अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने कहा कि अमेरिका वाहन, सेमीकंडक्टर और फार्मास्युटिकल के आयात पर 25 फीसदी शुल्क लगा सकता है, जिसकी औपचारिक घोषणा 2 अप्रैल को की जा सकती है। इसका असर भारत सहित दुनिया भर के बाजार में व्यापार पर पड़ने की आशंका है।
भारत के दवा उद्योग के सूत्रों का मानना है कि यदि अमेरिका दवाओं के आयात पर शुल्क लगाता है तो उस देश में दवाओं की किल्लत बढ़ सकती है। वाहन उद्योग पर इसका प्रभाव अपेक्षाकृत कम रहने की उम्मीद है क्योंकि भारत अमेरिका को बामुश्किल वाहन का निर्यात करता है। कलपुर्जा निर्यातक स्थिति पर नजर रख रहे हैं।
फार्मा उद्योग का मानना है कि ट्रंप के कदम से कुछ उत्पादन अमेरिका जा सकता है लेकिन इससे तैयार उत्पादों की कीमतें बढ़ सकती हैं और अल्पावधि से मध्यम अवधि में अमेरिका में दवाओं की कमी भी होगी। ट्रंप ने कहा है कि वह वाहन, फार्मास्युटिकल और सेमीकंडक्टर के आयात पर करीब 25 फीसदी शुल्क लगा सकते हैं, जिसकी विस्तृत जानकारी 2 अप्रैल के आसपास दी जाएगी और एक साल के दौरान शुल्क ‘काफी’ बढ़ सकते हैं।
ट्रंप ने कहा कि नए शुल्क की घोषणा से पहले वे ‘कंपनियों को आने का समय’ नहीं देना चाहते हैं। अमेरिका में जेनेरिक दवाओं की आपूर्ति में भारत का योगदान 47 फीसदी है। भारत सस्ती जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। इसके बाद अमेरिका (30 फीसदी), पश्चिम एशियाई देश (11 फीसदी) और यूरोप (5 फीसदी) की कंपनियों का स्थान आता है।
घरेलू दवा कंपनियों के संगठन इंडियन फार्मास्युटिकल अलायंस (आईपीए) ने कहा कि इस मामले पर दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय बातचीत के माध्यम से चर्चा की जाएगी और उसके अनुसार आगे के कदम उठाए जाएंगे। आईपीए के महासचिव सुदर्शन जैन ने कहा, ‘भारतीय दवा उद्योग अमेरिका में सस्ती और गुणवत्तापूर्ण दवाएं उपलब्ध कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारतीय कंपनियां अमेरिका में रोगियों के लिए लगभग 47 फीसदी जेनेरिक दवाओं की आपूर्ति करती हैं और देश की स्वास्थ्य देखभाल बचत में अहम योगदान देती हैं।
बराबरी शुल्क के बारे में प्रस्ताव पर अभी बातचीत चल रही है और इसका मूल्यांकन किया जा जा रहा है। द्विपक्षीय बातचीत के बाद ही कोई कदम तय किए जाएंगे। भारत और अमेरिका स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में लंबे समय से भागीदारी कर रहे हैं। हमें विश्वास है कि हितधारकों के बीच निरंतर संवाद से इस विषय को सुलझाने में मदद मिलेगी। सस्ती दवाओं की निरंतर उपलब्धता सुनिश्चित करना दोनों देशों की साझा प्राथमिकता है।’
अमेरिकन सोसाइटी ऑफ हेल्थ-सिस्टम फार्मासिस्ट्स (एएसएचपी) के अनुसार 2024 की तीसरी तिमाही में अमेरिका में लगभग 271 दवाओं की कमी थी, जो 2024 की पहली तिमाही में 323 के सर्वकालिक उच्च स्तर से कम है। तूफान हेलेन के कारण विनिर्माण में देरी से महत्त्वपूर्ण और जीवन रक्षक फ्लूइड के 12 नए उत्पाद की कमी हो गई।
गुजरात के एक निर्यातक ने कहा, ‘इसके परिणामस्वरूप मरीजों को दवा बंद करने या निर्धारित खुराक से कम खुराक लेने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इंजेक्टेबल और कुछ पुरानी जेनेरिक दवाओं के मामले में स्थिति और भी खराब है। कई अमेरिकी विनिर्माताओं ने कम कीमत और तंग मार्जिन के कारण जेनेरिक दवाओं का उत्पादन बंद कर दिया है। एफडीए गुणवत्ता मानकों को पूरा न करना भी दवाओं की कमी का कारण है।’
एक अग्रणी दवा निर्यातक फर्म के एमडी व सीईओ ने कहा कि अगर कोई कंपनी अमेरिका में अपना कारखाना लगाती है तो एपीआई खरीदना कठिन हो जाएगा, जिससे अल्पावधि से मध्यम अवधि में दवाओं की कुछ किल्लत हो सकती है।
उन्होंने कहा, ‘यदि शुल्क बढ़ोतरी की घोषणा की जाती है तो निश्चित रूप से घबराहट पैदा होगी क्योंकि हर कोई अतिरिक्त शुल्क का बोझ ग्राहकों पर डालना चाहेगा, खास तौर पर कम मार्जिन वाले उत्पादों पर। इसके परिणामस्वरूप कुछ विनिर्माण अमेरिका जा सकता है मगर एपीआई खरीद महंगी हो सकती है क्योंकि अमेरिका में एपीआई सुविधाएं बहुत सीमित हैं। ऐसे में तैयार दवाओं के दाम भी बढ़ जाएंगे।’
भारत में करीब 640 से 650 कारखाने हैं जिन्हें दवा विनिर्माण के लिए अमेरिकी एफडीए से मंजूरी हासिल है। सन फार्मा, सिप्ला, ल्यूपिन और बायोकॉन जैसी प्रमुख कंपनियों के अमेरिका में भी कारखाने हैं। ट्रंप के बयान से निफ्टी फार्मा सुबह के कारोबार में तेजी से लुढ़क गया था लेकिन कारोबार की समाप्ति पर इसने अच्छी वापसी की। सन फार्मा 1.38 फीसदी, अरबिंदो फार्मा 2.38 फीसदी, ल्यूपिन 1.79 फीसदी और डॉ. रेड्डीज लैबोरेटरीज 2.7 फीसदी गिरावट पर बंद हुए।
सन फार्मा के सीईओ (उत्तर अमेरिका कारोबार) अभय गांधी ने वित्त वर्ष 2025 की तीसरी तिमाही के नतीजों के बाद विश्लेषकों के साथ बातचीत में कहा था, ‘हम नहीं जानते कि शुल्क प्रस्ताव का अंतिम स्वरूप क्या होगा। आप यह भी जानते होंगे कि अभी कुछ प्रमुख नियुक्तियों की पुष्टि नहीं हुई है। इसलिए जब तक हमें वास्तव में यह पता न चल जाए कि क्या कार्रवाई की जा रही है, हमारे लिए पहले से योजना बनाना कठिन होगा।’
वाहन क्षेत्र की बात करें तो भारत से शायद ही अमेरिका में कारों का निर्यात होता है। टाटा मोटर्स की इकाई जगुआर लैंड रोवर पर थोड़ा असर पड़ सकता है। टाटा मोटर्स समूह के मुख्य वित्त अधिकारी पीबी बालाजी ने तिमाही नतीजों के बाद कहा था, ‘जहां तक ब्रिटेन का सवाल है, तो अमेरिका ब्रिटेन को ज्यादा निर्यात करता है। इसलिए हमें देखना होगा कि इसका क्या नतीजा निकलता है।’ हालांकि उन्होंने स्वीकार किया कि कोई भी नया शुल्क चुनौतियां पैदा करेगा।
महिंद्रा ऐंड महिंद्रा अमेरिका को ट्रैक्टरों का निर्यात करता है। मगर अभी यह स्पष्ट नहीं है कि ट्रैक्टर ट्रंप की शुल्क योजना के अंतर्गत आएंगे या नहीं। बंबई स्टॉक एक्सचेंज पर टाटा मोटर्स और महिंद्रा ऐंड महिंद्रा के शेयर मामूली गिरावट पर बंद हुए। वित्त वर्ष 2024 में भारत से अमेरिका को 6.79 अरब डॉलर मूल्य के वाहन कलपुर्जों का निर्यात किया गया था और 1.63 अरब डॉलर के कलपुर्जों का अमेरिका से आयात किया गया था।
वाहन कलपुर्जा विनिर्माताओं के संगठन एक्मा के महासचिव विन्नी मेहता ने कहा कि भारत में वाहन कलपुर्जा उद्योग पारस्परिक शुल्क से जुड़े घटनाक्रम पर नजर रख रहा है। एक वाहन कलपुर्जा कंपनी के एक अधिकारी ने कहा, ‘ये सब कहने की बातें हैं। जब तक हम लिखित में कुछ नहीं देखते, हमारे लिए कुछ नहीं बदलता।’