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शोध के इंतजाम में जुटा इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस

Last Updated- December 08, 2022 | 7:45 AM IST

इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस (आईएसबी) शोध के लिये एक ऐसा मंच तैयार कर रहा है जहां विभिन्न बी स्कूलों के शिक्षक और विद्वान शोध परियोजनाओं पर साथ मिलकर काम कर सकेंगे।


रिचर्ड आइवी स्कूल ऑफ बिजनेस के एसोसिएट प्रोफेसर और आईएसबी में विजिटिंग फैकल्टी चार्ल्स धनराज ने बिानेस स्टैंडर्ड को बताया इस प्रस्तावित मंच को तैयार करने के लिए 50 करोड़ रुपये का खर्च आएगा।

संस्थान इस परियोजना को तैयार करने के लिए फंड इकट्ठा करने के लिए कुछेक प्रमुख आईटी कंपनियों और कुछ पूंजीपतियों से बात कर रही है।

धनराज ने कहा, ‘यह शोध मंच कुछ ही हफ्तों में तैयार कर लिया जाएगा पर परिणाम सामने आने में करीब चार साल लगेंगे। आंकड़े इकट्ठा करने और थीसिस तैयार करने में दो साल लगेंगे, जिसकी बाद में समीक्षा की जाएगी।’ इस मंच के जरिये फैकल्टी शोध से निकल कर सामने आने निष्कर्षों को अंतरराष्ट्रीय जर्नल में भी प्रकाशित कर सकेंगे।

इस प्रस्तावित इकाई के पास जो फैकल्टी और शोधार्थी होंगे वे भारतीय बी स्कूलों के साथ साथ विदेशों से भी होंगे। इसमें भारतीय प्रबंधन संस्थान के शिक्षक भी शामिल होंगे।

इसके तैयारी को लेकर आईएसबी अगले महीने एक फैकल्टी विकास कार्यक्रम भी आयोजित कर रहा है।

एक मार्गदर्शक की उपस्थिति में 150 घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बिजनेस स्कूलों के शिक्षक और शोधकर्मी इस कार्यक्रम में शिरकत करेंगे और अपने शोध एजेंडा को लेकर चर्चा करेंगे। इस सम्मेलन में आगे की शोध परियोजनाओं के लिए भी मुद्दों पर चर्चा की जाएगी।

आईएसबी के पास अब तक शोध के लिये 40 विषयों पर प्रस्तुतिकरण आ चुके हैं और संस्थान को लगता है कि इनमें से कम से कम 50 फीसदी विषयों पर शोध किया जा सकता है।

उन्होंने कहा, ‘फिलहाल विचारों पर ध्यान नहीं दिया जाता है। कोई नया शोध भी नहीं हो रहा है। पश्चिमी देशों में तो शिक्षा कर्मियों के लिये शोध कार्यों में भाग लेना अनिवार्य होता है, पर भारत में ऐसा कुछ नहीं है। भारत में शिक्षक अपना ज्यादातर समय बस पढ़ाने में ही लगाते हैं।’

इस इकाई के जरिये पश्चिमी देशों के बी-स्कूल भारतीय शिक्षकों को ज्यादा से ज्यादा शोध परियोजनाओं में हिस्सा लेने में मदद करेंगे। वहीं दूसरी ओर भारत के बी-स्कूलों से अंतरराष्ट्रीय जगत को यह समझने में मदद मिलेगी कि देश के शिक्षाकर्मियों का क्या स्तर है।

साथ ही वे भारत और चीन जैसे विकासशील देशों के बारे में दूसरे देशों को जानकारी दे सकेंगे।धनराज ने कहा, ‘हमें कुछ नया करने की जरूरत है क्योंकि दुनिया भर में कारोबार स्कूलों के ढ़ाचे और शिक्षण व्यवस्था में तेजी से बदलाव आ रहा है।

उदाहरण के लिये अमेरिका में जहां सारा फोकस शिक्षा कार्यक्रमों के लिये वित्तीय संसाधन जुटाना है, वहीं अब भी वहां शोध का महत्व कम नहीं हुआ है। यूरोप में भी कई नए स्कूल खुल रहे हैं और वे विदेशी स्कूलों के साथ साझेदारी करना चाह रहे हैं।

भारत में भले ही ज्यादातर शिक्षक शोध कार्यों से दूर हैं फिर भी शिक्षा का स्तर अब भी कई देशों की तुलना में यहां बेहतर है। और आईआईएम केंद्र खोले जाने के बीच देश में और प्रशिक्षित और दक्ष शिक्षाकर्मियों की जरूरत होगी। ‘

First Published - December 7, 2008 | 11:32 PM IST

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