मॉरिशस के साथ जो कर संधि की गई थी, वह लंबे समय से भारत में विवाद का विषय बनी हुई है।
इस विवाद की वजह कर संधि के कुछ प्रावधान हैं, जैसे कि कहा गया है कि मॉरिशस के किसी निवासी को प्रतिभूतियों की बिक्री पर भारत में होने वाले पूंजीगत लाभ पर कोई कर नहीं चुकाना पड़ेगा। और इसी वजह से इसको लेकर भारत में बहस जारी है।
विवाद तब शुरु हुआ जब सीबीडीटी ने एक परिपत्र जारी कर कहा कि संधि के प्रावधानों के अनुसार कर में छूट का लाभ उठाने के लिए मॉरिशस के निवासियों को वहां की सरकार की ओर से जारी किए गए निवास प्रमाण पत्र को दिखाना ही काफी होगा। हालांकि इस परिपत्र को दिल्ली उच्च न्यायालय (256 आईटीआर 563) ने अवैध घोषित कर दिया था।
पर सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फैसले को पलटते हुए परिपत्र को वैध घोषित (यूनियन ऑफ इंडिया बनाम आजादी बचाओ आंदोलन 2003 263 आईटीआर 706) कर दिया।
ऐसा समझा जाने लगा कि यह विवाद सुलझा लिया गया है। पर वित्त मंत्री पी चिदंबरम बार बार यह कहते आए हैं कि कुछ भारतीय कंपनियां मॉरिशस की आड़ में गलत फायदा उठा रही हैं।
मॉरिशस के उप प्रधानमंत्री ने कहा कि सिर्फ उन्हें इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और कूटनीतिक संबंध रहे हैं और यही वजह है कि कुछ ऐसे वैश्विक समाधानों की खोज की जानी चाहिए जिससे समस्या का हल भी हो जाए और मॉरिशस को पेनल्टी भी नहीं चुकानी पड़े।
इधर कर आवासीय प्रमाण पत्र के संदर्भ में मॉरिशस के आय कर कानून में भी संशोधन किया गया है। प्रस्तावित व्यापक आर्थिक सहयोग भागीदारी समझौते के दौरान भारत-मॉरिशस कर संधि को लेकर विवाद एक बार फिर से उठ खड़ा हुआ।
भारतीय वित्त मंत्रालय को लगता है कि कर संधि का गलत फायदा उठाया जा रहा है। कर अधिकारियों का अनुमान है कि इस संधि की वजह से भारतीय राजकोष को हर साल करीब 4,000 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ रहा है। जो निवेशक मॉरिशस में निवेश इकाइयों के जरिए फंड उगाह रहे हैं उन्हें पूंजीगत लाभ पर कोई कर नहीं चुकाना पड़ रहा है और इस वजह से यह नुकसान हो रहा है।
भारतीय राजस्व विभाग के अधिकारियों का दावा है: पूंजीगत लाभ कर में छूट की वजह से भारतीय राजकोष को नुकसान हो रहा है। निवेशक भारतीय कर कानूनों से बचने के लिए मॉरिशस में पंजीकृत कंपनियों और विदेशी ट्रस्टों की आड़ लेते हैं। कर से बचने के लिए निवेशक मॉरिशस की इकाइयों में अपना पैसा फिर से लगाते हैं।
इसे ‘ट्रीटी (संधि) शॉपिंग’ का नाम दिया गया है और इससे भारत को राजस्व घाटा उठाना पड़ता है। भारत में आने वाले कुल विदेशी प्रत्यक्ष निवेश इक्विटी प्रवाह में मॉरिशस की हिस्सेदारी सबसे अधिक होती है। ताजा आंकड़ों के अनुसार अप्रैल, 2008 से जून, 2008 के बीच कुल प्रवाह 1,27,554 करोड़ रुपये का था।
रुपये के संदंर्भ में देश में कुल प्रवाह करीब 3,11,912 करोड़ रुपये का है जिसमें से 44 फीसदी मॉरिशस से है। इसे संदंर्भ में सरकार को आजादी बचाओ आंदोलन में उच्चतम न्यायालय ने जो कुछ कहा उसे ध्यान में रखना चाहिए।
‘विकासशील देशों में ट्रीटी शॉपिंग को अक्सर कर प्रोत्साहन के तौर पर देखा जाता है ताकि विदेशी पूंजी और तकनीक को देश में अधिक से अधिक लाया जा सके। घरेलू कर कानून के प्रावधानों से अलग हटते हुए विदेशी निवेशकों को इस तरीके से कर रियायतें दी जाती हैं। यह बहुत कुछ दूसरी कर रियायतों जैसे टैक्स हॉलिडे, ग्रांट्स की तरह ही है।