सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ की गई आयकर आयुक्त की अपील को खारिज कर दिया है। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने एनरॉन ऑयल ऐंड गैस इंडिया लिमिटेड के खिलाफ कर आयुक्त का दावा खारिज कर दिया था।
केमैन द्वीप में स्थित यह कंपनी तेल की खोज का काम करती है। उसने पेट्रोलियम मंत्रालय की पेशकश पर रियायती आधार पर ब्लॉकों के विकास के लिए तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग (ओएनजीसी) के साथ मिलकर एक कंसोर्टियम यानी समूह बनाया।
इसके लिए एक प्रोडक्ट शेयरिंग कॉन्ट्रेक्ट किया गया। इस विदेशी कंपनी ने रिटर्न दाखिल करते समय मुद्रा विनिमय के आधार पर घाटा दिखाया था। विभाग ने इसे खारिज कर दिया।
उसका कहना था कि यह महज एक बुक एंट्री है, न कि वास्तविक घाटा। विभाग को उच्च न्यायालय में सफलता हाथ नहीं लगी। सर्वोच्च न्यायालय ने भी विभाग के इस तर्क को ठुकरा दिया है।
अनुबंध पर विचार करते हुए न्यायालय ने कहा कि विदेशी कंपनी जिसने निवेश पूंजी मुहैया कराई थी, ने पहली बार जो तेल प्राप्त किया वह ‘कॉस्ट ऑयल’ के तौर पर था। अक्सर कोई कंपनी न सिर्फ ‘प्रॉफिट ऑयल’ से लाभ हासिल करती है बल्कि कॉस्ट ऑयल से भी मुनाफा हासिल करती है।
ऐसे लाभ को ट्रांसलेशन लॉस यानी मुद्रा विनिमय में हुए नुकसान का आकलन किए बगैर सुनिश्चित नहीं किया जा सकता। इसलिए ट्रांसलेशन लॉस को काल्पनिक नहीं माना जा सकता है।
चीनी मिलें
सर्वोच्च न्यायालय ने तमिलनाडु में चीनी मिलों से जुड़े कई मामलों में यह फैसला दिया है कि उन्हें प्राप्त होने वाली प्रोत्साहन सब्सिडी पूंजीगत आय है और इसे कुल आय में शामिल नहीं माना जा सकता।
आयकर आयुक्त बनाम वीएस पोन्नी शुगर्स ऐंड केमिकल्स के मामले में मिलों का तर्क स्वीकार करते हुए फैसले में कहा गया , ‘प्रोत्साहन सब्सिडी के भुगतान के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए हम इस बात से सहमत हैं कि इस स्कीम के तहत भुगतान की प्राप्ति व्यापार के दौरान नहीं हुई बल्कि यह एक पूंजी है।’
ऐसे मामलों में जो दूसरा सवाल उठाया गया है, वह यह है कि क्या सोसायटी के सदस्यों से प्राप्त ब्याज के संबंध में आय कर अधिनियम की धारा 80 पी (2)(ए)(1) के तहत कर दाता छूट का हकदार है।
सर्वोच्च न्यायालय ने इसका भी उल्लेख किया है कि राज्य की सहकारी चीनी मिलों की ओर से दाखिल किए गए मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन की मद्रास उच्च न्यायालय समेत किसी भी प्राधिकरण ने जांच नहीं की। धारा 80 पी (1) के तहत सहकारी समितियों की आय पर कटौती प्रदान की गई है।
चूंकि इस पहलू पर बिल्कुल विचार नहीं किया गया, न्यायालय ने इस पर पुनर्विचार के लिए इस मामले को ट्रिब्यूनल को भेज दिया।
सौराष्ट्र एक्सचेंज
सर्वोच्च न्यायालय ने सहायक आयकर आयुक्त बनाम वीएस सौराष्ट्र कच्छ स्टॉक एक्सचेंज के मामले में गुजरात उच्च न्यायालय के फैसले को को वैध ठहरा दिया है।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि ट्रिब्यूनल आय कर अधिनियम की धारा 254 (2) के तहत अधिकार के इस्तेमाल और ‘रिकॉर्ड में किसी गलती’ को सुधारने के प्रति वचनबद्ध नहीं है।
शुरू में एक्सचेंज को एक कल्याणकारी संस्था के रूप में छूट हासिल नहीं थी। लेकिन बाद में एक्सचेंज को यह छूट प्रदान कर दी गई। इसे अधिकारियों की ओर से चुनौती दी गई है।
उच्च न्यायालय ने उनकी दलील ठुकरा दी। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय ने जो फैसला दिया था, वह सही है।
दुर्घटना मुआवजा
सर्वोच्च न्यायालय ने मद्रास उच्च न्यायालय के एक फैसले के खिलाफ यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी को अपील को स्वीकार कर लिया। उच्च न्यायालय ने बीमा कंपनी को एक वाहन दुर्घटना में हुई मौत के मामले में दावेदार को मुआवजा राशि का भुगतान करने का आदेश दिया था।
उच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि कंपनी की देयता से ऊपर जो राशि बनती हो उसे दुर्घटना में शामिल वाहन के मालिक से वसूला जाए। न्यायाधीश ने कहा, ‘ बीमाकंपनी की सांविधिक देयता की तुलना में असीमित या उच्च देयता उसी मामले में लागू होगी जब एक विशेष अनुबंध किया गया हो और वाहन के मालिक ने अतिरिक्त प्रीमियम का भुगतान किया हो।’
लघु जमाकर्ता
सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय रिजर्व बैंक और डिपोजिट इंश्योरेंस ऐंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन की उन अपील को खारिज कर दिया है जिनमें राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के फैसले को चुनौती दी गई थी। आयोग ने छोटे जमाकर्ताओं के साथ ठीक से बर्ताव न किए जाने पर उनकी आलोचना की थी।
