महामारी की वजह से लोगों में स्वास्थ्य बीमा की मांग बढ़ गई है। वहीं इलाज कराने पर पॉलिसीधारकों की जेब से खर्च बढ़ रहा है, क्योंकि इस समय अस्पतालों के बिल में ‘उपभोग्य’ का अनुपात बढ़ गया है। इसका भुगतान बीमा कंपनियां नहीं करती हैं।
उद्योग के अनुमान के मुताबिक पहले अस्पताल के बिल में उपभोग्य का अनुपात 2-3 प्रतिशत से लेकर 8 प्रतिशत तक होता था, लेकिन महामारी के बाद इसका अनुपात बढ़कर 15 से 20 प्रतिशत हो गया है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि यह अस्पताल के बिल में 20 से 25 प्रतिशत तक पहुंच चुका है।
उपभोग्य सामान्यतया मेडिकल सहायक/उपकरण होते हैं, जिन्हें इस्तेमाल के बाद फेक दिया जाता है। इसकी लागत मरीज को बिल में चुकानी पड़ती है। उपभोग्य में 4 प्रमुख चीजें शामिल होती हैं- प्रशासनिक शुल्क, हाउसकीपिंग शुल्क, कमरे के शुल्क का एक हिस्सा, और डिस्पोजबल ट्रीटमेंट के सामान। नियम एवं शर्तों के मुताबिक यह बीमा पॉलिसियों में शामिल नहीं होता है।
बजाज अलियांज जनरल इंश्योरेंस के स्वास्थ्य दावों के प्रमुख भास्कर नेरुरकर ने कहा, ‘महामारी के दौरान प्रशासनिक व हाउसकीपिंग के खर्च कई वजहों से बढ़े हैं, जिसमें परिसर का नियमित विसंक्रमण भी शामिल है।’ उन्होंने कहा कि महामारी के पहले उपभोग्य की लागत अस्पताल के बिल में 8-10 प्रतिशत तक होती थी, जो अब बढ़कर 25-30 प्रतिशत तक हो गई है। पॉलिसीबाजार डॉट कॉम के बिजनेस हेड अमित छाबडिय़ा ने कहा, ‘कड़ाई से सैनिटाइजेशन किए जाने के साथ पीपीई किट, दस्तानों व अन्य सामान के इस्तेमाल बढऩे से कुल बिल में करीब 15-20 प्रतिशत बढ़ोतरी हो रही है।’
मैक्स बूपा हेल्थ इंश्योरेंस के अंडरराइटिंग, प्रोडक्ट्स ऐंड क्लेम के डायरेक्टर भावतोष मिश्र ने कहा कि अगर आप उपभोग्य में से पीपीई किट को हटा दें तो इसका असर बहुत ज्यादा नहीं है। जहां तक मैक्स बूपा का सवाल है, हम कोविड मामले में दावे का 85 प्रतिशत से ज्यादा भुगतान करते हैं।