उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को कहा कि वह इस विषय पर विचार करेगा कि क्या किसी कानून की वैधता को चुनौती देने वाले संगठनों या व्यक्तियों को उसी मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन करने की अनुमति है जब मामला विचाराधीन हो। तीन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे एक किसान संगठन की याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने पूछा कि वे किसलिए विरोध कर रहे हैं जब उसने इन कानूनों पर पहले ही रोक लगा दी थी। किसान संगठन ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर सत्याग्रह करने की अनुमति देने के लिए अधिकारियों को निर्देश देने का भी अनुरोध किया है।
इसके अलावा अदालत ने सोमवार को 43 किसान संगठनों और राकेश टिकैत, दर्शन पाल तथा गुरनाम सिंह सहित उनके विभिन्न नेताओं को हरियाणा सरकार के उस आवेदन पर नोटिस जारी किए जिसमें आरोप लगाया गया है कि वे दिल्ली की सीमाओं पर सड़कों की नाकेबंदी का मुद्दा हल के लिए राज्य पैनल के साथ बातचीत में शामिल नहीं हो रहे हैं।
न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार के पीठ ने कहा कि कानूनों की वैधता को न्यायालय में चुनौती देने के बाद ऐसे विरोध प्रदर्शन करने का सवाल ही कहां उठता है। पीठ ने अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल से पूछा कि एक बार एक पक्ष ने कानून की वैधता को चुनौती देने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है तो विरोध के लिए जाने का सवाल ही कहां उठता है। वेणुगोपाल ने कहा, ‘वे एक समय दो नावों की सवारी नहीं कर सकते।’ अटॉर्नी जनरल ने रविवार की लखीमपुर खीरी घटना का जिक्र किया, जिसमें आठ लोग मारे गए थे। इस पर उच्चतम न्यायालय ने कहा कि ऐसी कोई घटना होने पर कोई इसकी जिम्मेदारी नहीं लेता। वेणुगोपाल ने कहा कि सरकार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे इन तीन कानूनों को वापस नहीं लेने जा रही हैं और इसलिए याचिकाकर्ता के पास इन कानूनों को चुनौती देने का विकल्प है। वहीं, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कोई मामला जब सर्वाेच्च संवैधानिक अदालत के समक्ष होता है तो उसी मुद्दे को लेकर कोई भी सड़क पर नहीं उतर सकता। याची के वकील अजय चौधरी ने पीठ से कहा कि याची न तो उन प्रदर्शनकारियों का हिस्सा है जिन्हें पुलिस ने किसी राष्ट्रीय राजमार्ग पर रोका और न ही सड़कों को बाधित करने वाली किसी गतिविधि में शामिल हुए हैं।
