CBDT ने ITR रिफंड में सुधार के लिए नए नियम जारी किए हैं, टैक्सपेयर्स के लिए इसका क्या मतलब है?जैश-ए-मोहम्मद से जुड़ा बड़ा जाल फरीदाबाद में धराशायी, 360 किलो RDX के साथ 5 लोग गिरफ्तारHaldiram’s की नजर इस अमेरिकी सैंडविच ब्रांड पर, Subway और Tim Hortons को टक्कर देने की तैयारीसोने के 67% रिटर्न ने उड़ा दिए होश! राधिका गुप्ता बोलीं, लोग समझ नहीं रहे असली खेलIndusInd Bank ने अमिताभ कुमार सिंह को CHRO नियुक्त कियाहाई से 40% नीचे मिल रहा कंस्ट्रक्शन कंपनी का शेयर, ब्रोकरेज ने कहा- वैल्यूएशन सस्ता; 35% तक रिटर्न का मौका

ऑडिटरों की भूमिका तलाशने में नाकाम है कानून

Last Updated- December 09, 2022 | 11:06 PM IST

सत्यम घोटाला प्रमोटर के तानाशाह रवैये के कारण कंपनी संचालन के मामले में बदनाम हो गया। प्रमोटर ने अपने बेटों के व्यवसाय में निवेश को लेकर तानाशाह रवैया अख्तियार कर लिया था।


इस मामले में निदेशकों की खामोशी आलोचना के घेरे में आ गई थी, क्योंकि उन्होंने बोर्ड में बहादुरी का कार्य नहीं किया। पिछली बार जब मैंने इस संबंध में अपना कॉलम लिखा तो मेरे निराशावादी परिदृश्य को लेकर मुझे कई नकारात्मक प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं।

हालांकि सत्यम के संस्थापक रामलिंग राजू द्वारा किए गए ऐतिहासिक खुलासे के बाद मुझे जो प्रतिक्रियाएं मिलीं, वे पूर्व में की गईं निराशावादी टिप्पणियों के खंडन से जुड़ी थीं।

इस घटना से न सिर्फ वित्तीय धोखाधड़ी का खुलासा हुआ है बल्कि स्वतंत्र ऑडिटर प्राइस वाटरहाउस के आचरण पर भी सवाल उठे हैं, जो न तो इस धोखाधड़ी की रोकथाम कर सकी और न ही इसका पता लगाने में सफल रही।

भारतीय उद्योग जगत के इतिहास में शायद यह पहली बार है जब कोई जानी-मानी ऑडिट फर्म इतनी बड़ी वित्तीय अनियमितता के लिए दोषी पाई गई हो। हालांकि आर्थर एंडरसन इससे अनौपचारिक रूप से बाहर हो गई।

यह एनरॉन के पतन से उत्पन्न वैश्विक गिरावट का अप्रत्यक्ष प्रभाव था। 60 के दशक में कंपनीज ऐक्ट की धारा 227 में संशोधन किया गया था।

यह संशोधन बकाया ऋणों को भुगतान के रूप में दिखाने वाले सार्वजनिक कंपनियों के वित्तीय स्टेटमेंट, बिक्री और खरीदारी आदि के लिए फर्जी नकदी प्रविष्टि बनाने जैसी कार्य प्रणालियों की पृष्ठभूमि के खिलाफ ऑडिटरों को उचित निर्देश देने के लिए किया गया था।

कंपनी के कामकाज पर संभावित रूप से विपरीत असर डालने वाले मुद्दो पर ध्यान केंद्रित करने और ऑडिटरों की योग्यता को लेकर इस ऐक्ट में 1999 और वर्ष 2000 में भी संशोधन किया गया था। इंस्टीटयूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (आईसीएआई) ने ऑडिटरों की जिम्मेदारियों को लेकर ऑडिटिंग ऐंड एश्योरेंस स्टैंडर्ड-21 जारी किया है।

अर्थव्यवस्था के उदार होने के साथ और स्व-नियमन द्वारा सरकारी नियंत्रण में बदलाव के लिए मौजूदा कानूनों और नियमों में संशोधन के तौर पर कई समितियां बनाई गईं। लेकिन सिर्फ एक समिति ने ही सांविधिक ऑडिटरों और कंपनी संबंध पर अपना ध्यान विशेष रूप से केंद्रित किया।

यह समिति है नरेश चंद्रा कमेटी। इसकी रिपोर्ट में संबंध के विभिन्न पहलुओं से जांच की गई और इसमें ऑडिटेड खातों की अनियमित जांच, सांविधिक ऑडिट फर्मों और भागीदारों के रोटेशन जैसे मुद्दों पर उपाय सुझाए गए।

अब ऑडिटरों की भूमिका ऐक्ट के तहत निर्धारित है, लेकिन चार्टर्ड अकाउंटेंट्स एक्ट की धाराएं 21 और 22 के तहत दोषियों को आईसीएआई द्वारा दंडित किया जाता है।

इन ऑडिटरों को महत्त्वपूर्ण तथ्यों का खुलासा करने में विफल रहने, या गलत स्टेटमेंट दिखाने जैसी पेशेवर त्रुटियों की स्थिति में आईसीएआई प्रतिबंधित कर सकता है।

मौजूदा प्रावधान ऑडिटरों की भूमिका का पता लगाने के लिए समग्र रूप से पर्याप्त नहीं हैं। हालांकि ऑडिटर के खिलाफ ऐसे मामले कम ही दर्ज किए जाते हैं। 1968 में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष एक ऐसा ही मामला आया था।

लेकिन इस मामले में कंपनी के प्रोविडेंट फंड अकाउंट से लिए गए ऋण में गड़बड़ी के बारे में जानकारी नहीं दिए जाने के दोषी ऑडिटर को महज एक फटकार के साथ बरी कर दिया गया था।

प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों के मामलों, जहां शेयरधारकों को खातों तक पहुंच बनाने, अंदरूनी नियंत्रण में हस्तक्षेप करने की आजादी नहीं होती, में ऑडिटरों की रिपोर्ट सिर्फ निवेश ज्ञान और संरक्षण के लिए ही उपलब्ध होती है।

पब्लिक लिमिटेड कंपनियों के मामले में, जिनमें निवेशक प्रबंधन से जुड़े नहीं होते, ऑडिटर एक नियामक की भूमिका निभाता है।

निवेशकों और ऑडिटरों के बीच किसी तरह का अनुबंधात्मक संबंध नहीं है। इसलिए जब तक यह साबित नहीं हो जाता है कि उनके नुकसान के लिए ऑडिटरों की निष्क्रियता जिम्मेदार है, उनके खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई को आगे बढ़ाना आसान नहीं होगा। प्राइस वाटरहाउस का भविष्य सत्यम के प्रबंधन पर की जाने वाली कार्रवाई पर निर्भर करता है।

First Published - January 25, 2009 | 10:54 PM IST

संबंधित पोस्ट