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पवन ऊर्जा उत्पादन पर बदलते मौसम की मार

Last Updated- December 14, 2022 | 9:03 PM IST

सामान्य तौर पर जुलाई के महीने में देश में सबसे ज्यादा पवन ऊर्जा पैदा होती है लेकिन इस साल सर्वाधिक उत्पादन वाले मौसम में 16 फीसदी कम बिजली पैदा हुई। कुछ इलाकों में तो पवन ऊर्जा का उत्पादन 40 फीसदी से भी कम रहा। पवन ऊर्जा उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण बिजली उत्पादन पर असर पड़ा है। भारत ने जलवायु परिवर्तन के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए कई बड़ी अक्षय ऊर्जा परियोजनाएं विकसित की हैं लेकिन मौसम में अप्रत्याशित उतार-चढ़ाव और प्राकृतिक आपदाओं के कारण अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं पर असर पड़ रहा है।  
बेंगलूरु की अग्रणी ऊर्जा प्रबंधन सेवा कंपनी आरईकनेक्ट के आंकड़ों के अनुसार पिछले दो साल के दौरान उच्च हवा वाले क्षेत्रों में नई परियोजनाओं में तेजी आई है लेकिन इन इलाकों में बिजली उत्पादन दो अंक में घटी है। लगभग सभी प्रमुख पवन ऊर्जा कंपनियों – रीन्यू पावर, हीरो फ्यूचर एनर्जीज, अदाणी ग्रीन एनर्जी और ग्रीनको की ज्यादातर इकाइयां पश्चिम तथा दक्षिण भारत में हैं।
मॉनसून के दौरान (जून-अगस्त) इन इलाकों में आम तौर पर हवा की रफ्तार तेज होती है। उद्योग के आंकड़ों के अनुसार सालाना कुल पवन ऊर्जा उत्पादन का करीब 30 से 50 फीसदी बिजली इसी अवधि में पैदा होती है।
आरईकनेक्ट एनर्जी की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘बारिश के साथ हवा भी चलती है। देश के पश्चिमी, दक्षिणी और उत्तरी इलाकों में पवन ऊर्जा का उत्पादन 11 से 17 फीसदी कम रहा।’
आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण दक्षिण एशियाई इलाकों में मौसम प्रारूप में बदलाव आया है, जिससे पवन ऊर्जा उत्पादन में कमी आई है। भारत, अफगानिस्तान और पाकिस्तान में मार्च, अप्रैल और मई में सामान्य से ज्यादा बारिश हुई। अम्फान चक्रवात के कारण तेज हवाएं और भारी बारिश से भारत के तटीय इलाकों में बाढ़ की स्थिति पैदा हो गई। निसर्ग चक्रवात के कारण भारत के पश्चिमी तट प्रभावित हुआ।
आरईकनेक्ट के इजीनियरिंग प्रमुख असीम अहमद ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अक्षय ऊर्जा क्षेत्र के लिए कोई विशिष्ट बात नहीं है। लेकिन मौसम में अप्रत्याशित बदलाव और अनिश्चितता के कारण कई कारोबार पर असर पड़ेगा। ज्यादा उत्पादन वाले महीनों में कम पवन ऊर्जा पैदा होने से इस क्षेत्र की कंपनियों की आय में चपत लग सकती है। पवन ऊर्जा उद्योग अब उत्पादन योजना एवं लागत में जलवायु परिवर्तन को भी ध्यान में रखने की योजना बना रही है। हीरो फ्यूचर एनर्जीज के मुख्य कार्याधिकारी सुनील जैन ने कहा कि मौजूदा और संभावित परियोजना स्थल को चिह्नित किया जा चुका है जिसे हम बदल नहीं सकते हैं। लेकिन इन क्षेत्रों में उत्पादन में कमी आती है तो इससे नई तकनीक और विंड टर्बाइन उपकरणों पर खर्च बढ़ जाएगा, जिससे शुल्क दरें भी बढ़ेंगी।

First Published - November 20, 2020 | 11:18 PM IST

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