बहुप्रतीक्षित 4 श्रम संहिताएं इस वित्त वर्ष की शुरुआत से आने को प्रस्तावित थीं, लेकिन अब इसमें और 3 महीने लग सकते हैं। इन पर सभी राज्यों ने नियम नहीं बनाए हैं। उम्मीद की जा रही है कि नया कानून आने से कारोबार सुगमता में सुधार होगा और निवेश आकर्षित होगा, साथ ही यह मजदूरों के अनुकूल कानून होंगे।
एक प्रमुख सरकारी सूत्र ने कहा, ‘श्रम समवर्ती सूची में है। 23 राज्यों ने संहिता पर कानून बना दिए हैं। 7 राज्य अभी बचे हुए हैं।’ समवर्ती सूची में शामिल विषयों पर केंद्र व राज्य सरकारें दोनों ही कानून बना सकती हैं। बहरहाल अगर ऐसे मसले पर केंद्र व राज्य के कानून में अगर कोई टकराव होता है तो केंद्र का कानून ही मान्य होता है।
श्रम संहिता के मामले में केंद्र व सभी राज्य सरकारों को 4 संहिता के तहत नियम बनाने हैं, जिसे संसद ने पहले ही पारित कर दिया है और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उसे मंजूरी दे दी है।
केंद्रीय श्रम मंत्रालय ने इन संहिताओं के तहत नियमों को अंतिम रूप दे दिया है। अधिकारियों ने कहा कि इसे पेश करने में कम से कम जून के अंत तक समय लग जाएगा।
सरकार चाहती है कि 4 श्रम कानून- वेतन संहिता, औद्योगिक श्रम संहिता, पेशेगत सुरक्षा, स्वास्थ्य व काम करने की स्थिति (ओएचएस) संहिता और सामाजिक सुरक्षा संहिता एकबारगी लागू किया जाए।
सरकार ने इस वित्त वर्ष में 1 अप्रैल से 4 श्रम कानून को लागू करने योजना बनाई थी। बहरहाल पश्चिम बंगाल में होने वाले विधानसभा चुनावों के कारण इसे टाल दिया गया। राज्य सरकारों ने भी इस पर अपने नियम नहीं बनाए थे। विशेषज्ञों का कहना है कि श्रम संहिताओं को लागू करने से निश्चित रूप निवेश आकर्षित होगा और इसमें कुछ महीने की देरी से भी कोई असर नहीं पड़ेगा। बैंक आफ बड़ौदा में मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, ‘श्रमिकों संबंधी समस्याएं पहले से ही ज्ञात थीं। श्रम संहिताओं को लागू करने में तेजी लाने से निश्चित रूप से निवेशकों की रुचि बढ़ेगी। मेरे खयाल से इन्हें पेश किए जाने से अस्थाई रूप से हो रही देरी से कोई समस्या नहीं आएगी।’
कोविड से प्रभावित 2020-21 की सुस्ती के बाद निवेश का संकेत देने वाले सकल नियत पूंजी सृजन (जीएफसीएफ) में चालू वित्त वर्ष के दौरान 14.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी का अनुमान है। बहरहाल अगर आधार वर्ष के रूप में कोविड के पहले के वित्त वर्ष 2019-20 को लें तो यह वृद्धि महज 2.54 प्रतिशत है। जीएफसीएफ 2020-21 में 10.40 प्रतिशत संकुचित हुआ था।
केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्रालय इन संहिताओं को लागू करने को लेकर राज्यों व उद्योग जगत के साथ परामर्श कर रहा है।