यह लगभग तय है कि केंद्र सरकार वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) क्षतिपूर्ति के मुद्दे पर वही करेगी जो वह चाहती है। ऐसा इसलिए क्योंकि 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने भारतीय रिजर्व बैंक की 97,000 करोड़ रुपये की विशेष सुविधा का समर्थन किया है। यदि जीएसटी परिषद में इसे लेकर मतदान भी होता है तो भी केंद्र की जीत तय है। परंतु इसकी कीमत चुकानी होगी और पहले से कमजोर केंद्र-राज्य रिश्ते, आम सहमति के अभाव में और बिगड़ेंगे। अनुमान के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में राजस्व 3 लाख करोड़ रुपये तक कम रहेगा। जीएसटी क्षतिपूर्ति उपकर संग्रह करीब 65,000 करोड़ रुपये रहेगा। यानी 2.35 लाख करोड़ रुपये की भरपाई शेष होगी। परिषद की पिछली बैठक में केंद्र सरकार ने राज्यों के समक्ष दो विकल्प रखे थे। पहला विकल्प था 97,000 करोड़ रुपये तक की राजस्व हानि की भरपाई के लिए आरबीआई की विशेष सुविधा। माना जा रहा है कि यह नुकसान जीएसटी क्रियान्वयन से जुड़े मुद्दों के कारण हुआ। इस विकल्प को चुनने वाले राज्यों को उधारी में भी रियायत मिलेगी।
यहां कई ऐसे मुद्दे हैं जिन पर नीतिगत रूप से ध्यान देना जरूरी है। उदाहरण के लिए आरबीआई की सुविधा के बावजूद कमी रह जाएगी और इस अहम मोड़ पर व्यय को प्रभावित करेगी। कोविड संकट से निपटने की लड़ाई में राज्य अग्रणी हैं और उन्हें मेडिकल सुविधाओं के लिए तथा महामारी से विस्थापित लोगों की मदद के लिए धन चाहिए। इस संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि परिषद काफी पीछे है और केंद्र को इसकी जवाबदेही लेनी चाहिए। लॉकडाउन के पहले दिन से यह स्पष्ट था कि जीएसटी संग्रह पर असर होगा। यदि क्षतिपूर्ति पर पहले चर्चा शुरू हो जाती तो राज्य शायद संकट से निपटने के लिए बेहतर तैयार होते। इससे सभी अंशधारकों को राजनीतिक रूप से अधिक स्वीकार्य हल पर पहुंचने का वक्त मिल जाता और अनावश्यक तनाव से बचा जा सकता था।
राज्य भी स्वयं को जिम्मेदारियों से नहीं बचा सकते क्योंकि कुछ राज्य अतार्किक ढंग से यह मांग कर रहे हैं कि कोविड जैसे असाधारण संकट के समय भी उनके जीएसटी राजस्व को 14 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि के साथ पूरा संरक्षण प्रदान किया जाए। जबकि इस बीच केंद्र के कर संग्रह में भी गिरावट आई है। अहम प्रश्न यह है कि यदि जीएसटी नहीं होता तो क्या राज्यों के राजस्व में उतना इजाफा होता जिसकी वे मांग कर रहे हैं? क्या उन्हें शराब, ईंधन या स्टांप शुल्क जैसे करों पर कराधान अधिकार के कारण 14 फीसदी वृद्धि मिल रही है? यदि नहीं तो वे जीएसटी में कमी का कुछ बोझ केंद्र के साथ साझा क्यों नहीं करते? मौजूदा हालात में जीएसटी क्षतिपूर्ति को लेकर मोलभाव करना अव्यावहारिक है।
आज जैसे हालात हैं उसमें यह स्पष्ट है कि निकट भविष्य में तनाव कम नहीं होने वाला है। सरकार के पास कराधान एवं अन्य कानून (शिथिलता एवं चुनिंदा प्रावधानों का संशोधन ) विधेयक 2020 है जो लोकसभा में पारित हो गया है। इसके तहत केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 का भी संशोधन हुआ है। इसी तरह परिषद की अनुशंसा पर सरकार असाधारण परिस्थितियों में अधिसूचना के जरिये अधिनियम के तहत, तय समय सीमा में इजाफा कर सकती है। इस धारा के तहत अतीत की तिथि से अधिसूचना जारी करने का अधिकार कई राज्यों को नाखुश कर सकता है। कुल मिलाकर एक ओर जहां केंद्र सरकार ने क्षतिपूर्ति के निपटारे का तरीका निकाल लिया है, वहीं व्यापक समस्या बरकरार है। यह मुद्दा यकीनन चुनौतीपूर्ण था लेकिन केंद्र और राज्य दोनों इससे बेहतर तरीके से निपट सकते थे।