आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि अगर टीकाकरण की दर ज्यादा है तब संक्रमण के मामले कम होंगे और कोविड-19 से बचाव में बेहतर सुरक्षा मिलेगी। लेकिन बिज़नेस स्टैंडर्ड के विश्लेषण से पता चलता है कि इसका उलटा ही हो रहा है। देश में 10 फीसदी से अधिक संक्रमण दर वाले 42 जिलों के 18 से 24 अगस्त तक के डेटा से यह अंदाजा मिलता है कि टीकाकरण की दर के लिहाज से इन जिलों का प्रदर्शन, देश के बाकी हिस्सों की तुलना में बेहतर है। यानी जहां संक्रमण की दर ज्यादा है वहां टीकाकरण की दर अच्छी है।
इन 42 जिलों में 24 अगस्त तक 46.2 फीसदी आबादी को टीके की कम से कम एक खुराक दी गई थी जिनमें केरल के सभी 14 जिले और पूर्वोत्तर के अधिकांश जिले शामिल थे। इन जिलों में 15.2 प्रतिशत पात्र लोगों को 24 अगस्त तक पूरी तरह से टीका लगाया गया था। इसकी तुलना में भारत के बाकी जिलों में औसत आंशिक टीकाकरण 35 प्रतिशत रहा।
इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि 5 प्रतिशत से 10 प्रतिशत के बीच संक्रमण दर वाले 29 जिलों के विश्लेषण से पता चलता है कि बाकी जिलों की तुलना में यहां टीकाकरण की दर बेहतर थी। इन 29 जिलों में कम से कम एक खुराक 38.3 प्रतिशत लोगों को दी गई जबकि 11.5 प्रतिशत लोगों को टीके की दोनों खुराक दे दी गई है। बाकी जिलों में जहां संक्रमण की दर 5 प्रतिशत से भी कम है वहां केवल 35 फीसदी लोगों को ही टीके की पहली खुराक दी गई है जबकि 9.8 फीसदी लोगों को टीके की दोनों खुराक दी गई है।
देश के सभी राज्यों के बीच सबसे अधिक टीकाकरण की दर केरल में रही और आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि जिन जिलों में संक्रमण की दर ज्यादा रही वहां अन्य जिलों की तुलना में टीकाकरण की दर बेहतर थी। उदाहरण के तौर पर राजस्थान के दो जिलों (चूरू और हनुमानगढ़) में जहां 10 प्रतिशत से अधिक संक्रमण दर थी वहां 40.5 फीसदी आबादी को टीके की एक खुराक दी गई थी जबकि 12.3 प्रतिशत आबादी को टीके की दोनों खुराक दे दी गई थी। इसके विपरीत, शेष राज्यों में जहां संक्रमण की दर 5 फीसदी से कम थी वहां टीके की पहली और दोनों खुराक देने की औसत दर क्रमश: 38.9 प्रतिशत और 11.9 प्रतिशत रही।
संक्रमण को दूर करने में टीकाकरण के नाकाम रहने की आंशिक वजह यह भी है कि अधिकांश जिलों में टीके की दोनों खुराक लेने वाली आबादी की दर अब भी 20 प्रतिशत से कम है। अमेरिका और इजरायल के हाल के डेटा से संकेत मिलते हैं कि टीके गंभीर संक्रमणों से बचाव में प्रभावी होते हैं, न कि संक्रमण को रोकने में विशेषतौर पर कोरोनावायरस के स्ट्रेन से बचाव में।
जब तक पूरी आबादी को टीका नहीं लगाया जाता है या जब तक वायरस के नए स्ट्रेन का खतरा खत्म नहीं होता तब तक सामूहिक प्रतिरोधक क्षमता तैयार होने की बात महज कल्पना ही है। देशव्यापी आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि अगर भारत अपनी मौजूदा टीकाकरण दर (53 लाख खुराक प्रति दिन) को बनाए रखता है तब अप्रैल 2022 तक पात्र आबादी (18 साल और उससे अधिक) को पूरी तरह से टीका लगा दिया जाएगा और अगले साल जनवरी तक सभी को आंशिक रूप से टीका लग जाएगा।
जनवरी 2022 तक पूरी आबादी को टीके की दोनों खुराक देने के लिए भारत को टीकाकरण की अपनी वर्तमान दर को तीन गुना बढ़ाने के साथ ही रोजाना लगभग 1.5 लाख लोगों को टीका देने की आवश्यकता होगी।