अगर कर दाताओं ने पूरे कर का भुगतान नहीं किया है तो भारतीय आयकर कानून में ऐसे प्रावधान हैं जो न केवल दोषी पाये जाने वाले कर दाताओं से ब्याज वसूलते हैं।
बल्कि, उनके लिए दंड के भी प्रावधान हैं। अगर किसी ने कर की अदायगी के वक्त जानकारियां छुपाई हों या फिर गलत जानकारियां दी हों तो ऐसे में चोरी किए गए कर का 100 से 300 फीसदी पेनाल्टी के रूप में वसूला जाता है।
इस कानून में समय समय पर बदलाव किया जाता रहा है ताकि इसे और धारदार बनाया जा सके। कानून में संशोधन के अलावा अदालतों के अलग अलग फैसलों की वजह से भी इस कानून के बारे में भिन्न राय बनती है। हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने इस कानून के बारे में एक समीक्षा की थी और मेरे विचार में यह कानून सबसे अधिक अनिश्चितताओं वाला लगता है और कर दाताओं में इसे लेकर हमेशा ही कौतूहल दिखता है।
कोई भी पेनाल्टी लगाने से पहले यह सुनिश्चित करना बहुत जरूरी है कि कर दाता ने जान बूझकर जानकारियां छुपाई हैं या फिर गलत जानकारियां दी हैं। इस कानून का उद्देश्य साफ है कि कर चोरी करने की स्थिति में पेनाल्टी इंटरेस्ट वसूलना एक रुटीन का हिस्सा है पर पेनाल्टी लगाना नहीं।
कहां पेनाल्टी इंटरेस्ट वसूलना है और कहां दूसरे किस्म की पेनाल्टी लगाना है, यह पूरी तरह से विवेक के ऊपर निर्भर करता है। यह राजस्व विभाग का जिम्मा है कि वह इस बात को लेकर संतुष्ट हो कि कर जान बूझकर चोरी किया गया है या फिर यह अनजाने में हुआ है। अब चूंकि ‘सुनिश्चित’ होने के लिए कोई लिखित फार्मूला तैयार नहीं है इस वजह से हर मामले में यह प्रक्रिया अलग अलग होती है।
ऐसे में विवाद तब पैदा होता है जब संतुष्टि के लिए पूरी जांच पड़ताल किए बगैर ही कह दिया जाता है कि किसी व्यक्ति ने जान बूझकर कर की चोरी की है या फिर इसके उलट स्थिति में उससे अनजाने में की की चोरी हुई है। इस जुर्म की पकड़ के लिए कोई सीधा सटीक फार्मूला हो भी नहीं सकता है।
अदालतों का कहना है कि कर वंचना के आरोप में किसी व्यक्ति पर लगाए गए आरोप बिल्कुल सटीक होने चाहिए और उस पर जो पेनाल्टी लगाई जा रही है वह भी इसी आधार पर होनी चाहिए।
अदालतों के भिन्न विचार
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) बनाम श्रीराम म्युचुअल फंड के मामले में उच्चतम न्यायालय ने नॉन टैक्स कानून की विवेचना करते हुए साफ किया कि नागरिक कानूनों का उल्लंघन करने पर सीधे पेनाल्टी लगाई जा सकती है, भले ही कानून का उल्लंघन किसी ने जान बूझकर किया हो या फिर अनजाने में।
इस वजह से जब तक कानून में यह उल्लेख नहीं किया गया हो कि अपराध करने के पीछे उद्देश्य क्या था, इसे सत्यापित करें, तब तक उस जुर्म की सजा यह प्रमाणित किये बिना मिलनी ही मिलनी है।
वर्ष 2007 में दिलीप श्रॉफ के मामले में उच्चतम न्यायालय ने साफ किया कि अगर कोई व्यक्ति राजस्व विभाग को कर संबंधित गलत जानकारियां देता है तो सीधे सीधे वह अपनी आय की गलत जानकारी ही दे रहा है।
आगे राजस्व विभाग की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह साबित करे कि कर दाता ने जो स्पष्टीकरण दिया है वह गलत है और असली तथ्यों को छुपाया गया है। फिर 2007 में ही सर्वोच्च न्यायालय ने ही अशोक पायस के मामले में कुछ सिद्धांतों को मंजूरी दी थी।
उच्चतम न्यायालय ने फैसले की समीक्षा की
धमर्द्र टेक्सटाइल्स के एक मामले में सुनवाई करते हुए दो पीठों की अदालत ने इसे एक बड़ी पीठ के पास भेजा। अदालत ने पाया कि दिलीप श्रॉफ और श्रीराम म्युचुअल फंड्स के मामले में खंड पीठ के फैसले में न्यायाधीशों के विचार में मतभेद था।
अदालत ने यह भी कहा कि अगर गवाह के पास पर्याप्त सबूत हैं कि कर संबंधित जानकारियां छुपाई गई हैं तो एक तरह से यह पेनाल्टी लगाने का पर्याप्त आधार कहा जा सकता है। कोर्ट ने आगे यह भी कहा कि कर दाता की यह जिम्मेदारी है कि अगर उसकी गलती नहीं है तो वह अपनी तरफ से पूरी सफाई दे।
इस तरह दिलीप श्रॉफ के मामले में जो सिद्धांत तय किये गए थे उन पर सर्वोच्च न्यायालय की बड़ी पीठ को फिर से विचार करना चाहिए। बड़ी पीठ ने कहा कि दिलीप श्रॉफ मामले में जो फैसला सुनाया गया वह गलत था।
समीक्षा से उठे कई और सवाल
मेरा खुद का मानना है कि हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने एक फैसला सुनाते वक्त कारोबारी और कर कानूनों की जो व्याख्या की थी वह पर्याप्त नहीं थी और इसमें कई वैधानिक प्रावधानों का ध्यान नहीं रखा गया।
आयकर कानून में साफ किया गया है कि अगर कर दाता यह साबित कर दे कि कर भुगतान में उससे गलती होने की वाजिब वजह रही है तो फिर उस पर पेनाल्टी नहीं लगाई जा सकती है। इस तरह कर दाता वैधानिक प्रावधान (273 बी) के तहत ठोस कारण बताकर पेनाल्टी से बच सकते हैं।
फ्रेंच कानूनों के तहत ‘बैड फेथ’ पर 40 फीसदी की पेनाल्टी लगाई जा सकती है। दूसरी श्रेणी में ‘कानून का उल्लंघन’ करना आता है जिसमें कर दाता का उद्देश्य कर की चोरी करना ही होता है और इसमें 80 फीसदी की पेनाल्टी वसूली जाती है।
हालांकि ऐसे मामले कम ही देखे जाते हैं। ब्रिटेन के कानून में अनजाने में कर संबंधित जानकारी छुपाने पर 10 से 30 फीसदी की पेनाल्टी, जान बूझकर कर संबंधित जानकारियां छुपाने पर 20 से 30 फीसदी की पेनाल्टी और जान बूझकर कर की जानकारी छुपाने और कर चोरी करने की स्थिति में 100 फीसदी पेनाल्टी लगाई जाती है।
मेरा मानना है कि विधायी प्रावधानों और न्यायिक फैसलों की समीक्षा करना बुध्दिमत्ता होगी। हमें दंडात्मक प्रावधानों के साधारण रूप की जरूरत है। कर अधिकारियों के विवेकाधिकार को कम करना होगा। अन्य देशों में जो सिध्दांत अपनाए जा रहे हैं, उनमें से भी कुछ को यहां भी लागू किया जा सकता है।