पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में किसानों के तगड़े प्रतिरोध के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया है। इस कदम के बाद भारतीय जनता पार्टी समेत अन्य राजनीतिक दलों ने आगामी विधानसभा चुनाव (खास तौर से उत्तर प्रदेश व पंजाब) के लिए अपनी चुनावी रणनीति में बदलाव शुरू कर दिया है।
यह स्पष्ट नहीं है कि प्रधानमंत्री यह कानून वापस लेने के लिए कैसे प्रोत्साहित हुए क्योंकि सरकार लगातार इसे सही ठहराती रही और इन कानूनों को प्रगतिशील बताती रही। पर वास्तविकता यह है कि कानून वापस लेने का फैसला पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद देखने को मिला, जहां राज्यों में होने वाले चुनाव के लिए रणनीति पर चर्चा हुई और पार्टी ने प्रतिक्रियाओं के आधार पर इस निर्णय की दिशा में कदम बढ़ाया। बैठक में सिर्फ एक राजनीतिक प्रस्ताव पारित हुआ था और उसमें कृषि कानूनों का संदर्भ नहीं था। अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में वित्त मंत्री निर्मला सीतारामण ने महज इतना ही कहा कि कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर इन कानूनों को लेकर किसानों के साथ चर्चा कर रहे हैं।
हालांकि कानून वापस लेने के निर्णय का पंजाब में भाजपा के परिदृश्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, यदि वह सभी सीटों पर स्वयं लडऩे का निर्णय लेती। यह संभव है कि वह पूर्व कांग्रेस मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की नई पार्टी के साथ अब गठजोड़ करेगी। हालांकि यह आने वाला समय ही बताएगा कि यह गठबंधन कैसा रहेगा, लेकिन सिंह ने यह स्पष्ट संकेत दे दिया है कि भाजपा के साथ काम करने की अब स्पष्ट संभावना है।
उन्होंने ट्वीट में कहा कि मुझे भरोसा है कि केंद्र सरकार किसानों के विकास की दिशा में लगातार काम करेगी। पंजाब में कृषि कानूनों के मुद्दे पर भाजपा के साथ अपना गठबंधन समाप्त करने वाली शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) अब पिछड़ती नजर आ सकती है। एसएडी के प्रकाश सिंह बादल ने कहा, ‘दुनियाभर में किसान आंदोलनों के इतिहास में यह सबसे बड़ा घटनाक्रम है।’ हालांकि उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक सरकारों के इतिहास में यह पहली बार हुआ है जब हितधारकों की सलाह लिए बगैर कठोर कानून बनाए गए। किसी सरकार को फिर से इस तरह की क्रूर हरकत नहीं करनी चाहिए। राज्य में मौजूदा समय में सत्तासीन कांग्रेस ने जोर-शोर से यह घोषणा की कि उसने इन कृषि कानूनों के विरोध में किसानों की मदद की थी। मुख्यमंत्री चरनजीत सिंह चन्नी ने कहा कि भाजपा-नीत केंद्र सरकार को ये कानून पेश करने में गलती को स्वीकार करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि एक साल से केंद्र ने इन कानूनों पर पुनर्विचार की जरूरत महसूस क्यों नहीं की थी। लेकिन वहीं कांग्रेस ने उन लोगों के लिए मुआवजे पर ज्यादा ध्यान केंद्रित किया जो इन विरोध प्रदर्शन के दौरान मारे गए थे।
इन विवादास्पद कानूनों को रद्द किए जाने का ज्यादा असर उत्तर प्रदेश में दिखेगा, जहां किसानों के संगठन करीब एक साल से कानूनों के खिलाफ विरोध बरकरार रखने में सफल रहे, जिससे सभी राजनीतिक पार्टियों को भी अपनी रणनीतियां बदलने के लिए आगे आना पड़ा। प्रदेश भाजपा ने यह संदेश फैलाने का कार्य किया है कि उसने अक्टूबर 2021 से शुरू होने वाले गन्ना सीजन के लिए गन्ने के एफआरपी को पिछले साल के मुकाबले 5 रुपये बढ़ाकर 290 रुपये प्रति क्विंटल किया है। उसने ‘प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि’ की भी बात की है, जो छोटे किसानों के लिए सालाना 6,000 रुपये सुनिश्चित करती है। यह बहुत ज्यादा कारगर साबित नहीं है, क्योंकि आंदोलनकारी किसान कह रहे हैं कि ऊंची डीजल कीमतों और महंगी बिजली दरों की वजह से खेती करना फायदे का सौदा नहीं रह गया है।
