देश के दो बड़े महानगरों में कोरोनावायरस संक्रमण नियंत्रित होने के बाद एक बार फिर से तेजी से बढऩे लगा है। संक्रमण के मामले बढऩे के साथ ही अस्पताल में बेड मिलने की मुश्किल फिर से बढ़ रही है। उद्योग के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि जिन जगहों पर कोरोनावायरस के मद्देनजर अस्थायी अस्पताल बनाया गया था वहां जगहें खाली हैं और सरकारी अस्पतालों में भी मरीजों को रखने की पर्याप्त क्षमता है लेकिन लोगों की भीड़ निजी अस्पतालों में उमड़ रही है।
पिछले हफ्ते दिल्ली सरकार ने 33 अस्पतालों को कोविड मरीजों के लिए और आईसीयू बेड रिजर्व रखने का आदेश दिया था। इसने इनमें से 28 अस्पतालों से कहा कि वे अपने आईसीयू के 80 प्रतिशत बेड कोविड मरीजों के लिए आरक्षित रखें जबकि शेष पांच अस्पतालों को पूर्ण रूप से कोविड अस्पताल घोषित कर दिया गया।
हालांकि दिल्ली सरकार के इस कदम की निजी क्षेत्र ने आलोचना करते हुए कहा है कि सरकार गैर-कोविड मरीजों को जोखिम में डाल रही है। वहीं मुंबई में बेहतर देखभाल की सुविधा देने के लिए अस्थायी अस्पताल का ढांचा तैयार करने के मकसद से सरकार का मार्गदर्शन करने के लिए प्रमुख निजी अस्पतालों के वरिष्ठ डॉक्टरों से संपर्क किया जा रहा है। अस्थायी सुविधा केंद्रों का बेहतर इस्तेमाल करने के लिए ग्रेटर मुंबई नगर निगम (एमसीजीएम) या बीएमसी ने टेलीमेडिसन के माध्यम से कोविड देखभाल केंद्रों में डॉक्टरों की निगरानी और मार्गदर्शन करने के लिए शहर के शीर्ष अस्पतालों के प्रमुख 35 डॉक्टरों से संपर्क किया है।
दिल्ली सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, कोविड मरीजों के 14,409 बेड में से आधे से अधिक खाली पड़े हैं और कोविड स्वास्थ्य केंद्रों में लगभग तीन चौथाई बेड भर चुके हैं। वहीं मुंबई के निजी अस्पतालों में आईसीयू के करीब 91 फीसदी बेड भर चुके हैं। मुंबई में फिलहाल 1,732 आईसीयू बेड की क्षमता है। 15 सितंबर तक केवल 141 आईसीयू बेड ही उपलब्ध थे। वेंटिलेटर वाले बेड महज 67 फीसदी ही उपलब्ध हैं।
मुंबई के एक निजी अस्पताल के प्रशासक ने आरोप लगाया कि बिस्तरों के लिए यह तथाकथित संकट की स्थिति जानबूझकर बनाई गई है क्योंकि कई प्रभावशाली लोग निजी अस्पतालों में बिस्तर बेवजह बुक कर रहे हैं, भले ही उन्हें अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत न हो। कई लोगों में हल्के लक्षण हैं या बिल्कुल भी लक्षण नहीं है। लेकिन जैसे ही उन्हें कोविड-19 पॉजिटिव रिपोर्ट मिलती है वे घबरा जाते हैं और प्रमुख निजी अस्पतालों में खुद को भर्ती करा लेते हैं।
इस बीच बीएमसी द्वारा बनाए गए आईसीयू बेड खाली पड़े हैं जबकि स्थानीय अधिकारियों ने आश्वासन दिया है कि ऐसे अस्पतालों में देखभाल किसी भी निजी अस्पताल की तरह ही अच्छी है।
बीएमसी अब इस सप्ताह के अंत तक 250 बेड और जोडऩे की तैयारी में है। इसी तरह की सुविधा रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा भी दी जा रही है जो 1,000 बेड की सुविधा देगा जिनमें से 250 आईसीयू और वेंटिलेटर की सुविधा वाले बेड हैं। 12 दिनों के भीतर बनकर तैयार होने वाले ये अस्थायी अस्पताल मरीजों का नि:शुल्क इलाज कर रहे हैं और यहां जगह खाली है। डीआरडीओ को अस्पताल के बुनियादी ढांचे को और बढ़ाने के लिए अभी तक कोई निर्देश नहीं मिला है।
दिल्ली का सबसे बड़ा कोविड अस्पताल लोक नायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल (एलएनजेपी) है जिसके 2,010 बेड में से 255 आईसीयू बेड हैं और इसके अतिरिक्त भी 245 आईसीयू बेड जोडऩे का निर्देश दिया गया है। एलएनजेपी अस्पताल में आधे से अधिक जगह खाली पड़ी है, ऐसे में सरकार ने कर्मचारियों को बढ़ाने में मदद करने को कहा है। एलएनजेपी अस्पताल की मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ रितु सक्सेना ने कहा, ‘हम एनेस्थेटिक्स, तकनीशियनों, आइसीयू के लिए बेहतर प्रशिक्षण वाले कर्मचारियों की जरूरत है, भले ही उन्हें अस्थायी रूप से काम पर रखा जा सकता है। मामलों में वृद्धि के कारण अन्य अस्पताल मरीजों को हमारे पास भेज रहे हैं और हम जून की तुलना में अब बढ़े हुए मामलों को संभालने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।’
मुंबई में बीएमसी की निजी अस्पतालों के साथ हुई बैठक में तीन हफ्ते पहले ही मामलों में बढ़ोतरी का अनुमान लगाया गया था। मुंबई के हिंदुजा अस्पताल के मुख्य परिचालन अधिकारी जय चक्रवर्ती ने कहा, ‘हमने अनुमान लगाया था कि रोजाना के नए मामले 3,000 तक बढ़ सकते हैं। हालांकि यह संख्या अभी कम ही है।’
चक्रवर्ती ने संक्रमण के मामले में बढ़ोतरी के लिए गणपति उत्सव को जिम्मेदार ठहराया। आंकड़े भी ऐसा ही संकेत देते हैं। अगस्त के अंत तक रोजाना के नए मामलों की तादाद 1,000 से कम हो गई थी लेकिन सितंबर में यह आंकड़ा 2,200 हो गया। हालांकि सरकार ने जांच में वृद्धि के लिए ज्यादा मामलों को जिम्मेदार ठहराया है और विशेषज्ञों का मानना है कि नियमों में लापरवाही, शारीरिक दूरी और मास्क पहनने के अनुपालन में कमी की वजह से दिल्ली में संक्रमण के मामले बढ़े हैं जबकि जुलाई में एक दिन में 1,000 से भी कम मामले देखने को मिल रहे थे जबकि अब रोजाना 3,000 से अधिक मामले देखने को मिल रहे हैं। एक वरिष्ठ डॉक्टर ने कहा कि कोविड के मरीजों की तादाद काफी बढ़ गई है और युवाओं में गंभीर रूप से सांस से जुड़ी परेशानी देखी जा रही है हालांकि उन्हें पहले से कोई बीमारी मसलन मधुमेह या उच्च रक्तचाप (बीपी) जैसी कोई परेशानी नहीं है।
दिल्ली के इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ डॉक्टर (श्वसन चिकित्सा) डॉ. राजेश चावला ने कहा, ‘हमारे अस्पताल में आईसीयू बेड उपलब्ध नहीं हैं। जैसे ही एक बेड खाली होता है, हमें दूसरा मरीज मिल जाता है। हम पहले की तुलना में बेड की ज्यादा मांग देख रहे हैं।’
अस्पताल अब अपने संसाधनों का बेहतर प्रयोग करते हुए अपने मरीजों का प्रबंधन करने पर जोर दे रहे हैं। मुंबई के फोर्टिस हॉस्पिटल्स के जोनल डाइरेक्टर डॉ एस नारायणी ने कहा, ‘अगर एक ही परिवार के सदस्यों को भर्ती किया जाता है तब हम यह देखते है कि क्या हम उन्हें एक कमरे में रख सकते हैं। इसमें लक्जरी में कटौती जरूर होती है लेकिन इससे ज्यादा मरीजों की भर्ती की गुंजाइश बनती है। हम कोविड-19 के लिए होमकेयर से लेकर जांच और गंभीर स्थिति में भी देखभाल करते हैं। हम यह भी देखते हैं कि किन मरीजों की घर में निगरानी की जा सकती है।’
कोविड मृत्यु दर घटाएंगे
स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने गुरुवार को कहा कि देश में इस समय कोविड-19 से होने वाली मौत की दर दुनिया के अन्य देशों की तुलना में सबसे कम (1.64) फीसदी है और सरकार का लक्ष्य इसे घटाकर एक फीसदी से भी कम करने का है। कोरोना वायरस महामारी पर राज्यसभा में हुई चर्चा का जवाब देते हुए स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री हर्षवर्धन ने कहा कि भारत में कोविड मरीजों के स्वस्थ होने की दर 78 से 79 फीसदी है। उन्होंने कहा कि भारत कोविड-19 से स्वस्थ होने की उच्च दर वाले गिने-चुने देशों में शामिल है। हर्षवर्धन ने कहा कि कोरोनावायरस के कुल मामलों की संख्या भले अधिक हो लेकिन अस्पतालों में इलाज करा रहे कोविड मरीजों की संख्या 20 फीसदी से कम है। उन्होंने कहा कि भारत में कोविड महामारी की वजह से जान गंवाने वाले लोगों की संख्या यूरोप के कई देशों की तुलना में कम है। मंत्री ने कहा कि सरकार भारत में अमेरिका की तुलना में अधिक कोविड जांच करने पर विचार कर रही है। भाषा