देश के निजी संस्थानों ने गुरुवार को जारी नवीनतम क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग्स में विषय अनुसार अपने प्रदर्शन में सुधार किया है। हालांकि क्यूएस वल्र्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग्स में निजी संस्थानों की तुलना में ‘प्रतिष्ठित संस्थान’ के रूप में सार्वजनिक संस्थानों का उल्लेखनीय ढंग से बेहतर प्रतिनिधित्व रहा है। प्रतिष्ठित संस्थान के रूप में चुने गए दस निजी विश्वविद्यालयों में से छह संस्थानों ने विषय अनुसार रैंकिंग में जगह बनाई है। शीर्ष 100 में ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी ही एकमात्र निजी प्रतिष्ठित संस्थान रही।
क्यूएस में वरिष्ठ उपाध्यक्ष (व्यावसायिक सेवा) बेन सॉटर ने इस ताजा रैंकिंग के संबंध में कहा कि भारत में निजी रूप से चलाए जाने वाले वाले संभावित प्रतिष्ठित संस्थानों में कई कार्यक्रमों ने इस साल उस सकारात्मक भूमिका का प्रदर्शन करते हुए प्रगति की है जिसे भली-भांति विनियमित निजी प्रबंधन भारत के उच्च शिक्षा क्षेत्र में बढ़ावा देने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।
वैश्विक उच्च शिक्षा विश्लेषकों द्वारा संकलित क्यूएस (क्यूआक्यूअरेली साइमंड्स) की रैंकिंग के ग्यारहवें संस्करण में 51 शैक्षणिक विषयों और पांच व्यापक संकाय क्षेत्रों में 14,435 व्यक्तिगत विश्वविद्यालय कार्यक्रमों के प्रदर्शन के आधार पर स्वतंत्र तुलनात्मक विश्लेषण किया गया है।
इस साल वैश्विक स्तर पर सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले भारतीय संस्थानों में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मद्रास अपने पेट्रोलियम इंजीनियरिंग कार्यक्रम के लिए 30वें स्थान पर रहा है। इसके साथ ही आईआईटी बंबई और आईआईटी खडग़पुर को खनिज एवं खनन इंजीनियरिंग के लिए 41वां और 44वां स्थान दिया जा रहा है। दिल्ली विश्वविद्यालय ने अपने विकास अध्ययन के लिए वैश्विक स्तर पर 50वां पायदान हासिल किया है।
हालांकि 51 विषयों की रैंकिंग में भारतीय कार्यक्रमों की संख्या पिछले वर्ष के 235 से घटकर 233 रह जाने से रैंकिंग करने वाली एजेंसी क्यूएस का मानना है कि भारत के लिए कुछ गंवाए बिना कार्यक्रमों के विस्तार प्रावधान का कार्य अत्यधिक चुनौतीपूर्ण है। जहां एक ओर 12 प्रमुख भारतीय विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा संस्थानों ने अपने विषय में शीर्ष-100 की सूची में स्थान प्राप्त किया है, वहीं दूसरी ओर कुल मिलाकर भारत के 25 कार्यक्रमों ने शीर्ष-100 में जगह बनाई है, जो पिछले संस्करण से एक कम है। सॉटर ने कहा कि भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक चुनौती शिक्षा संबंधी है, तेजी से बढ़ती मांग के सम्मुख उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करना है। इसे पिछले साल की एनईपी द्वारा काफी मान्यता मिली थी जिसमें वर्ष 2035 तक 50 प्रतिशत सकल नामांकन अनुपात के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य को निर्धारित किया गया था। इसलिए इस बात की चिंता कम ही होनी चाहिए कि हमारी 51 विषयों की रैंकिंग में भारतीय कार्यक्रमों के शामिल होने की संख्या वास्तव में पिछले वर्ष की तुलना में कम हो गई है, जो 235 से घटकर 233 रह गई है।
निजी संस्थानों में जहां ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी ने कानून विषय के लिए वैश्विक शीर्ष-100 की सूची में प्रवेश किया है, वहीं बिड़ला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी ऐंड साइंस ने फार्मेसी एवं फार्माकोलॉजी के लिए इस रैंकिंग में 151-200 समूह में जगह बनाते हुए प्रवेश किया है।
फार्मेसी एवं फार्माकोलॉजी विषय की रैंकिंग में भारत के जामिया हमदर्द ने भी 101-150 समूह में जगह बनाते हुए शीर्ष 150 रैंकिंग की सूची में प्रवेश किया है। मणिपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन ने भी 151-200 वाले समूह में जगह बनाते हुए शीर्ष 200 में प्रवेश किया है, जबकि वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (वीआईटी) इलेक्ट्रिकल एवं इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग के लिए 251-300 वाले समूह में शीर्ष 300 की सूची में शामिल हुआ है।