भारत व ऑस्ट्रेलिया एक अंतरिम व्यापार समझौते को अंतिम रूप दे रहे हैं। इस मामले से जुड़े लोगों का कहना है कि दोनों देशों ने इस समझौते से संवेदनशील और विवादास्पद मसलों को अलग रखा है, ऐसे में शुरुआती लाभ देने वाले इस समझौते में किसी विवाद से बचने की कवायद की गई है।
सूत्रों ने संकेत दिए कि कृषि और डेरी जैसे विवादास्पद सामानों की बाजार तक व्यापक पहुंच के मसलों को इस समझौते से फिलहाल बाहर रखा गया है। बहरहाल बहुत ज्यादा मूल्य की वस्तुओं जैसे भेड़ के मांस, महंगी गाजर इस चर्चा का हिस्सा हो सकते हैं, क्योंकि भारत में इनकी व्यापक खपत नहीं है।
सूत्र ने कहा, ‘ऑस्ट्रेलिया से भारत भेजे जाने उत्पादों की प्रतिस्पर्धा भारत में स्थानीय रूप से उत्पादित वस्तुओं से नहीं होगी। उदाहरण के लिए महंगी गाजर क ा थोड़ी मात्रा में भारत में निर्यात से छोटे किसानों के हितों पर प्रभाव नहीं पड़ेगा। इसकी बिक्री प्राथमिक रूप से महंगे होटलों में होती है। इसी तरह से ऑस्ट्रेलिया की भेड़ (लैंब) के मांस के भारत में खरीदार उनसे अलग हैं, जो भारत की भेड़ की खरीदारी
करते हैं।’
भारत और ऑस्ट्रेलिया ने मुक्त व्यापार समझौते या समग्र आर्थिक सहयोग समझौते (सीईसीए) के पहले अंतरिम समझौते के लिए सख्त अंतिम तिथि तय की है। समग्र समझौता 25 दिसंबर तक होना है, उसके पहले बहुत काम किया जाना बाकी है। दोनों देशों के अधिकारी समझौते को जल्द से जल्द अंतिम रूप देने के लिए लगातार संपर्क में हैं। पिछले सप्ताह वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने ऑस्ट्रेलिया के उद्योग मंत्री डान टेहन से वर्चुअल मुलाकात की थी, जिससे समझौते की ताजा स्थिति जानी जा सके।
प्रस्तावित समझौते में कम शुल्क और टेक्सटाइल्स, फार्मास्यूटिकल्स, फुटवीयर, चमड़ा जैसे सामान के भारत के निर्यातकों की बाजार तक व्यापक पहुंच शामिल हो सकती है। वहीं दूसरी तरफ ऑस्ट्रेलिया डेरी उत्पादों, दूध, महंगी शराबों व अन्य वस्तुओं पर कम शुल्क लगाए जाने की मांग कर रहा है।
वित्त वर्ष 21 में ऑस्ट्रेलिया भारत का 15वां सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार था। मुख्य रूप से पेट्रोलियम उत्पाद, दवाएं, तराशे गए हीरे, सोने के गहनों, परिधान का निर्यात ऑस्ट्रेलिया को किया गया। सेवा के क्षेत्र में प्रमुख भारतीय निर्यात यात्रा, टेलीकॉम, कंप्यूटर, सरकार और वित्तीय सेवाओं से जुड़े हैं, जबकि ऑस्ट्रेलिया के सेवा निर्यात में मुख्य रूप से शिक्षा और व्यक्तिगत यात्राएं शामिल हैं।
शुरुआती लाभ देने वाले समझौते से जिन विवादास्पद सामानों को बाहर रखा जा सकता है, उनमें डेरी और दूध शामिल हैं।
डेरी ऑस्ट्रेलिया का एक अहम ग्रामीण उद्योग है, जहां 2018-19 में 8.8 अरब लीटर दूध का उत्पादन हुआ था। रिपोर्ट के मुताबिक ऑस्ट्रेलिया में डेरी क्षेत्र में 46,200 लोग काम करते हैं। यह देश का चौथा बड़ा ग्रामीण उद्योग है, जहां 4.4 अरब डॉलर की कृषि सामग्री का उत्पादन होता है।
ऑस्ट्रेलिया अपने कुल दूध उत्पादन का करीब 35 से 40 प्रतिशत निर्यात करता है। निर्यात में बड़ा हिस्सा मूल्यवर्धित उत्पादों का होता है, जिनमें चीज, बटर, अल्ट्रा हीट ट्रीटेड मिल्क और मिल्क पाउडर शामिल है।
इन सभी सामग्रियों में भारत के किसान और घरेलू दूध उद्योग स्किम्ड मिल्क पाउडर (एसएमपी) के ऑस्ट्रेलिया से भारत को निर्यात का कड़ा विरोध कर रहे हैं। यह डर है कि अगर एफटीए के हिस्से के रूप मेंऑस्ट्रेलिया के एसएमपी का भारत में कम शुल्क पर आयात किया जाता है तो इससे घरेलू एसएमपी की कीमत नीचे आएगी और दूध खरीद की कीमत भी कम होगी।
विशेषज्ञों का कहना है कि आगामी समझौते में सेवा क्षेत्र पर ज्यादा जोर दिए जाने की जरूरत है। इंडियन काउंसिल फार रिसर्च आन इंटरनैशनल इकोनॉमिक्स रिलेशंस (इक्रियर) में प्रोफेसर निशा तनेजा ने कहा, ‘हेल्थकेयर, शिक्षा जैसी तमाम सेवाओं में आगामी समझौते में ज्यादा जोर देने की जरूरत है। इससे ऑस्ट्रेलिया को भारत के विद्यार्थियों को ऑनलाइन कोर्स के माध्यम से शिक्षा देने और विश्वविद्यालय स्थापित करने का मौका मिलेगा।’
