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Loksabha Elections 2024: सोशल मीडिया पर चुनावी छवि चमकाने की होड़…

सभी राजनीतिक दलों और उनके सहयोगी संगठनों ने 1 जनवरी से 15 अप्रैल तक सिर्फ गूगल पर 117 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। सोशल मीडिया पर खर्च के मामले में भाजपा सबसे आगे रही है।

Last Updated- April 12, 2024 | 5:20 PM IST
Lok Sabha Election 2024: More election campaigning on social media than on streets Lok Sabha Election 2024: सड़कों से ज्यादा चुनाव प्रचार सोशल मीडिया पर

देश में चुनावी खुमार चरम पर है। स्टार प्रचारक रैलियों और भाषणों में व्यस्त है तो कार्यकर्ता गली मुहल्लों के नुक्कड़ नुक्कड़ पर चाय की चुस्कियों के साथ अपने अपने नेताओं का गुणगान करने में लगे है।

हालांकि, इस बार चुनावी माहौल अपने पक्ष में करने की असली जंग तो सोशल मीडिया पर देखने को मिल रही है। फेसबुक, एक्स, यू ट्यूब जैसे प्लेटफॉर्मों पर वीडियो, मीम्स और कार्टून को हथियार बनाकर राजनीतिक वार-पलवार के जरिये छवि चमकाने और बिगाड़ने की होड़ लगी है।

चुनावी सीजन में पोस्टर, बैनर, नुक्कड नाटक और दूसरे तरीके नेताओं की छवि चमकाने में अहम भूमिका निभाते रहे हैं लेकिन बदले माहौल में ये सब जमीनी स्तर से कहीं ज्यादा सोशल मीडिया पर देखने को मिल रहे हैं।

सोशल मीडिया की चाल पर नजर रखने वाली इंफीडिजिट के संस्थापक एवं प्रबंध निदेशक कौशल ठक्कर सोशल मीडिया में प्रचार तो पिछले चुनाव में भी हो रहा था और इस बार भी जमकर हो रहा है अभी तो शुरुआत आने वाले दिनों में यह और बढ़ेगा। इस बार प्रचार की रणनीति ज्यादा धारदार और परिपक्व नजर आ रही है। सोसल मीडिया के पेशेवार प्रचार को नई धार देने का काम कर रहे हैं।

भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने केंद्र की सत्‍ता में हैट्रिक लगाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। सिर्फ जमीन पर ही नहीं, डिजिटल स्‍पेस को भी उसने भगवामय कर दिया है। तो कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष करो या मरो के तर्ज पर चुनावी बाजी मारने की कोशिश कर रही है।

सोशल मीडिया कैंपेन में इस बार भी भाजपा सबसे आगे

कौशल कहते हैं कि सोशल मीडिया कैंपेन में इस बार भी भाजपा सबसे आगे है भाजपा समर्थकों की संख्या अधिक है। गूगल टैक को देखते तो 100 में 52 भाजपा के जबकि 32 कांग्रेस के समर्थकों के पोस्ट हो रहे हैं।

खर्च के सवाल पर ठक्कर कहते हैं यह पता लगाना बहुत मुश्किल है क्योंकि बड़े राजनीतिक दल अपने कार्यकर्ताओं को ही एक्सपर्ट बना दिये है वह फ्री में काम कर रहे हैं या फिर चार्ज कर रहे हैं यह बोल नहीं सकते हो। दूसरी तरफ प्रत्याशी अपने स्तर पर अलग अलग स्थानीय एंजेसियों की सेवाएं ले रहे हैं जिसके आंकड़े मौजूद नहीं है।

सोशल मीडिया पर खर्च के मामले में भाजपा सबसे आगे

साल के शुरुआत से राजनीतिक दल चुनावी मोड़ पर काम करना शुरु कर दिये थे। सभी राजनीतिक दलों और उनके सहयोगी संगठनों ने 1 जनवरी से 15 अप्रैल तक सिर्फ गूगल पर 117 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। सोशल मीडिया पर खर्च के मामले में भाजपा सबसे आगे रही है।

एक जनवरी से 10 अप्रैल तक भाजपा की तरफ से विज्ञापन पर 39 करोड़ रुपये खर्च किया गया। यह खर्च चुनावी आचार संहिता लागू होने के पहले का है।

डिजिटल मीडिया के जानकारों का कहना है कि आचार संहिता लागू होने के बाद सोसल मीडिया में सीधे तौर पर प्रचार बहुत कम हो गया लेकिन विडियों और मीम्स के जरीये धुआधार प्रचार चालू है। अप्रैल और मई में राजनीतिक दलों की तरफ से सोशल मीडिय पर चुनाव प्रचार में करीब 500 करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम खर्च किये जाने का अनुमान लगाया जा रहा है।

पिछले कुछ चुनावों में सोशल मीडिया की भूमिका को देखते हुए इस बार राजनीतिक दल इसका जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं। इस बार पॉलिटिकल इन्फ्लूएंजर मार्केटिंग ज्यादा मजबूत तरीके से इस्तेमाल हो रही है। दरअसल अपनी विशेषता बताने के वजह सोशल मीडिया में दूसरे की कमियां बताने को प्राथमिकता दी जा रही है।

विडियो एडिटर, मीम क्रिएटर, कंसेप्ट राइटर की मांग बढ़ी

फ्यूचर्स ब्रांड के सीईओ संतोष देसाई कहते हैं कि चुनाव प्रचार के तरीकों में अब बदलाव आ गया है डिजिटल मीडिया को राजनीतिक दल और प्रत्याशी प्राथमिकता दे रहे हैं। कुछ साल पहले कहा जाता था कि सोशल मीडिया पर हल्ला करने से कुछ नहीं होगा जमीन पर जाकर बोलना पड़ेगा लेकिन अब सोशल मीडिया लोगों तक पहुंचने का सबसे आसान और तेज साधन बन गया है।

कोविड के बाद लोगों की आदतों में बदलाव आया है अब हर व्यक्ति के पास फोन है और वह सोशल मीडिया पर ज्यादा समय देता है। लोगों की बदली आदतों की वजह से सोशल मीडिया राजनीतिक दलों के लिए सबसे बड़ा हथियार साबित होगा। विडियो एडिटर, मीम क्रिएटर, कंसेप्ट राइटर की मांग बढ़ी है। यू ट्यूब पर विडियों जन जन तक पहुंच रहा है तो ट्विटर (एक्स) खास लोगों को प्रभावित करने में सफल हो रहा है।

देसाई कहते हैं कि अब चुनाव में फैक्ट बेस कैंपेन कम हो गया है, इन्फ्लूएंस बेस कैंपेन बढ़ गया है। मीडिया पर सरकार का जोर है जबकि सोशल मीडिया स्वतंत्र है इसीलिए चुनाव प्रचार सोशल मीडिया पर ज्यादा हो रहा है।

First Published - April 12, 2024 | 5:11 PM IST

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