facebookmetapixel
1 अक्टूबर से लागू Tata Motors डिमर्जर, जानिए कब मिलेंगे नए शेयर और कब शुरू होगी ट्रेडिंगStock Market Today: ग्लोबल मार्केट से मिले-जुले संकेतों के बीच कैसी होगी आज शेयर बाजार की शुरुआत?अगर अमेरिका ने Google-Meta बंद किए तो क्या होगा? Zoho के फाउंडर ने बताया भारत का ‘Plan B’Stocks To Watch Today: Swiggy, HAL, Patanjali Foods समेत इन 10 दिग्गज कंपनियों से तय होगा आज ट्रेडिंग का मूडजियो, एयरटेल और वोडाफोन आइडिया ने सरकार से पूरे 6G स्पेक्ट्रम की नीलामी की मांग कीतेजी से बढ़ रहा दुर्लभ खनिज का उत्पादन, भारत ने पिछले साल करीब 40 टन नियोडिमियम का उत्पादन कियाअमेरिकी बाजार के मुकाबले भारतीय शेयर बाजार का प्रीमियम लगभग खत्म, FPI बिकवाली और AI बूम बने कारणशीतकालीन सत्र छोटा होने पर विपक्ष हमलावर, कांग्रेस ने कहा: सरकार के पास कोई ठोस एजेंडा नहीं बचाBihar Assembly Elections 2025: आपराधिक मामलों में चुनावी तस्वीर पिछली बार जैसीरीडेवलपमेंट से मुंबई की भीड़ समेटने की कोशिश, अगले 5 साल में बनेंगे 44,000 नए मकान, ₹1.3 लाख करोड़ का होगा बाजार

कंप्यूटर सॉफ्टवेयर स्थानांतरण कर के दायरे में

Last Updated- December 07, 2022 | 4:06 PM IST

जब कोई विदेशी कंपनी किसी भारतीय कंपनी को भारत से बाहर कंप्यूटर सॉफ्टवेयर मुहैया कराती है तो क्या भारत में इस विदेशी कंपनी को आय कर चुकाना होगा?


यह मुद्दा भारतीय हवाई अड्डा प्राधिकरण (एएआई) के एक ताजा मामले से और गहरा गया है। प्राधिकरण ने एक अमेरिकी कंपनी के साथ दो अनुबंध किए थे। इनमें से एक अनुबंध हार्डवेयर और दूसरा सॉफ्टवेयर के लिए था। इनमें हार्डवेयर की आपूर्ति कर के दायरे से बाहर थी, लेकिन सॉफ्टवेयर की आपूर्ति पर ‘रॉयल्टी’ और ‘तकनीकी सेवाओं के लिए शुल्क’ लगाया गया था।

वाणिज्यिक रूप से दो तरह के सॉफ्टवेयर हैं जो ‘अनब्रांडेड सॉफ्टवेयर’ और ‘ब्रांडेड सॉफ्टवेयर’ हैं। अनब्रांडेड सॉफ्टवेयर व्यक्तिगत ग्राहकों की जरूरतों को पूरा करने के लिए विशेष तौर पर तैयार किया गया है वहीं ब्रांडेड सॉफ्टवेयर मानकों से लैस है। प्राधिकरण को आपूर्ति किया गया सॉफ्टवेयर कस्टमाइज्ड सॉफ्टवेयर था।

प्राधिकरण को लेकर बवाल इसलिए मचा था क्योंकि अमेरिकी कंपनी की ओर से भेजे गए सॉफ्टवेयर को भारत से बाहर भेजा गया था। यह मुद्दा इसलिए भी विवाद का कारण बना क्योंकि इस अनुबंध के तहत कुछ सहायक क्रियाकलापों को छोड़ कर सभी गतिविधियां को भारत से बाहर अंजाम दिया गया था।

हालांकि कॉपीराइट सॉफ्टवेयर की एकमुश्त बिक्री इस अनुबंध में शामिल है, लेकिन सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल कुछ विशेष उद्देश्यों के लिए ही किया जा सकेगा। प्राधिकरण के समक्ष यह मुद्दा इस विवाद को लेकर गहरा गया था कि लेनदेन के तहत अमेरिकी कंपनी को किया गया भुगतान भारत में कर योग्य है।

प्राधिकरण ने इस बात की वकालत की थी कि सॉफ्टवेयर की आपूर्ति को सामान की बिक्री के रूप में रखा जाए और इसलिए यह आय व्यापारिक आय के समान होगी। टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2004-271 आईटीआर 0401-एससी) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सॉफ्टवेयर की आपूर्ति को सामान की बिक्री के रूप में बता कर फैसला दिया था।

इसे लेकर विवाद पैदा हो गया था कि कॉपीराइट इस्तेमाल के अधिकार और कॉपीराइट वस्तु की बिक्री को लाइसेंस दिए जाने को लेकर भेदभाव बरता गया है। कंप्यूटर सॉफ्टवेयर के स्थानांतरण को लेकर इंडियन आई-टी एक्ट में कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है। इसलिए, करदाता ओईसीडी कमेंटरी, जो कंप्यूटर सॉफ्टवेयर के स्थानांतरण के लेनदेन से जुड़े मुद्दों को देखती है, जैसी अंतरराष्ट्रीय मान्यताप्राप्त कमेंटरी से मदद प्राप्त करने का हकदार है।

ओईसीडी कमेंटरी पूर्ण स्वामित्व अधिकारों के साथ-साथ आंशिक अलगाव के अधिकार के स्थानांतरण के मामले में मदद मुहैया कराती है। यह स्पष्ट है कि आंशिक अलगाव के अधिकार मामले में कुछ परिस्थितियों में यह व्यापारिक आय होगी और इस पर रॉयल्टी नहीं होगी।

एएआर ने कर निर्धारणकर्ता के ओईसीडी कमेंटरी के संदर्भ को बर्खास्त कर दिया जिसमें कॉपीराइट इस्तेमाल के अधिकार और कॉपीराइट वस्तु के स्थानांतरण के बीच भेदभाव को स्पष्ट किया गया था। ओईसीडी के मुताबिक केवल वही स्थानांतरण, जो स्थानांतरण करने वाले को सॉफ्टवेयर कॉपीराइट के व्यावसायिक उपयोग में सक्षम बनाता है, रॉयल्टी आय के दायरे में आएगा।

लेकिन जब स्थानांतरण करने वाले को इसके इस्तेमाल के लिए विशेषाधिकार हासिल हो, भले ही यह कम पूर्ण स्वामित्व वाले हों, तो यह सॉफ्टवेयर बिक्री का मामला कभी नहीं होगा। माइक्रोसॉफ्ट के मामले में भी ट्रिब्यूनल ने हाल ही में कर निर्धारणकर्ता के दावे को ठुकरा दिया था।

इस मामले में एक विशेषाधिकार के साथ सॉफ्टवेयर आपूर्ति में किए गए भुगतान को रॉयल्टी के रूप में लिया गया था और यह भारत में कर के दायरे में था। ट्रिब्यूनल ने टाटा कंसल्टेंसी के मामले में दलील देने के लिए पेश की गई याचिका को भी ठुकरा दिया था।

उपर्युक्त दो ताजा मामलों से यह स्पष्ट हो गया है कि यदि भारतीय कानून व्यवस्था में स्पष्टता नहीं लाई गई तो ऐसे फैसलों से भारत के आउटसोर्सिंग व्यवसाय पर नकारात्मक असर पड़ेगा। इस आउटसोर्सिंग व्यवसाय को लगातार नए सॉफ्टवेयर के अलावा पुराने सॉफ्टवेयर के आधुनिकीकरण की सख्त जरूरत है। सरकार को अन्य देशों की तरह भारतीय कानूनों को ओईसीडी कमेंटरी के आधार पर स्पष्ट बनाना चाहिए।

First Published - August 11, 2008 | 1:27 AM IST

संबंधित पोस्ट