निर्यात को बढ़ावा देने के लिए सरकार के वित्तीय और मौद्रिक उपायों को लेकर ज्यादातर निर्यातकों और उनके संगठनों ने निराशा जताई है। लेकिन कुछ लोग इन उपायों को विशेष व्यावहारिक उपायों के रूप में देख रहे हैं।
आर्थिक मंदी की वजह से संपन्न देशों में मांग में कमी आई है और ऐसे में सरकारी मदद काफी अहम हो सकती है। लेकिन यह भी सही है कि भारतीय निर्यातकों के लिए लेनदेन खर्च भ्रष्टाचार के कारण ऊंचाई पर बना हुआ है और सरकार इसे लेकर ज्यादा गंभीर नहीं दिख रही है।
इसके अलावा निर्यातकों के संगठन भी इसे उठाए जाने में संकोच कर रहे हैं। इसके बजाय उन्होंने बड़ा तर्क दिए बगैर अधिक वित्तीय लाभ की बात की है। सरकार ने डीईपीबी दरों को फिर से तुरंत प्रभाव से लागू कर दिया है जिनमें नवंबर में कटौती की गई थी।
सरकार ने शुल्क वापसी दरों को भी बहाल कर दिया है जिसमें रुपये में गिरावट आने के बाद अगस्त में कमी की गई थी। टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन फंड के तहत अवरुद्ध रकम जारी करने के लिए जरूरी कोष, डीम्ड एक्सपोट्र्स रिफंड, सेंट्रल टैक्स रिफंड और मार्केट डेवलपमेंट असिस्टेंस उपलब्ध हैं।
श्रम आधारित क्षेत्रों के लिए निर्यात उधारी की ब्याज दरों को कम किया गया है और ब्याज दर की रियायत प्राप्त करने के लिए अवधि में इजाफा किया गया है।
उत्पाद शुल्क में छूट, अप्रयुक्त सेनवैट क्रेडिट की वापसी, शुल्क वापसी, शुल्क छूट आदि ऐसी स्कीमें हैं जो पूर्व में चुकाए गए शुल्क की वापसी से जुड़ी हैं।
ये छूटवापसी कम से कम परेशानी के स्वत: प्राप्त हो जाती हैं। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि सीमा शुल्क अधिसूचनाओं और प्रक्रियाओं का विदेश व्यापार नीति (एफटीपी) प्रावधानों और वाणिज्य मंत्रालय की घोषणा पर सही असर पड़े।
ईपीसीजी योजना के तहत अधिसूचना एफटीपी शर्तों के बिल्कुल विपरीत वित्त मंत्रालय की अनुबंध शर्तों का एक शानदार उदाहरण है। वाणिज्य मंत्री यह कह चुके हैं कि ईपीसीजी योजना के तहत शुल्क भुगतान के लिए डीईपीबी जैसे डयूटी क्रेडिट का उपयोग किया जा सकेगा।
उन्होंने कहा था कि सभी ईडीआई बंदरगाहों को एकल बंदरगाह के समान समझा जाएगा और इलेक्ट्रॉनिक एक्सचेंज मैसेज के जरिये एडवांस अथॉराइजेशन और ईपीसीजी स्कीम ईडीआई-आधारित होंगी। वित्त मंत्रालय द्वारा इन वादों पर अमल किया जाना अभी बाकी है।
वित्त मंत्रालय ने 2001 में जारी किए गए अनुपूरक निर्देशों के मैनुअल को भी अभी संशोधित नहीं किया है। कुछ लाइसेंसिंग अधिकारियों ने निर्यात से संबंधित मेट रिसीट जैसे दस्तावेज की मांग करनी शुरू कर दी है।
अधिकारी शिपिंग बिल और बैंक सर्टिफिकेट की प्रतियों की मांग करते हैं जबकि आधिकारिक रूप से सिर्फ चार्टर्ड अकाउंटेंट सर्टिफिकेट सौंपे जाने की जरूरत है। इन सभी समस्याओं को तभी दूर किया जा सकेगा जब हमारे अंदर भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए एक मजबूत इच्छा जाग्रत हो।