संगीत की धुनों पर मीना पूरे बरामदे में मस्ती से थिरकती जा रही है और जिस किसी के पास से वह गुजरती है उसे भी गुनगुनाने पर मजबूर कर देती है। अपने दुपट्टे को हवा में लहराए उसे गीतों के बोल रटे हुए हैं।
मीना किसी फिल्म या कहानी की किरदार नहीं है और न ही यह कोई मंच है जिस पर वह परफॉर्मेंस दे रही हो।
आप उसके चेहरे पर खिली मुस्कान को देखकर अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि जहां वह इस वक्त खड़ी है वह किसी जेल की चहारदीवारी है और वह एक बार डांसर है तथा दिल्ली की तिहाड़ जेल में विचाराधीन कैदी है।
आमतौर पर जेल की सलाखों को फिल्मी पर्दे पर बंद अंधेरी कोठरी के तौर पर दिखाया जाता है जिसका रंगों से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं होता। पर हकीकत इससे कहीं जुदा होती है, इस जेल की चहारदीवारी और ऊंचे दरवाजों के अंदर भी एक ऐसी जिंदगी है जो रंगों से भरपूर है।
यहां कोई किसी का भाई है तो कोई किसी की मां और न जाने ऐसे कितने ऐसे रिश्ते यहां बनते हैं जो खून के नहीं बल्कि इंसानियत के होते हैं। इन्हीं रंगों और रिश्ते नातों को कैद किया है इंडियन एक्सप्रेस की फोटोग्राफर रेणुका पुरी ने।
तिहाड़ जेल की जेल संख्या 6 में करीब 500 महिलाएं और 50 से 55 बच्चे कैद हैं या फिर यूं कहें कि जिंदगी को एक अलग नजरिए से देखने की कोशिश कर रहे हैं। रेणुका ने इन्हीं महिलाओं और बच्चों की दिनचर्या को अपने कैमरे की नजर से देखने और दुनिया को दिखाने की कोशिश की है।
उन्होंने अपने फोटो की 18 से 20 सितंबर तक तीन दिवसीय प्रदर्शनी लगाई है जिसमें करीब 50 चुने हुए फोटो रखे गए हैं। यह प्रदर्शनी स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड, ब्रैंडस्मिथ और एटूजेड ग्रुप के संयुक्त प्रयास से अशोक होटल में लगाई गई है।
बात 1996 की है जब रेणुका इंडियन एक्सप्रेस के एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में तिहाड़ जेल गई थीं। तब से लेकर अब तक यानी 12 साल से वह लगातार वहां जाती रही हैं और इन महिलाओं व बच्चों की जिंदगी के विभिन्न पहलुओं को अपने कैमरे के जरिए समझने की कोशिश कर रही हैं।
उन्होंने कैदी महिलाओं को एक परिवार की तरह देखा है जिनकी दिनचर्या सुबह चार बजे से शुरू होती है जब वे उठकर पुरुष जेल में उन कैदियों के लिए खाना तैयार करती हैं जो काम पर निकलते हैं। ये ठीक उसी तरीके से टिफिन पैक करती हैं जैसे कोई महिला अपने रिश्तेदारों या परिजनों के लिए करती है।
रेणुका को याद है कि पिछली दफा जब वह तिहाड़ जेल गई थीं तो स्टेला अचानक उनसे लिपटकर फूट फूट कर रोने लगी थी। स्टेला मूल रूप से दक्षिण अफ्रीका की है और पिछले कई सालों से नशीली दवाओं के कारोबार में लिप्त होने के आरोप में तिहाड़ में कैद हैं। रेणुका को एक बार तो यह समझ ही नहीं आया कि अमूमन खुशमिजाज दिखने वाली स्टेला को आखिर हुआ क्या है।
स्टेला ने बताया कि इतने सालों में इस जेल में रहकर उन्होंने जिंदगी को सही मायनों और अंदाज में जीना सीखा है और अब वह अपने परिवार वालों को ऐसी सारी खुशियां देना चाहती है जो पहले उनके साथ रहकर भी वह नहीं बांट पाई थी।
स्टेला इस जेल में बच्चों के लिए एक तरीके से क्रेच चलाने का काम करती हैं यानी उनका पूरा दिन यहां के बच्चों की परवरिश में ही गुजरता है।
पिछले 12 सालों तक जेल में आते जाते रहने से रेणुका इन महिला कैदियों के साथ इतनी घुल मिल गई हैं कि उन्होंने खुद उनके साथ कुछ रिश्तों को गढ़ा है। एक वाकये का जिक्र करते हुए वह बताती हैं, ‘एक दफा एक विचाराधीन कैदी ने अपने रिश्तेदारों से मिलने के लिए सिर्फ इस वजह से अपने चेहरे पर इतना मेकअप लगा लिया था ताकि रिश्तेदार उसके चेहरे पर छिपे दर्द के भावों को नहीं पढ़ पाएं।’
रेणुका की खींची हुई हर एक तस्वीर मानों हर महिला कैदी की जिंदगी की दास्तान सुनाती है। एक तस्वीर में ताले से खेलता हुआ बच्चा ऐसा कह रहा होता है मानो उसने जब से होश संभाला है तब से वह इसी खिलौने से खेल रहा है और वहीं एक दूसरी तस्वीर उस हिजड़े की है जिसे सभी महिला कैदी अपना भाई बना चुकी हैं।
अपनी फोटोग्राफी के करियर में अब तक के इस सबसे अनूठे अनुभवों के बारे में रेणुका बस इतना ही कहती हैं, ‘कई बार खून के रिश्तों से बढ़कर कुछ रिश्ते होते हैं और उनसे एक भरा पूरा परिवार बनता है। सलाखों के पीछे भी एक ऐसा ही परिवार छिपा है जिसकी कल्पना कोई तब तक नहीं कर सकता जब तक वह खुद इसे अपनी आंखों से नहीं देख लेता।’