पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, केरल में वाम मोर्चा और तमिलनाडु में द्रमुक गठबंधन की शानदार जीत के बाद गैर-कांग्रेस और गैर-भाजपा वाले विपक्ष के और ज्यादा मुखर होने की संभावना है। जीएसटी परिषद जैसे मंचों में ऐसा होना तय है लेकिन हाल फिलहाल में वैश्विक महामारी कोविड-19 को संभालने के लिए टीकों के वितरण को लेकर विपक्ष के और भी मुखर होने की संभावना नजर आती है। पिनाराई विजयन और ममता बनर्जी दोनों ने ही घोषणा की है कि वैश्विक महामारी से निपटना उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता होगी और उन्होंने यह साफ कर दिया है कि गैर भाजपा शासित राज्यों में टीका वितरण में सुस्ती बरदाश्त नहीं की जाएगी। नतीजों के बाद अपने संवाददाता सम्मेलन में बनर्जी ने कहा कि उनकी लड़ाई देश भर में सभी को मुफ्त टीके सुनिश्चित करने के लिए होगी।
जब लोकसभा का मॉनसून सत्र बुलाया जाएगा, तब संसद में तनाव भी दिखाई देगा। लोक सभा में 37 सीटों के साथ द्र्रमुक और 22 सीटों के साथ टीएमसी दोनों की ही दमदार उपस्थिति होने की संभावना है, जिन्हें राज्य की जीत से सहारा मिला हुआ है।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि इस जीत के बाद केंद्र और राज्यों के बीच संबंधों में और खटास आने की संभावना है, क्योंकि पश्चिम बंगाल में अब भाजपा की महत्त्वपूर्ण उपस्थिति है। बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ ममता सरकार के खिलाफ अपने तरीके से धर्मयुद्ध का नेतृत्व कर रहे हैं। शांतिपूर्ण तरीके से यह बात केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के संबंध में भी सच है, जिन्होंने सबरीमला मुद्दे को संभालने में वाम मोर्चा सरकार द्वारा उठाए गए कुछ कदमों की आलोचना की है।
सरकार में शामिल दलों के पास अब केंद्र के खिलाफ शिकायतों की अपनी ही फेहरिस्त है। तमिलनाडु में केंद्र द्वारा वित्त पोषित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान जैसे संस्थानों की स्थापना में देरी एक विवादास्पद मसला रहा है, जैसे शिक्षा की भाषा के मसले हैं। इसी तरह केरल और पश्चिम बंगाल में राज्य सरकार द्वारा बार-बार आर्थिक अधिकार की बात उठाई जाती रही है, खास कर जीएसटी मुआवजे में कमी के संबंध में। इन सभी को अतिरिक्त फायदा मिलेगा, जिससे भविष्य में केंद्र और राज्यों के बीच अक्सर गतिरोध बना रहेगा। कांग्रेस के निराशाजनक परिणाम से आंतरिक नेतृत्व परिवर्तन की मांग के लिए नई मुहिम शुरू हो सकती है। यहां तक कि कांग्रेस सांसद राहुल गांधी द्वारा प्रतिनिधित्व किए जाने वाले केरल के वायनाड क्षेत्र में भी यह परिणाम कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ के पक्ष में नहीं रहा है। गैर-राजनीतिक वंश के युवा लोगों को पसंद बनाते हुए गांधी ने चुनाव के लिए उम्मीदवार चयन के अपने प्रारूप की शुरुआत की थी। इसका अपेक्षित परिणाम नहीं मिला है। तमिलनाडु में पार्टी के प्रदर्शन ने कुछ हद तक लज्जित होने से बचाया है, लेकिन छत्तीसगढ़ के मुख्य मंत्री भूपेश बघेल और पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी द्वारा असम में व्यापक राजनीतिक निवेश के बावजूद, पार्टी का प्रदर्शन औसत से कम रहा है। इस सबके चलते कुछ फेरबदल हो सकता है। पिछले कुछ समय से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के नेता शरद पवार संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) के खेवनहार में परिवर्तन का समर्थन करते रहे हैं। अब कांग्रेस के इस प्रदर्शन के बाद इस तरह के कदम का समर्थन करने वाली आवाज जोर पकड़ सकती है, जिसमें फेरबदल के लिए सभी गैर-कांग्रेस, गैर-भाजपा ताकतों का संभावित आह्वान भी शामिल है। ममता ने विधानसभा चुनाव से पहले ही विपक्षी नेताओं को इस आशय से पत्र लिखा था।
अब जब असम में भाजपा सरकार की वापसी हो गई है, तो राष्ट्रीय नागरिकता पंजी (एनआरसी) के संबंध में कवायद तेज हो सकती है। जैसा कि उम्मीद की जा सकती है, देश के कई हिस्सों में इसका पुरजोर विरोध भी किया जाएगा, जिससे मतभेद पैदा होंगे।
राज्यों में भाजपा की ओर से जोर लगाए जाने की उम्मीद की जानी चाहिए। बंगाल विधानसभा में अब पार्टी केवल तीन सदस्यों वाली मूक दर्शक नहीं है, बल्कि अब इसकी 70 सदस्यों वाली मुखर उपस्थिति है। यह सुनिश्चित करना टीएमसी और ममता पर निर्भर करेगा कि यह मतभेद गहरा न हो।