एक ऐसा साल, जब जीवन ठहर गया। ऐसा साल जब जीवन नियंत्रण से बाहर हो गया। ऐसा साल, जब भारी नुकसान हुआ। ऐसा साल जब नए मौके पैदा हुए। ऐसा साल जब पुराने दिनों की चाहत के साथ नए तरीके अपनाए गए। देश में 30 जनवरी, 2020 को कोविड संक्रमण का पहला मामला आने के बाद पिछले 12 महीनों को बयां करने का कोई एक तरीका नहीं है। हमारे जीवन को परिभाषित करने वाले दो स्तंभ- घर और कार्यालय बहुत से लोगों की तरह डाबर इंडिया के चेयरमैन अमित बर्मन के लिए भी एक बन गए हैं। बर्मन इस दौरान अपने परिवार के साथ लंदन में रहे हैं। अगर यह सामान्य वर्ष होता तो वह अपने दिल्ली कार्यालय में जा रहे होते, जबकि उनका बेटा ब्रिटेन में कॉलेज में जाता और उनकी बेटी अमेरिका में पढ़ाई करती। उनका परिवार कई महीनों से एक साथ है। बर्मन कहते हैं कि वह अपने बच्चों के कॉलेज के जीवन और अनुभवों को नजदीक से जान पाए हैं। उन्होंने उनके साथ बैडमिंटन और बोर्ड गेम खेलकर समय बिताया। यह उनके लिए सामान्य समय में संभव नहीं होता। उन्होंने बाहर से ही डाबर के परिचालन को देखने के अलावा पोकर स्पोट्र्स लीग के तीसरे सीजन का आयोजन किया है। यह इस तरह के सबसे बड़े कार्यक्रमों में से एक है, जो फिलहाल चल रहा है।
बहुत से कारोबारों के लिए लोगों को कार्यालय में बुलाने की जरूरत कम हो गई है। हालांकि अन्य बहुत से उद्यमों के लिए कर्मचारियों को कार्यालय बुलाना आवश्यक है। एक बड़े सार्वजनिक क्षेत्र के केंद्रीय उपक्रम में वरिष्ठ प्रबंधक और इस समय असम में कार्यरत कृष्ण जी इन्सान ने कहा, ‘हमारा क्षेत्र आवश्यक सेवा क्षेत्र है, इसलिए हम महामारी के दौरान भी तेल (ऑयल इंडिया लिमिटेड ) फील्ड में काम करते रहे ताकि भारतीयों की जरूरत पूरी कर सकें।’ उनके जैसे पेशेवरों के लिए अपने काम की दिनचर्या अब ज्यादा चुनौतीपूर्ण है और जिम्मेदारियां अधिक हैं। उन्हें कोविड सुरक्षा नियमों का पालन भी सुनिश्चित करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा, ‘हम पहले की तरह रोजाना कार्यालय जा रहे हैं और बैठकों में सभी कोविड नियमों का पालन कर रहे हैं। अगर व्यक्तिगत रूप से मिलना आवश्यक नहीं होता है तो ज्यादा बैठक वर्चुअल ही होती हैं।’
अब कार्यालय का जीवन मिलाजुला यानी ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों है। वह कहते हैं, ‘कुछ कार्यक्रम ऑनलाइन आयोजित होने से हमें ज्यादा घंटे काम करना पड़ रहा है।’ मगर वह शिकायत नहीं कर रहे हैं। अन्य लोगों की तरह वह इस चुनौती से निपट रहे हैं और उन्होंने पेशे और व्यक्तिगत जीवन से संबंधित नए कौशल हासिल किए हैं। वह कहते हैं, ‘टीके का इंतजार है। उसके बाद हम सामान्य दिनचर्या में लौट सकते हैं।’
यह महामारी स्वास्थ्य और दवा उद्योग के लिए कदम उठाने का समय था। जब कोविड-19 संक्रमण फैला तो इन क्षेत्रों ने खुद को चुनौतियों से घिरा पाया। हैदराबाद में डॉ. रेड्डीज लैब्स में सीईओ (एपीआई एवं फार्मास्यूटिकल सेवाएं) दीपक सप्रा ने कहा, ‘हमारे पूरे कर्मचारियों के लिए घर से काम करना एक विकल्प नहीं था।’ उन्होंने कहा, ‘दवा अनुसंधान प्रयोगशाला और विनिर्माण के लिए व्यक्तिगत मौजूदगी की जरूरत होती है।’ सबसे बड़ी चुनौती काम पर आने और पूरी सुरक्षा एवं आत्मविश्वास के साथ काम करने के लिए लोगों की एक बड़ी टीम बनाना था।
सप्रा कहते हैं, ‘पारी का समय आठ घंटे से बढ़ाकर 12 घंटे किया गया और लोग एक सप्ताह में चार दिन काम करने के लिए बारी-बारी से आए। इससे काम की सुपुर्दगी कम हुई और संक्रमण का खतरा कम हुआ।’ लोगों के परिसर में या नजदीक रहने की व्यवस्था भी की गई। कर्मचारियों की बसों में सीटों के बीच खाली जगह बढ़ाई गई। कॉरपोरेट और परियोजना प्रबंधन जैसे कर्मचारियों को घर से काम करने में सक्षम बनाया गया। सप्रा ने कहा, ‘यह चुनौतीपूर्ण समय था।’ अब स्थितियां पटरी पर आ गई हैं और लगभग सामान्य समय जैसी हो गई हैं। लेकिन इनमें से कुछ चीजें अब भी चल रही हैं।
लॉजिस्टिक चिंताओं एवं हालात के हिसाब से ढलने के अलावा इस अवधि को मानसिक बदलाव के लिए भी जाना जाता है। गुरुग्राम में एक फिनटेक कंपनी में काम करने वाले कुमार आदित्य ने कहा कि कारोबार के समीकरण बदल रहे हैं। माना कि जो चीजें अगले पांच साल में होतीं, उनकी रफ्तार तेज हो गई है। आदित्य की कंपनी उत्पाद सह सेवा कंपनी थी। अब यह खुद को उत्पाद केंद्रित कंपनी में बदल रही है क्योंकि सेवाएं मुहैया कराने की लागत काफी अधिक है। वह कहते हैं, ‘स्वाभाविक रूप से कर्मचारियों में चिंता है, जिन्हें एक चीज के लिए भर्ती किया गया था। अब वे एक ऐसा काम कर रहे हैं, जो कम अनुभव वाला व्यक्ति भी कम वेतन में कर सकता है।’
इस अनिश्चितता से एक अहम सीख मिली है ‘भले ही आपकी नौकरी सुरक्षित न हो, लेकिन यह सुनिश्चित करें कि आपका करियर सुरक्षित है।’ इसलिए वह अपने कौशल को अद्यतन कर रहे हैं, ज्यादा पढ़ रहे हैं, अपने आसपास की चीजों को लेकर ज्यादा जागरूक हो रहे हैं और अच्छी निवेश योजना पर ध्यान दे रहे हैं। उन्होंने बिना किसी व्यवधान के एकाग्रचित होकर काम करने की अहमियत भी महसूस की है। घर से काम करने के दौरान कभी-कभी एकाग्रचित होकर काम करना मुश्किल होता है। आदित्य कहते हैं कि शुरुआती महीनों में प्रबंधकों को यह संदेह रहता था कि लोग असल में घर से काम कर रहे हैं या नहीं, इसलिए हर तीन घंटे में पकडऩे या जायजा लेने के लिए कॉल की जाती थीं। वह कहते हैं, ‘उसमें काफी समय बरबाद होता था, लेकिन हर कोई कमोबेश घर से काम में सहज हो गया है।’
बेंगलूरु की एक स्वतंत्र मानव संसाधन सलाहकार अंजलि वर्मा को उम्मीद है कि मनोस्थिति में इस बदलाव से एक बड़ा बदलाव आएगा। उन्होंने कहा, ‘जिस तरह से घरेलू कामकाज लैंगिक रूप से बंटा हुआ है, उसमें बड़ा बदलाव आ रहा है। लॉकडाउन ने ऐसी चर्चाओं को सामान्य बना दिया और पुरानी धारणाओं को चुनौती देने में मदद दी है। उन्हें उम्मीद है कि इसका प्रबंधकों पर सकारात्मक असर पड़ेगा और उन्हें ज्यादा समानुभूति पूर्ण बनने में मदद देगा। वर्मा ने कहा, ‘पहले घर से काम को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता था।’ अब यह बदल गया है।
गुरुग्राम की ज्यादा बहुराष्ट्रीय कंपनियां (एमएनसी) जून से पहले अपने कर्मचारियों को कार्यालय नहीं बुलाना चाहती हैं। कुछ ने महज 10 फीसदी कर्मचारियों के साथ शुरुआत की है। देश भर में जिन कार्यालयों में कर्मचारियों को बुलाया जा रहा है, वहां ऐसा पालियों में हो रहा है और सामाजिक दूरी के नियमों का पालन सुनिश्चित किया जा रहा है। एक हाइब्रिड मॉडल नया सामान्य है। दिल्ली में रहने वाले आदित्य घर से काम जारी रहने को लेकर खुश होंगे। वह कहते हैं, ‘लेकिन मैं कभी-कभी यह महसूस करता हूं कि मैंने अपनी मां की जगह का अतिक्रमण कर लिया है, जो दिन में घर में रहती हैं।’ लेकिन वह यात्रा में लगने वाला समय बचने से खुश हैं। वह कहते हैं, ‘मेरी दिनचर्या बेहतर है। मैं खुद पर ध्यान दे पाता हूं और अनुशासित रह पाता हूं।’