विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शुक्रवार को कहा कि एशियाई देशों को रूस को साथ लेकर चलना चाहिए। यह नीति एशियाई देशों के लिए महत्त्वपूर्ण है। जयशंकर ने कहा कि यह बात इसलिए भी जरूरी हो जाती है कि पश्चिमी देशों ने रूस के लिए कई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं।
नई दिल्ली में ‘रायसीना डायलॉग्स’ में चर्चा के दौरान विदेश मंत्री ने कहा कि रूस एक बड़ी शक्ति है और वहां राज-काज एवं विदेश नीति तय करने की एक अनोखी परंपरा रही है।
उन्होंने कहा, ‘ऐसी शक्तियां स्वयं को कभी भी केवल एक देश के साथ संबंध रखने तक सीमित नहीं रख सकतीं। विदेश मंत्री ने यह बात उस सवाल के जवाब में कही कि क्या चीन के साथ रूस की नजदीकी आने वाले समय में भारत के हितों के खिलाफ तो नहीं जाएगी।
यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के दो वर्ष आज पूरे हो जाएंगे। इन दो वर्षों में रूस नौवें पायदान से उठकर भारत को कच्चे तेल का निर्यात करने वाला सबसे बड़ा देश बन गया है। चालू वित्त वर्ष के पहले नौ महीनों में भारत में कच्चे तेल के कुल आयात का 34 प्रतिशत हिस्सा रूस से आया था। वित्त वर्ष 2022-23 की तुलना में यह 19.2 प्रतिशत अधिक रहा है। यूक्रेन संकट के बाद पश्चिमी देश रूस से आयात कम करने के लिए भारत पर लगातार दबाव डालते रहे हैं। अमेरिका सहित पश्चिमी देश यूक्रेन संकट के बाद रूस पर आर्थिक दबाव बढ़ाने के लिए लगातार नए प्रतिबंध लगाते रहे हैं।
जयशंकर ने कहा, ‘पश्चिमी देशों ने रूस के लिए कई चुनौतियां उत्पन्न कर दी हैं। इसे देखते हुए रूस एशियाई देशों के साथ अपने संबंधों को अधिक तरजीह दे रहा है। रूस को कई विकल्प देना तर्कसंगत भी है। अगर हम रूस के साथ संबंधों को नहीं बढ़ाएंगे तो बड़ी-बड़ी बातें करने का कोई मतलब नहीं रह जाएगा।’
विदेश मंत्री ने चीन के संदर्भ में कहा कि भारत और चीन दोनों देशों के लिए द्विपक्षीय संबंधों में संतुलन लाना सबसे बड़ी चुनौती होगी। उन्होंने कहा, ‘1980 के दशक से ही दोनों देशों के बीच सीमा पर आपसी सहमति से हालात अनुकूल थे और यह स्थिति दोनों देशों के हक में थी। मगर 30 वर्षों के बाद सीमा पर हालात बदल गए।’ जयशंकर ने कहा कि दोनों ही देशों को एक दूसरे के हितों के खिलाफ कदम उठाने से बचना चाहिए।
आर्थिक विषयों से जुड़े सवालों पर विदेश मंत्री ने जे पी मॉर्गन के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं का आकार 2075 तक बढ़कर 50 लाख करोड़ डॉलर हो जाने की की बात कही जा रही है। उन्होंने कहा, ‘भारत और चीन दोनों ने अलग-अलग समय पर आर्थिक प्रगति की दिशा में कदम उठाने की शुरुआत की। चीन ने आर्थिक मोर्चे पर भारत की तुलना में पहले से ध्यान देना शुरू कर दिया और इस मामले में उनकी रफ्तार भी अधिक रही। मगर एक समय ऐसा आता है जब लगभग संतुलन की स्थिति आ जाती है।’
उन्होंने कहा कि भारत को इस बात का पूरा ध्यान रखना चाहिए कि चीन उसकी नीतियों को कमजोर करने या उन्हें प्रभावित करने की कोशिश न करे। जयशंकर का इशारा चीन के उस कदम की तरफ था जब उसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के प्रस्तावों को रोकने का प्रयास किया था।