नॉन प्रॉफिट आर्गनाइजेशन Oxfam की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 10 सालों में दुनिया के सबसे अमीर 1% लोगों की दौलत में करीब 42 लाख करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हुई है। ये रकम दुनिया की आधी जनता की कुल दौलत से करीब 36 गुना ज्यादा है। इसके बावजूद, इन अमीर लोगों ने अपने कुल पैसे का सिर्फ आधा प्रतिशत से भी कम टैक्स दिया है। दुनिया के ज्यादातर अमीर लोग (करीब 80%) G20 देशों में रहते हैं। अब G20 देशों का समिट ब्राजील में होने वाला है, जिसमें इन अमीर लोगों पर ज्यादा टैक्स लगाने की बात हो सकती है।
अमीरों की दौलत बढ़ी, टैक्स घटे
ओक्सफैम का कहना है कि अमीर लोगों की दौलत बहुत तेजी से बढ़ी है, लेकिन इन पर लगने वाले टैक्स बहुत कम हो गए हैं। इससे अमीर और गरीब के बीच का फासला बहुत ज्यादा बढ़ गया है। ज्यादातर लोग बहुत कम पैसे में गुजारा कर रहे हैं।
ब्राजील में होने वाली G20 की बैठक से उम्मीदें
ब्राजील इस वक्त G20 का अध्यक्ष है। G20 देशों की अर्थव्यवस्था दुनिया की कुल अर्थव्यवस्था का 80% है। ब्राजील चाहता है कि इन देशों के साथ मिलकर अमीर लोगों पर ज्यादा टैक्स लगाया जाए। इस हफ्ते शिखर सम्मेलन के उद्घाटन के दौरान इस बारे में बातचीत हुई है। इन देशों के वित्त मंत्री अमीर लोगों पर ज्यादा टैक्स लगाने और टैक्स बचाने के उनके तरीकों को रोकने के तरीके खोज रहे हैं। समित नवंबर में शुरू होगा।
इस समिट में अमीर लोगों पर टैक्स लगाने के तरीके ढूंढने की कोशिश होगी। फ्रांस, स्पेन, दक्षिण अफ्रीका, कोलंबिया और अफ्रीकी संघ इस बात के पक्ष में हैं, लेकिन अमेरिका खिलाफ है।
G20 सरकारों की परीक्षा का समय
ओक्सफैम का कहना है कि ये G20 सरकारों के लिए एक बहुत बड़ी परीक्षा है। ओक्सफैम चाहता है कि अमीर लोगों की कुल दौलत पर हर साल कम से कम 8% टैक्स लगाया जाए। ओक्सफैम के मैक्स लॉसन का कहना है कि अमीर लोगों पर ज्यादा टैक्स लगाने की मांग तेजी से बढ़ रही है। लेकिन सवाल ये है कि क्या सरकारें ऐसा करने की हिम्मत दिखाएंगी? क्या वे ज्यादा लोगों के हित में फैसले लेंगी या कम लोगों के?
अमीर देशों ने जलवायु फंडिंग के आंकड़े बढ़ाए
इस महीने की शुरुआत में, ओक्सफैम ने अमीर देशों पर आरोप लगाया कि उन्होंने विकासशील देशों को जलवायु फंडिंग देने के आंकड़े बढ़ाकर बताए हैं। इन देशों ने दावा किया था कि उन्होंने 2022 में करीब 116 अरब डॉलर की जलवायु फंडिंग दी है, लेकिन असल में ये रकम सिर्फ 35 अरब डॉलर थी। और इसमें से भी बहुत सारा पैसा कर्ज के रूप में दिया गया, जिस पर ब्याज भी लगता है। इससे पहले से कर्ज में डूबे देशों का बोझ और बढ़ गया।
साल 2009 में कोपेनहेगन में हुये जलवायु सम्मेलन में अमीर देशों ने वादा किया था कि वे 2020 से हर साल 100 अरब डॉलर विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से लड़ने में मदद के लिए देंगे। लेकिन ये पैसा देने में देरी हुई है, जिससे इन देशों पर भरोसा कम हुआ है और जलवायु सम्मेलनों में विवाद बढ़ रहे हैं।
ओक्सफैम का अनुमान है कि अमीर देशों ने असल में 2022 में सिर्फ 28 से 35 अरब डॉलर की जलवायु फंडिंग दी है। और इसमें से ज्यादा से ज्यादा 15 अरब डॉलर ही उन देशों को मिले हैं।