क्रियाविधियों के हैंडबुक के वॉल्यूम 1 में विदेश व्यापार के महानिदेशक (डीजीएफटी) ने एक नया पैरा 5.11.4 जोडा है। इसे पब्लिक नोटिस संख्या 262008 के तहत जोड़ा गया है।
इसमें कहा गया है कि किसी सामान के निर्यात पर आरोपित प्रतिबंधबाध्यताएं, उस पर इस पाबंदी की समयावधि, ऐसे सामान जिसपर पहले से प्रतिबंध आरोपित किया जा चुका है, सामान पर प्रतिबंध की समय सीमा के निर्धारण की शर्तें वह भी बिना किसी कंपोजिशन फीस के, आदि बहुत सारी बातों का उल्लेख किया गया है।
इस सर्कुलर से सीमेंट, दालें आदि के निर्यातकों को फायदा पहुंचेगा, जिस पर हाल ही में प्रतिबंध लगा दिया गया था। जबकि इस तरह की पहल से उन इस्पात निर्यातकों की भी उम्मीद जगी है, जिस पर निर्यात कर आरोपित किया जाता है। बहुत सारे इस्पात निर्यातक इसलिए निर्यात नहीं कर पाते हैं, क्योंकि उन्हें निर्यात कर चुकाना पड़ता है।
इन्हें भी इसी तरह के राहत की उम्मीद है। इस तरह के सर्कुलर की जरूरत उन ऑटोमेटिक ऑथोराइजेशन होल्डर्स के लिए भी आवश्यक है, जिसपर निर्यात करने की पाबंदी लगा दी गई है या जिस पर निर्यात कर आरोपित किया जाता है।
डीजीएफटी ने इसमें (नीति सर्कुलर संख्या 6, दिनां 7 मई 2008) यह भी स्पष्ट किया है कि ईपीसीजी ऑथराइजेशन पर 1.4.2008 से 11.4.2008 के बीच के लिए 3 प्रतिशत सीमा शुल्क जारी किए जाएंगे(विदेश व्यापार नीति, समीक्षा की तारीख 11.4.2008) और सीमा अधिकारियों को उन सामान को बिना किसी रुकावट के अनुमति देनी चाहिए जो 3 प्रतिशत सीमा शुल्क अदा करती है।
लेकिन इस घोषणा को इस वाक्य को जोड़कर कमजोर कर दिया गया कि क्षेत्रीय प्राधिकार ऑथराइजेशन का अधिकार छीन भी सकते हैं और इसमें यथासंभव परिवर्तन भी कर सकते हैं। वैसे इससे यह स्पष्ट नहीं है कि व्यापार आवश्यक है या वैकल्पिक। इसमें निर्यातकों को कहा गया कि वे अपने ऑथराइजेशन के लिए संशोधन कर लें।
किसी भी मामले में ऐसे आयातक जिसने ईपीसीजी से ऑथराइजेशन 1.4.2008 के बाद लिया हो और 3 प्रतिशत शुल्क की अदायगी 28 अप्रैल तक नहीं की है, तो उनके लिए समस्या बरकरार रहेगी। इस तरह के आयातक को 5 प्रतिशत शुल्क देना होगा और एफटीपी 2008-09 के मुताबिक कुछ राहत भी दी जाएगी। लेकिन टारगेट प्लान स्कीम के तहत जो महत्वपूर्ण मुद्दे हैं वह जारी हैं।
डीजीएफटी ने अब (नीति सर्कुलर संख्या 10, दिनांक 5 जून 2008)यह स्पष्ट किया गया है कि सारे सामग्रियों की एक सूची तैयार की जाएगी और उसे डयूटी क्रेडिट स्क्रिप में सूचीबद्ध किया जाएगा, लेकिन इसमें लागत का जिक्र जेनेरिक रुप में होगा और निर्यात किए गए सामान को पैरा एचबी-1 के 3.2.5 में उल्लिखित किया जाएगा।
लेकिन इस स्पष्टीकरण के बाद भी समस्याएं बनी रहेगी क्योंकि सीमा सर्कुलर संख्या 452007 दिनांक 19 दिसंबर 2007 में यह कहा गया है कि लागत में इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं का ताल्लुक निर्यात किए जाने वाले उत्पादों से होता है।
जबकि स्टैंडर्ड इनपुट आउटपुट मानदंड (एसआईओएन) प्रथम दृष्टया आधार पर इनपुट के सबूतों का परीक्षण करेगा, और निर्यातक को अब अथॉरिटी को संतुष्ट करने की बाध्यता नही होगी और आयात की जाने वाली इनपुट और इसके उत्पाद का निर्यात एक ही उत्पाद की श्रेणी में आएंगे। वैसे इस सर्कुलर में इस वाक्य का इस्तेमाल कर कि एक ही श्रेणी में इसे रखा जाएगा, एक तरह की धोखाधड़ी की गई है।
मिसाल के तौर पर कोबाल्ट सल्फेट के निर्यातक कोबाल्ट धातु का आयात एसआईओएन के तहत कर सकते हैं। लेकिन कोबाल्ट कॉन्सन्ट्रेटेड से कोबाल्ट धातु बनाया भी जा सकता है और यह एसआईओएन के तहत नहीं आता है। यह किसी दूसरी श्रेणी में आ जाता है। इस तरह से सर्कुलर के इस वाक्य से यह स्पष्ट नहीं हो पाता कि इन सामग्रियों को किस श्रेणी में रखने की बात की जा रही है। अगर यह स्पष्ट ही नही है तो इसे सर्कुलर से हटा ही क्यों नहीं लिया जाता है।