देश में कोविड-19 के एक दिन में सबसे ज्यादा संक्रमण के 8,392 मामले सामने आए हैं और देश में कुल संक्रमितों की तादाद अब बढ़कर 1,90,000 के पार हो गई है। सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के संयुक्त कोविड कार्यबल ने कहा है कि जब महामारी की शुरुआत में ही जब संक्रमण के मामले कम थे उस वक्त ही प्रवासी मजदूरों को घर जाने की अनुमति दी गई होती तब मौजूदा स्थिति से बचा जा सकता था। इसने केंद्र और राज्य सरकार द्वारा दिए गए आंकड़ों की अपारदर्शिता से जुड़े मुद्दों को भी उठाया जिसकी वजह से वायरस पर स्वतंत्र शोध में गंभीर बाधा पैदा हुई।
इंडियन पब्लिक हेल्थ एसोसिएशन, इंडियन एसोसिएशन ऑफ प्रिवेंटिव ऐंड सोशल मेडिसिन और इंडियन एसोसिएशन ऑफ एपिडेमियोलॉजिस्ट्स के संयुक्त बयान में कहा गया है कि ‘प्रवासी मजदूरों की वजह से अब देश के प्रत्येक कोने में संक्रमण फैल रहा है और ज्यादातर ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों और उन जिलों में संक्रमण बढ़ रहा है जहां अपेक्षाकृत कमजोर सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा केंद्र हैं।’
इस कार्यबल के एक वरिष्ठ सदस्य ने कहा कि देश या यहां तक कि राज्यों में कई ऐसी जगहें हैं जहां यह संक्रमण सामुदायिक संचरण के अंतिम चरण में है। उन्होंने कहा, ‘हमें स्थानीय रूप से इन क्षेत्रों का विश्लेषण करना होगा और उन्हें भौगोलिक रूप से परिभाषित करना होगा जैसा कि हम रोकथाम वाले क्षेत्रों में करते हैं।’
सरकार को अपनी सिफारिशों में इस कार्यबल ने सुझाव दिया कि जांच के नतीजों सहित सभी डेटा को सार्वजनिक स्तर पर उपलब्ध कराया जाना चाहिए ताकि शोध करने वाले लोग इन डेटा का इस्तेमाल कर विश्लेषण करें और महामारी पर नियंत्रण करने के लिए संदर्भ वाले समाधान उपलब्ध कराए जाएं।
संयुक्त कार्यबल का कहना है कि संक्रमण के मामलों में तेजी आने के साथ-साथ यह उम्मीद करना ही बेमानी था कि इस स्तर पर कोविड-19 महामारी को खत्म किया जा सकता है जबकि देश के एक बड़े वर्गों या आबादी के हिस्सों में सामुदायिक संचरण पहले से ही होना शुरू हो चुका है।
वरिष्ठ सदस्य ने यह भी कहा कि संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए लागू किया गया लॉकडाउन सार्वजनिक स्वास्थ्य के उपाय के बजाय कानून और व्यवस्था का मुद्दा ज्यादा बन गया। उन्होंने आगे कहा, ‘पूरी कवायद लोगों में जागरुकता बढ़ाने के बजाय सख्ती बरतने पर सीमित हो गई।’
कार्यबल ने अपने बयान में बताया है कि 25 मार्च से 31 मई तक देश का राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन सबसे सख्त लॉकडाउन माना लेकिन इसके बावजूद इस चरण में कोविड मामलों में काफी तेजी आई। तीनों निकायों के विशेषज्ञों ने बयान में कहा कि अगर भारत सरकार ने महामारी विशेषज्ञों से परामर्श किया होता जिन्हें महामारी के प्रसार के बारे में ज्यादा समझ होती है तो शायद यह ज्यादा कारगर होता।
इसने नीति निर्माताओं की आलोचना करते हुए कहा कि उनकी पूरी निर्भरता सामान्य प्रशासनिक अफसरशाहों पर रही। बयान में कहा गया, ‘विशेष रूप से राष्ट्रीय स्तर पर असंबद्ध और अक्सर तेजी से बदलती रणनीतियों और नीतियों से यह अंदाजा मिलता है इसमें काफी असंगति रही और महामारी विशेषज्ञों के साथ मिलकर एक ठोस रणनीति बनाने में कोताही हुई।’
कार्यबल ने सुझाव दिया कि प्रसार के सभी चरणों के दौरान इसे नियंत्रित करने के लिए सबसे प्रभावी रणनीति मास्क लगाने की हिदायत देने, खांसी आदि में सावधानी बरतने और हाथ की साफ-सफाई पर ध्यान देने की होती जिससे कि संक्रमण के स्रोत में कमी आती ।
इसमें सरकार से सार्वजनिक स्वास्थ्य और मानवीय संकट से निपटने के लिए केंद्र्र, राज्य और जिला स्तर पर अंतर-विभागीय सार्वजनिक स्वास्थ्य और निवारक स्वास्थ्य विशेषज्ञों और सामाजिक वैज्ञानिकों का एक पैनल गठित करने को भी कहा गया है।