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होगा कोई डिफाल्टर तो कर्ज चुकाएगा गारंटर

Last Updated- December 05, 2022 | 7:14 PM IST

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि अगर कोई व्यक्ति जो ऋण के लिए इच्छुक व्यक्ति की गारंटी देता है, तो वह व्यक्ति मूल कर्जदार के डिफॉल्ट करने यानी कर्ज न चुकाने पर बची हुई रकम का भुगतान करेगा।


अनुबंध कानून की धारा 130 के प्रावधान, जिसमें व्यक्ति को संविदा के अस्तित्व के दौरान गारंटी को खत्म करने का अधिकार है, यह भी ऐसे गारंटर की मदद नहीं कर पाया, जब गारंटर सीता राम गुप्ता की  इस दलील को खारिज किया गया।


गुप्ता ने दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश, जिसमें कहा गया कि पंजाब नैशनल बैंक द्वारा मूल कर्जदार को दिए गए की ऋण की बकाया राशि का भुगतान गुप्ता करेंगे, के खिलाफ यह अपील की थी। उच्च न्यायालय ने गुप्ता की इस दलील को खारिज कर दिया था कि वे इस भुगतान के लिए जिम्मेवार नहीं हैं, क्योंकि उन्होंने बाद में गारंटी वापस ले ली थी। बताया गया है कि गुप्ता ने बैंक के साथ कर्जदार के लिए ‘सतत गारंटी’ को बढ़ाने के लिए अनुबंध किया था, अब वे अपनी जिम्मेवारी को छोड़ नहीं सकते।


जयपुर उद्योग


दो दशक से अधिक समय तक की कानूनी कार्यवाही के बाद, सर्वोच्च न्यायालय ने औद्योगिक एवं वित्तीय पुनर्निर्माण के अपील अधिकारी को जयपुर उद्योग लिमिटेड की कार्यवाही खत्म करने के खिलाफ अपील पर ध्यान देने को कहा, जिसमें बीमार कंपनी को 10 करोड़ रुपये की राशि मुहैया कराने की बात की गई थी। यह आदेश सीमेंट वर्कर्स कर्मचारी संघ की अपील में दिए गए, जबकि कर्मचारियों के एक वर्ग ने पुनर्वास योजना को स्वीकार कर लिया था।


इस मामले के निपटारे में देरी होने की वजह से ‘लेनदारों को बेहद क्षति और कर्मचारियों को बहुत तनाव हुआ है।’ इस विलंब के चलते सिर्फ सिर्फ कंपनी और प्रतिस्पर्धी योजना, गेनन डंकरली लिमिटेड के प्रमोटर को ही मुनाफा हुआ है। अदालत ने इस मामले में कर्मचारियों की शिकायतों पर कार्यवाही करने के लिए सेवानिवृत्त जस्टिस एन एन माथुर की नियुक्ति आर्बिट्रेटर के रूप में की है।


सिंको इंडस्ट्रीज


सर्वोच्च न्यायालय ने सिंको इंडस्ट्रीज की अपील को खारिज कर दिया। कंपनी ने बम्बई उच्च न्यायालय के निर्णय के खिलाफ यह अपील दर्ज की थी, जिस निर्णय में अदालत ने मुंबई आयकर ट्रिब्यूनल ने कंपनी को कर में छूट देने के निर्णय को सही ठहराया था। कंपनी की राजस्थान में तेल और रसायन इकाइयां हैं। कंपनी ने इन दोनों में ही मुनाफा कमाया है, लेकिन अपने तेल विभाग में शुरुआती कुछ सालों में कंपनी को नुकसान उठाना पड़ा था।


कंपनी ने यह रियायत आयकर कानून की धारा 80 एचएच और 80-आई के तहत मांगी थी और दावा किया था कि इकाइयों को अलग से समझना चाहिए और शुरुआती वर्षों में तेल विभाग को हुए नुकसान को रसायन विभाग के मुनाफे के खिलाफ समायोजित नहीं करना चाहिए। मूल्यांकन अधिकारी ने देखा कि कुल सकल आय कटौती से पहले शून्य थी और इसलिए उन्होंने रियायत देने से मना कर दिया।


सर्वोच्च न्यायालय ने ट्रिब्यूनल और उच्च न्यायालय के दृष्टिकोण की पुष्टि करते हुए कहा कि कंपनी कुल सकल आय को पहले नुकसान घटाकर निर्धारित किया जाना चाहिए और तब अगर कंपनी की कुल सकल आय निल होती है, तब कंपनी आयकर कानून के चैप्टर 6-ए के तहत रियायत प्रापत कर सकती है।


लोहिया शीट्स


कस्टम अधिकारियों को सर्वोच्च न्यायालय से निर्देश मिला है कि वे लोहिया शीट प्रोडक्ट्स से लिया गया शुल्क वापस करें। कंपनी अपने विनिर्माण हस्त व्यापार से तांबे और पीतल के अपशिष्ट यानी वेस्ट का आयात करने पर शुल्क पर छूट की हकदार थी। अधिकारियों का कहना है जुलाई 1996 अधिसूचना के तहत छूट सिर्फ फैक्टरी में उत्पादन के दौरान बनने वाले स्क्रैप पर ही उपलब्ध है और आयातित वेस्ट पर नहीं।


कंपनी का इस पर कहना है कि उसने आयात के समय शुल्क का भुगतान किया था और उसे प्रतिकारी शुल्क के भुगतान के बारे में नहीं कहा गया था, जैसा कि दो चरणों में शुल्क देना पड़ता है। कंपनी का कहना था कि इस तरह के दोहरे भुगतान पर सर्वोच्च न्यायालय ने 1999 में हैदराबाद इंडस्ट्रीज के मामले में रोक लगा दी थी। सर्वोच्च न्यायालय ने इस दावे को मानते हुए उस इस अपील को भी स्वीकार कर लिया।


बड़जात्या स्टील


बड़जात्या स्टील इंडस्ट्रीज पर उत्तर प्रदेश के बिक्री कर आयुक्त द्वारा लगाए गए जुर्माने को सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी सहमति दे दी। दरअसल कंपनी ने रेलवे से एक सार्वजनिक नीलामी में कर की रियायती दरों पर पर लौह स्क्रैप खरीदा और उसे किसी अन्य व्यक्ति को बेच दिया। कंपनी स्टील इंगोट बनाने वाली कंपनी है और अपने कंपनी लगभग 90 प्रतिशत इस्पात स्क्रैप को पिघला कर उससे बेचने लायक उत्पाद बनाती है।


कंपनी ने बचे हुए स्क्रैप, जिसका वजन 2,533 टन था, उसे बिना निर्धारण प्राधिकारी को सूचित किए बेच दिया। इसलिए प्राधिकरण ने गैर-कानूनी तरीके से स्क्रैप बेचने पर कंपनी पर जुर्माना लगाया।


कंपनी ने इस पर कहा कि जो बेचा गया, वह किसी काम का नहीं था और चूंकि नीलामी ‘जैसा है जहां है आधार’ पर थी, इसलिए स्क्रैप की वह गुणवत्ता भी नहीं परख सकी थी। जबकि दूसरा खरीदार उसी नकारे गए स्क्रैप से ही माल बनाएगा। इसलिए, ‘दोषी मस्तिष्क से बिक्री की गई’,  सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि जुर्माना उचित है।

First Published - April 7, 2008 | 1:29 AM IST

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