अगर आप शहद का सेवन करते हैं तो यह खबर आपको परेशान कर सकती है। देश में शहद के कुछ बड़े ब्रांड जैसे डाबर, पतंजलि और इमामी एक विदेशी प्रयोगशाला द्वारा मिलावट का पता लगाने के लिए किए गए परीक्षण में खरे नहीं उतरे हैं। सेंटर फॉर साइंटस ऐंड एन्वायरनमेंट (सीएसई) ने बुधवार को यह बात कही। शहद को आम तौर पर शरीर में प्रतिरोध क्षमता बढ़ाने में मददगार समझा जाता है, लेकिन इस खबर के बाद इसमें मिलावट होने पर बहस फिर तेज हो गई है।
सीएसई ने कहा बड़े ब्रांडों में मैरिको का सफोला हनी भी सभी परीक्षणों में खरा उतरा है। सीएसई ने कहा कि इससे सीधा संकेत यह मिलता है कि बाजार में उपलब्ध ज्यादातर शहर ब्रांड मिलावटी हैं। इस संस्था ने कहा कि शहद के छोटे ब्रांड तो भारतीय एवं विदेशी मानकों दोनों पर प्रयोगशालाओं में खरे नहीं उतर पाए हैं।
शहद एक प्राकृतिक उत्पाद है, जो मधुमक्खियों के छत्तों से निकाला जाता है। सीएसई ने कहा कि बाजार में उपलब्ध शहद में चावल, अनाज, चुकुंदर और गन्ना से प्राप्त चीनी का सिरका मिलाया जाता है और इसे शुद्ध बताकर बेचा जाता है। सीएएसई ने कहा कि मिलावटी शहद खाने से स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा हो जाता है।
भारतीय मधुमक्खीपालकों ने ऐसी खबर दी थी कि शहद बनाने वाली कंपनियां बड़े पैमाने पर चीन से मंगाए जाने वाला चीनी का सिरका शहद में मिलाकर बाजार में बेच रही हैं। इसके बाद बाजार में उपलब्ध शहद ब्रांडों की जांच शुरू हो गई। हाल में चीन से आयात पर प्रतिबंध लगने के बाद भारतीय विनिर्माता अब उत्तराखंड जैसे राज्यों से चीनी का सिरका मंगा रहे हैं।
सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा कि कंपनियां अधिक से अधिक मुनाफा कमाने के चक्कर में शहद में हानिकारक पदार्थ मिलाकर बाजार में बेच रही हैं। उन्होंने कहा कि चीनी का सिरका शहद के मुकाबले आधी कीमत में उपलब्ध होता है। कच्चे शहद के दाम में कमी भी मिलावट की ओर इशारा कर रही है। अब इसकी कीमतें कम होकर अब 60 से 70 रुपये प्रति किलोग्राम रह गई हैं। छह वर्ष पहले शहद की कीमत 150 रुपये प्रति किलोग्राम हुआ करती थी। मधुमक्खीपालकों के लिए इतने सस्ते दाम में शहद बेचना मुनासिब नहीं है और वे पिछले कुछ वर्षों से इस कारोबार से बाहर हो रहे हैं।
नारायण ने कहा कि इस अध्ययन का महत्त्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि शहद में मिलावट इस कदर हो रही है कि एक भारतीय प्रयोगशाला द्वारा परीक्षण में शीर्ष ब्रांडों में मिलावट का पता नहीं लगाया जा सकता।
सुनीता नारायण ने कहा कि जर्मन में न्यूक्लीयर मैग्नेटिक रेजोनेंस स्पेक्ट्रोस्कोपी (एनएमआर) जैसी उच्च तकनीक के इस्तेमाल के बाद इस मिलावट का पता चल पाया। हालांकि अध्ययन में जिन ब्रांडों का जिक्र किया गया उन्होंने सीएसई के दावे पर सवाल उठाए हैं। डाबर इंडिया के प्रवक्ता ने कहा कि रिपोर्ट पूर्वग्रह से ग्रसित है और ऐसा लगता है कि कंपनी के ब्रांड की छवि खराब करने की कोशिश की जा रही है।
पतंजलि आयुर्वेद के प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि सीएसई की रिपोर्ट तथ्य से परे है और यह जर्मनी की तकनीक आगे बढ़ाने का जरिया मालूम पड़ती है। इमामी के प्रवक्ता ने कहा कि उनकी कंपनी एक जिम्मेदार संगठन है और वह सभी स्थापित मानकों का पालन करती है, इसलिए मिलावट की बात बेबुनियाद है। मैरिको को भेजे गए मेल का खबर लिखे जाने तक जवाब नहीं मिला।
