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अल्फा के मुकाबले डेल्टा 60 फीसदी तक ज्यादा संक्रामक

Last Updated- December 12, 2022 | 2:36 AM IST

भारत में सबसे पहले पाया गया कोरोनावायरस का डेल्टा स्वरूप, ब्रिटेन में पहले पाए जाने वाले अल्फा स्वरूप की तुलना में लगभग 40 से 60 फीसदी अधिक संक्रामक है और भारतीय सार्स-सीओवी-2 जीनोमिक्स कंसोर्टियम के सह अध्यक्ष एन के अरोड़ा के मुताबिक मौजूदा टीके वायरस के म्यूटेशन से बचाव में प्रभावी हैं।

स्वास्थ्य मंत्रालय की एक प्रेस विज्ञप्ति में अरोड़ा के हवाले से कहा गया है कि डेल्टा प्लस संस्करण की संक्रामकता, उग्रता और टीके से बचाव की खूबियों को लेकर शोध जारी है। अरोड़ा का कहना है, ‘अगर वायरस का कोई नया और अधिक संक्रामक स्वरूप आता है तब संक्रमण बढ़ सकता है। दूसरे शब्दों में कहें तो अगली लहर वायरस के एक ऐसे संस्करण की वजह से ही आएगी जिससे जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा प्रभावित होगा।’ डेल्टा प्लस संस्करण-एवाई.1 और एवाई.2 के 55-60 मामले महाराष्ट्र, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश सहित 11 राज्यों में पाए गए हैं।

हालांकि उन्होंने कहा कि अगर ज्यादा लोग टीके लगाते हैं और कोविड के अनुरूप बरताव करते हैं तब भविष्य में महामारी की किसी भी लहर को नियंत्रित किया जा सकेगा और इसके आने में देर होगी। उन्होंने कहा कि यह कहना मुश्किल है कि डेल्टा संस्करण के कारण यह बीमारी ज्यादा गंभीर हुई है क्योंकि भारत में पहली लहर की तरह ही दूसरी लहर के दौरान भी समान उम्र वर्ग के लोग गंभीर रूप से संक्रमित हुए और उनकी मौत हुई।

आईएनएसएसीओजी ने महामारी की शुरुआत के 10 प्रयोगशालाओं से बढ़ाकर 28 प्रयोगशालाओं के साथ अपने नेटवर्क का विस्तार किया है और यह पहले के 30,000 नमूने प्रति माह के बजाय 50,000 नमूनों के सीक्वेंस की क्षमता बना रही है। अरोड़ा ने कहा कि पूरे देश को भौगोलिक क्षेत्रों में बांटा गया है और प्रत्येक प्रयोगशाला को एक क्षेत्र विशेष की जिम्मेदारी दी गई है।

उन्होंने कहा, ‘हमने प्रत्येक क्लस्टर में लगभग चार जिलों में 180-190 क्लस्टर बनाए हैं। नियमित रैंडम स्वैब नमूने और गंभीर बीमारी से ग्रस्त मरीजों, टीके से हुआ संक्रमण, अन्य असामान्य क्लिनिकल प्रेजेंटेशन के लिए नमूने एकत्र किए जाते हैं और इन्हें सीक्वेंसिंग के लिए क्षेत्रीय प्रयोगशालाओं में भेजा जाता है।’

भारत में अक्टूबर 2020 में पहली बार पहचाने गए डेल्टा संस्करण के बारे में बात करते हुए अरोड़ा ने कहा कि यह देश में दूसरी लहर के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार था और कोविड-19 के नए मामलों में इसकी हिस्सेदारी 80 फीसदी से अधिक थी।

यह संस्करण महाराष्ट्र में उभरा और मध्य तथा पूर्वी राज्यों में प्रवेश करने से पहले यह देश के पश्चिमी राज्यों के साथ उत्तरी क्षेत्र में फैला। अरोड़ा ने आगे कहा, ‘हालांकि देश के अधिकांश हिस्सों में मामलों की संख्या में काफी गिरावट आई है लेकिन कुछ क्षेत्रों में विशेष रूप से देश के उत्तर-पूर्वी हिस्सों और दक्षिणी राज्यों के कई जिलों में संक्रमण की दर ऊंची है और इनमें से ज्यादातर मामले डेल्टा संस्करण के कारण हो सकते हैं।’

First Published - July 19, 2021 | 11:38 PM IST

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