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कंपनी जज ऋणदाताओं की बैठक बुलाने के लिए स्वतंत्र

Last Updated- December 09, 2022 | 9:14 PM IST

सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में यह फैसला सुनाया है कि अगर कोई कंपनी विलय आदि की किसी योजना पर विचार करने के लिए ऋणदाताओं और सदस्यों की बैठक बुलाने के लिए कंपनी अदालत से निर्देश मांगने के वास्ते आवेदन करती है,


तो सभी पक्षों को सुने बगैर कंपनी को इसकी अनुमति दी जा सकती है।

चेंबरा ऑर्चर्ड प्रोडयूस लिमिटेड बनाम कंपनी मामलों के क्षेत्रीय निदेशक मामले में कंपनी ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के कंपनी जज के सामने एक आवेदन पेश किया, जिसमें विलय की प्रस्तावित योजना पर शेयरधारकों और सदस्यों की बैठक बुलाने की अनुमति मांगी गई थी।

कुछ लोगों ने इस पर आपत्ति जताई और कहा कि इस प्रकार की बैठक बुलाने से पहले शेयरधारकों की राय जान लेनी चाहिए।

इस पर कुछ लोगों ने आपत्ति जताते हुए कहा कि ऐसी किसी बैठक को मंजूरी देने के पहले शेयरधारकों की राय भी लेनी चाहिए। जब यह मामला कर्नाटक उच्च न्यायायल में पहुंचा, तो उसने आदेश दिया कि बैठक बुलाने से पहले राय जानना जरूरी है।

कंपनी ने उच्चतम न्यायालय में अपील की, जिसने कहा कि उच्च न्यायालय इस मामले में गलत है। न्यायालय ने कहा ‘अगर हिस्सेदारों, क्रेडिटरों और शेयरधारकों का पक्ष सुनना जरूरी है तो फिर कंपनी कानून की धारा 391 का क्या औचित्य रह जाता है।’

अपील खारिज

निकोसल्फ इंडस्ट्रीज ऐंड एक्सपोर्ट लिमिटेड के खिलाफ गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की याचिका को उच्चतम न्यायालय ने खारिज कर दिया है। कंपनी को एक मैजिस्ट्रेट ने निकोटीन सल्फेट का निर्माण करते समय अपने कारखाने से 10,800 लीटर प्रदूषित पानी छोड़ने का दोषी ठहराया था।

गुजरात उच्च न्यायालय ने इन आरोपों को खारिज कर दिया। इस मसले पर उच्चतम न्यायालय ने कहा कि कंपनी ने दूषित पानी की निकासी के लिए शर्तों का उल्लंघन किया है।

अदालत ने पाया कि बोर्ड ने प्रयोगशाला में पानी के जिस नमूने की जांच की है वह पानी का शोधन किए जाने से पहले लिया गया था। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि केवल इसी आधार पर बोर्ड की याचिका सुनवाई के लिए स्वीकार नहीं की जा सकती।

कर विभाग पर तरजीह

उच्चतम न्यायालय ने बंबई उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द करते कहा है कि जब बकाया ऋण वसूलने की नौबत आती है तो राज्य वित्तीय निगमों की तरह सुरक्षित ऋण देने वालों को वरीयता दी जानी चाहिए।

उच्च न्यायालय ने भारत सरकार बनाम साइकॉम लिमिटेड मामले में कहा था कि वरीयता इस बात पर निर्भर करेगी कि पहले ऋण किसने दिया है। उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय को गलत ठहरा दिया।

केंद्रीय उत्पाद शुल्क विभाग ने दूसरे ऋणदाताओं से पहले वसूली करने की अनुमति मांगी थी। उसका दावा खारिज करते हुए न्यायालय ने कहा कि सुरक्षित ऋण का नंबर पहले आता है और सरकार के लिए देयता मसलन कर आदि असुरक्षित ऋण है। और उनका नंबर बाद में आता है।

छोटी इकाइयों को राहत

उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि नई लघु उद्योग इकाइयों को कर से छूट देने वाले नियमों को उदारतापूर्वक पढ़ा जाना चाहिए। जी पी सेरेमिक्स लिमिटेड बनाम व्यापार कर आयुक्त, उत्तर प्रदेश के मामले में कंपनी को राज्य औद्योगिक विकास निगम ने 1992 में जमीन आवंटित की थी।

लेकिन पट्टे के कागज कंपनी को 1994 में ही मिल सके। कर पंचाट ने कंपनी को 1992 से कर में छूट देने से इनकार कर दिया क्योंकि पट्टे के कागज उसे 1994 में मिले थे। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी इस आदेश को बरकरार रखा।

लेकिन उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द करते हुए कहा कि कंपनी सरकार द्वारा घोषित व्यापार कर छूट की पात्र है।

इस फैसले में कहा गया: ‘अगर कंपनी कर में छूट की शर्तों को पूरा करती है तो उसे ये रियायतें हासिल करने का अधिकार है और उसे किसी भी कारण से इससे वंचित नहीं किया जाना चाहिए। कर में छूट संबंधी अधिसूचना की व्याख्या कंपनियों के हित में उदारतापूर्वक की जानी चाहिए।’

कुर्की का आदेश खारिज

उच्चतम  न्यायालय ने कोलकाता उच्च न्यायालय के उस फैसले को खारिज कर दिया है, जिसमें न्यायालय ने घोषणा किए बगैर वस्तुओं का आयात करने पर कोठारी फिलामेंट्स पर जुर्माना लगाया और जब्ती का आदेश भी दिया।

सीमा शुल्क आयुक्त को पता चला कि कंपनी की सहायक कंपनी ने हांगकांग से लिथोपोन का आयात किया था, लेकिन खेप में टेट्रासाइक्लिन की बोरियां थीं, जिनके बारे में बताया नहीं गया था। पंचाट और उच्च न्यायालय ने कंपनी की याचिकाएं खारिज कर दीं।

लेकिन अपील करने पर उच्चतम न्यायालय ने कहा कि कंपनी को जांच रिपोर्ट नहीं सौंपी गई थी और यह कानून का उल्लंघन है। इसलिए कंपनी के खिलाफ कार्रवाई का निर्देश दिया गया।

वाहन कानून को चुनौती

तमिलनाडु मोटर वाहन कराधान संशोधन अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को उच्चतम न्यायालय ने खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता को उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल करने की अनुमति दे दी।

याचिकाकर्ता के अनुसार किराये के वाहनों पर कर की दर को बिना किसी भेदभाव और नागे के बढ़ाया जा रहा है, जबकि सरकारी वाहनों को इससे छूट दे दी गई है। न्यायलय ने कहा कि इस शिकायत के साथ उपयुक्त दस्तावेज और आंकड़े नहीं हैं। याचिकाकर्ता को भेदभाव के ब्योरे के साथ उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल करने की अनुमति दे दी।

First Published - January 11, 2009 | 11:37 PM IST

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